तारागढ़ का किला राजस्थान के अजमेर जिलेमें मौजूद है। Taragarh Fort अरवल्ली की पहाड़ी यो पर 700 फिट ऊंचाई पर मौजूद है
तारागढ़ क़िला को राजस्थान की कुजी भी माना जाता है। तारागढ़ किला की स्थापना 11 वी सदी में सम्राट अजय पाल चौहान ने किया था। Taragarh Fort में एक प्रख्यात दरगाह और 7 पानी के झालरे भी मौजूद है।
किले का नाम | तारागढ़ क़िला ( Taragarh Fort ) |
राज्य | राजस्थान |
शहर | अजमेर |
निर्माणकर्ता | अजयपाल चौहान |
निर्माणकाल | 11 वी सदी |
तारागढ़ किले की मुख्य तोप | गर्भ गुंजन |
तारागढ़ के मुख्य कुल महल | 5 महल |
तारागढ़ किले का क्षेत्र | 2 मिल |
तारागढ़ के कुल तालाब | 3 तालाब |
तारागढ़ किले की झालरे | 7 झालरे |
तारागढ़ क़िला का इतिहास – History oF Taragarh Fort Ajmer
पहले इस को अजयमेरु नाम से जाना जाता है। मुग़ल सल्तनता मे यह किला सामाजिक दृष्टि से बहोत प्रसिद्ध था। मगर अब यह सिर्फ़ नाम का क़िला ही रह गया है।
यहाँ सिर्फ़ जर्जर बुर्ज, दरवाज़े और खँडहर ही शेष मौजूद हैं। इस महल में जाने के लिए तीन बड़े दरवाजे का निर्माण किया गया था। इस दरवाजे को लक्ष्मी पोल, फूटा दरवाजा और गागुड़ी का फाटक के नाम से पहचाना जाता है।
इस महल के द्वार हाथी पोल पर बनी ज्यादा हाथियों की जोड़ी मौजूद है। यह किले में भीतर बने महल अपनी शिल्पकला एंव भित्ति चित्रों के कारण अद्वितिय है।
जहा एक मीठे नीमका पेड़ भी मौजूद है। माना जाता है की जिन लोगो को उनके बच्चे नहीं हो ते इस यक्ति को इस पेड़ का फल खा ले तो उनकी यह इच्छा पूरी हो जाती है।

इस किले की स्थापना 11 वी सदी में सम्राट अजय पाल चौहान ने मुग़लों के आक्रमणों से रक्षा हेतु लिए बनवाया था। 12 वीं शताब्दी ईस्वी में शाहजहाँ के एक सेनापति गौड राजपूत राजा बिट्ठलदास ने इस क़िले का मरममत किया था,
इस के कारन कई लोगो उसका संबंध गढबीरली से मानते हैं। ज्यारे ब्रिटिश काल में इसका इस्तमाल चिकित्सालय के रूप में किया गया। इस किले को कर्नल ब्रोटन के अनुसार बिजोलिया शिलालेख (1170 ईस्वी) में इसे एक अजेय गिरी किले बताया गया हैं।
लोक संगीत में इस क़िले को गढबीरली भी माना गया था। Taragarh Fort जिस पहाडी पर मौजूद हैं उसे बीरली भी मन जाता हैं इस की कारन भी लोग इसे गढबीरली कहते हैं।
तारागढ़ किले का निर्माण कब हुवा था –
तारागढ़ किले का निर्माणकार्य 11वीं सदी में सम्राट अजयपाल चौहान ने मुग़ल सल्तनत के हमलो कि सुरक्षा के लिए बनवाया था। तारागढ़ क़िला दरगाह की पीछे की पहाड़ पर मौजूद है।
Taragarh Fort पहले अजयभेरू के नाम से पहचाना जाता था। तारागढ़ का किला मुग़लकाल में सामाजिक दृष्टि से बहोत महत्वपूर्ण माना जाता था मगर हाली के समय में यह किला नाम का क़िला ही रह गया है। क्योकि यह पूरी तरह से खंडहर बन चूका है।
तारागढ़ किला कहा स्थित है –
तारागढ़ का किला राजस्थान के अजमेर जिलेमें मौजूद है। Taragarh Fort अरवल्ली की पहाड़ी यो पर 700 फिट ऊंचाई पर मौजूद है।
तारागढ़ किले का निर्माण किसने करवाया था –
तारागढ़ किले का निर्माण सम्राट अजयपाल चौहान ने करवाया था। इस लिए यह Taragarh Fort पहले अजयभेरू के नाम से पहचाना जाता था।
तारागढ़ किले का निर्माण क्यों करवाया गया था –
तारागढ़ किले का निर्माण मुग़ल सल्तनत के हमलो कि सुरक्षा के लिए बनवाया था।
तारागढ़ किले का जीणोंद्वार किसने और कब करवाया था –
तारागढ़ किले का जीणोंद्वार शाहजहाँ के सेनापति गौंड राजपूत राजा विट्ठलदास ने करवाया था। Taragarh Fort का जीणोंद्वार 12वी सदी में किया गया था। इस कारण तारागढ़ किले का संबंध गढबीरली से जोड़ते है।
तारागढ़ किले की बनावट – taragarh fort bundi
Taragarh Fort के विशाल दरवाजे के साथ यात्रिकोका स्वागत करता है। किले के अंदर जाने के लिए तीन प्रमुख दरवाजे बनवाये गए हैं। वह दरवाजो को यह नाम से जाने जाते है।
इसमें लक्ष्मी पोल, फूटा दरवाजा और गागुडी की फाटक के नाम से पहचाना जाता है। यह दरवाजो जो को हाथियों की नक्काशी के साथ बनवाया गया है। किले में मुजूद सुरंगें भी प्रसिद्ध और आकर्षक हैं।
जिन्होंने कई हमलो के समय शानदार भूमिका निभाई है। युद्ध के समय या खतरों के समय राजा और उनके साथियो के लिए एक सुरक्षित स्थान प्रदान करता रहता था ।

आपको बड़ा देकी यात्रिको को सुरंग में जाने की परवानगी नहीं है। क्योंकि सुरंगों में जाने के लिए पूर्ण सुविधा उपलब्ध नहीं है।
Taragarh Fort एक बहोत बड़ा गढ़ है जिस गढ़ को भीम बुर्ज के नाम से पहचाना जाना है।
किले में एक बड़ा गढ़ है जिसे भीम बुर्ज के नाम से जाना जाता है। इस गढ़ का निर्माण 16 वीं शताब्दी के समय का है। यहां चौहान गढ़ में कुछ विशाल जलाशय मौजूद हैं,
जो पानी के भंडार को संकट परिस्थिति के समय में प्रजा को पानी की कोई समस्या ना हो। Taragarh Fort का मुख्य और प्रसिद्ध और आकर्षक महल रानी महल के नाम से जाना जाता है।
यह रानी महल में ग्लास की खिडकिया और दीवार के भित्ति के कारण वह महल सुन्दर और यात्रिको को यह आकर्षित करता है। यह भित्ति चित्र आज के युग में भी आकर्षण का प्रमुख केंद्र माना जाता है।
Taragarh Fort में एक दरगाह भी मौजूद है वह दरगाह को मिरान साहब की दरगाह के नाम से पहचानी जानी है। Taragarh Fort शहर का प्रसिद्ध और आकर्षक मुख्य केंद्र माना जाता है। तारागढ़ किले में पर्यटक पक्षीयोको देखने के लिए देश -विदेश के लोग आते है।
तारागढ़ किले की जानकारी –
राजस्थान के राजपूताना के मध्य केंद्र में मौजूद होने के कारण इस किले का विशेष सामाजिक महत्व रहा हैं. इसकारन महमूद गजनवी से लेकर अंग्रेजों के शासन में
आने तक इसे कई हमलो का सामना करना पड़ा. इतिहासकारो मातानुसार राजस्थान के सब किलो में सबसे ज्यादा हमले Taragarh Fort पर हुवे है।
तारागढ़ किले का जीणोंद्वार महाराजा राव मालदेव ने करवाया था। और किले में पानी पहुँचाने के लिए पानी के संग्रह करने के लिए रहत का निर्माण भी करवाया था।
क्योकि तारागढ़ निवासीयोको पानी की अपूर्ति न रहे और राव मालदेव की पत्नी यानि Taragarh Fort की रानी रूठी रानी उमादे ने तारागढ़ किले को अपना निवास स्थान पसंद किया।
ब्रिटिश सरकार के गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिक ने ई.स में संभावित उपद्रव की शंका से Taragarh Fort की प्राचीन इमारते और आकर्षक स्मारक तुड़वा दिए। यह भाग तुड़वाकर तारागढ़ किले की प्राचीन सामाजिक महत्व पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया।
तारागढ़ किले की प्राचीर में 14 विशाल और आकर्षक और सुन्दर बुर्ज गुम्मट ,गूग्ड़ी,फूटी ,नक्काशीदार ,श्रृंगार चंवरी ,आर पार दिखाई देता अत्ता ,जानू नायक ,पीपली ,इब्राहिम शहीद ,दोराई ,बांद्रा ,इमली ,खिड़की और फ़तेह बुर्ज कई अनेक आकर्षक सुन्दर बुर्ज किले में मौजूद है।
तारागढ़ किले में नाना साहेब का झालरा ,इब्राहिम का झालरा , बड़ा झालरा यह तारागढ़ किले जलाशयों के नाम है और यह जलाशय किले के अंदर मौजूद है।
तारागढ़ किले में मीरा साहेब की मज्जीद भी स्थित है। तारागढ़ किले के बारे में बिशप हैबर ने लिखा हे की पुरोपियन वास्तुकला से इस किले का जीणोंद्वार करवाया जाय तो यह किला दूसरा जिब्राल्टर बन सकता हे। इस के कारन Taragarh Fort को राजस्थान का जिब्राल्टर नाम से भी पहचाना जाना जाता है।
तारागढ़ किले में प्रमुख कितने महल है –
तारागढ़ किले में अनेक स्मारक भी मौजूद है इसमें मुख्य इमारतो में छत्र महल ,अनिरुद्ध महल ,रतन महल , बादल महल ,और फूल महल मुख्य मने जाते है यह स्मारक स्थापत्यकला और अद्भुत चित्रकारी के अद्वितिय नमूना मौजूद है।
तारागढ़ किले की विशेषता क्या है –
तारागढ़ किले में एक आकर्षक मज्जिद और 7 जल के झालरे का भी निर्माण करवाया गया था। ब्रिटिश शासन काल में चिकित्सालय के एक विभाग के रूप में इसका उपयोग किया जाता था।
ब्रिटिश कर्नल ब्रोटन के मतानुसार ई.स 1170 बिजोलिया शिलालेख में इसे एक अजेय गिरी दुर्ग का वर्णन किया गया है। Taragarh Fort को लोक संगीत में गढबीरली से भी पहचाना जाता है।
यह तारागढ़ किले में एक मीठे नीम का पेड़ भी स्थित है। यह मीठे नीम के पेड़ की एक रहस्य है की जिस व्यक्ति की संतान न होने की समस्या है वह इस पेड़ का फल खाये तो इसकी इच्छा पूर्ण हो जाती है।
तारागढ़ किले की मुख्य और प्रसिद्ध तोप कोन सी है –
तारागढ़ किले की मुख्य तोप का नाम गर्भ गुंजन है। यह तोप किले के भीम बुर्ज पर रखी हुई है। जो अपने विशाल आकर और इसकी मारक क्षमता इतनी भयानक थी की कई दुश्मनो का और इनकी सेना का विनाश कर देती थी।
Taragarh Fort की यह तोप आज भी मौजूद है लेकिन इसका कोई उपयोग नहीं करता यह सिर्फ पर्यटकों की देखने कीचीज बन गई है। ऐसा माना है की
जब यह तोप को चलाया जाता था तब तोप का आवाज चारो और सुनाई देता था। यह Taragarh Fort की गर्भ गुंजन तोप अनेक मर्तबा गुंजी थी।
तारागढ़ किले में तालाब कैसे बनाये गये है –
Taragarh Fort के अन्दर तीन बड़े तालाब भी स्थित है जो इस तालाबों का पानी कभी नहीं ख़तम होता और सूखता भी नहीं है। यह तालाब की इंजिनयरिंग के की योजना की बनावट का एक नमूना दिखाई देता है।
यह तालाब इंजिनयरिंग का पररिकृत और उन्नत विधि का एक उत्कृस्ट उदहारण है। इन तालाबों में वर्षा का पानी सिंचित हो जाता है और किले के निवासीयो को पानी की समस्यासे दूर रखता है।
और तारागढ़ केकिले के रहनेवालो की जरूरत के लिये पामी का उपयोग किया जाता था। तारागढ़ किले में तालाबो का आधार चट्टानी होने के कारण यह किले में सालो भर पानी जमा रहता था।
तारागढ़ किले के रोचक तथ्य –
तारागढ़ किला समुद्र तल से करीबन 1885 फिट की ऊंचाई पर मौजूद है। यह किला ऊँचे पर्वत पर 2 मिल के क्षेत्र में फैला हुवा है। यह किला भरता के सबसे ऊँचे पर्वत यानि शिखरों पर जाने वाले किलो मेसे एक है।
तारागढ़ के किला ऊँची पहाड़ी पर मौजूद एक ढलान पर बना यह किले में जाने के लिए प्रमुख 3 विशाल दरवाजे बनवाये हुवे है। इस किले में जाने के लिए मुख्य दरवाजो में लक्ष्मी पोल , फूटा दरवाजा ,और गागुड़ी का फाटक के नाम से पहचाना जाता है।
तारागढ़ किले की राजपूती स्थापत्य वास्तुकला से बना हुवा दिखाई देता है। यह तारागढ़ किले पर राजस्थान के दूसरे किलो की तुलनामे मुग़ल कालीन स्थापत्यकला शैली कोई खास प्रभाव और आकर्षक दिखाई नहीं पड़ता। Taragarh Fort में एक पुरानी मज्जिद और जल को एकट्ठा करने के लिए 7 पानी के झालरे भी अनवाये गए है।
राजस्थान के मेवाड़ के राजा पृथ्वीराज सिसोदिया अपनी रानी तारा के कहने पर इस तारागढ़ किले का पुनःनिर्माण करवाया गया था। इस कारन इस किले का नाम तारागढ़ के नाम से भी पहचाना जाता है।
तारागढ़ किले को ई.स 1832 में ब्रिटिश गवर्नर जनरल विलियम बैंटिक ने इस किले को देखते ही वह बोला यह किला दुनिया का दूसरा जिब्राल्टर है।
जिब्राल्टर यूरोप के दक्षिण क्षेत्र के भूमध्य सागर के तट पर बनाया गया एक स्वशासी ब्रिटिश विदेशी विस्तार है। यह स्थान प्रायद्वीप से पूरी तरह से गिरा हुवा है। यहाँ पर कई सुंदर और प्रसिद्ध गुफाये भी स्थित है।
Taragarh Fort के अंदर करीबन 14 विशाल बुर्ज हे और किले में अनेक जलाशय और मुस्लिम संत मीरा साहब की मज्जिद का निर्माण किया गया है।
तारागढ़ किले में एक मीठे पानी का पेड़ मौजूद है। ऐसा कहा जाता है की कोई औरत को संतान प्राप्ति नहीं होती वह स्त्री यदि इस पेड़ का फल खा ले तो उस स्त्री को संतान प्राप्ति की इच्छा जरूर पूरी होती है।
तारागढ़ के कोटा जाने वाले रास्ते में देवपुर गांव में करीब एक विशाल छतरी बनवाई गई है। इस छतरी का निर्माण राव राजा अनिरुद्र सिंह के धाबाई देवा के लिए बनवाई गई थी।
यह छतरी का निर्माण ई.स 1683 में किया गया है ऐसा माना जाता है। यह छतरी करीबन तीन मंजिला है और यह छतरी में कुल 84 भव्य और सुन्दर स्तंभ बनवाये गए है।
Taragarh Fort में अनेक स्मारक भी मौजूद है इसमें मुख्य इमारतो में छत्र महल ,अनिरुद्ध महल ,रतन महल , बादल महल ,और फूल महल मुख्य मने जाते है यह स्मारक स्थापत्यकला और अद्भुत चित्रकारी के अद्वितिय नमूना मौजूद है।
तारागढ़ किले के आस – पास घूमने का स्थल –
- आनासागर झील :
आनासागर झील का निर्माण राजा अरणो रा आनाजी ने 1135 से 1150 के बीच करवाया था। आनासागर एक लुभावनी और शानदार मानव निर्मित झील है।
वह झील राजस्थान में अजमेर शहर में मौजूद है। आनासागर झील गर्मियों के समय सूख जाता है। परन्तु सूर्यास्त के समय नजारा देखने लायक होता है। झील के आस पास कुश मंदिरो भी जोवा जायक हे।
इस झील की स्थापना अंबाजी तोमर के आदेशानुसार बनवाया गया था, जो राजसी राजा पृथ्वी राज चौहान के दादा थे। झील का नाम राजा अनाजी के नाम पर रखा गया है। जमेर की आनेसागर झील में लूनी नदी का पानी आता है

आनासागर झील का प्रवेश शुल्क नहीं है लेकिन कोई यात्रिको बोटिंग करते हैं तो इसके लिए उन्हें 160 रूपये प्रति व्यक्ति शुल्क देना होगा
अक्टूबर और मार्च के बीच है। इस समय यहां का मौसम बहोत सुन्दर होता है और झील में पानी भरा हुआ होता है। धुप के मौसम में यहां की यात्रा करने अच्छा नहीं है क्योंकि इस समय चिलचिलाती गर्मी आपको परेशान कर सकती है।
धुप में झील की यात्रा करना बिलकुल भी अच्छी नहीं है क्योंकि गर्मियों झील पूरी तरह से सुख जाती है। इसलिए हम आपको कहते है की सर्दियों के मौसम में ही यहां की यात्रा करें।
झील के लिए जलसंभरण का कार्य निर्माण आबादी द्वारा निर्माण किया था। 1637 ईस्वी में शाहजहाँ ने झील के किनारे करि बन 1240 फीट लम्बा कटहरा बनवायाता और पाल पर संगमरमर की पाँच बारादरियों का स्थापना की थी।
झील के प्रांगण में मौजूद दौलत बाग का स्थापना जहाँगीर द्वारा किया गया जिसे सुभाष उद्यान के नाम से भी पहेचान जाता है। आना सागर का फैलाव करि बन 13 कि.मी की क्षेत्र स्थापित है।
मौत की झील बनी अजमेर की आनासागर झील में दर शुक्रवार को एक युवती की मौत डूबने से हो जाती है। यह मां को बचाने के चक्कर में डूब गई थी। यह युवती परिवार के साथ जियारत पर आई थी।
इससे पहले उर्स के समय भी एक जायरीन की यहां डूबने से मौत हो चुकी है। इससे पहले भी यहां कई लोग स्थान करते समय पैर फिसलने डूब गए।
आनासागर झील घूमने का सबसे अच्छा समय राजस्थान के अजमेर में मौजूद यह झील हर साल दूप के मौसम में आनदं मिलता है। सूर्यास्त के दौरान यह झील बहुत सुन्दर दिखता देती है।
अगर आप इस झील को गुमने जाते हैं तो शाम के दौरान जाएं क्योंकि इस समय यह कई आकर सीट नजारा देखने को मिलता है। आना सागर झील अजमेर की प्रसिद्ध लोकप्रिय झीलों में से एक है
और इसका नाम भारत की बहोत बड़ी झीलों की सूची में भी मौजूद है। बता दें कि इस झील का स्थापक आणाजी चौहान के समय में हुआ था जो राजा पृथ्वी राज चौहान के दादा थे।
इस सुन्दर झील का नाम स्वयं राजा आणाजी चौहान के नाम पर रखा गया है। इस झील ही निर्माण 12 वीं शताब्दी के समय लोगों के बीचसुन्दर जीवन शैली को बढ़ावा देने के स्त्रोत के विभाग में लूणी नदी के पार एक बांध बनने के निर्माण किया गया था।
आना सागर झील दौलत बाग गार्डन से घिरी हुई है जो दिखने में एक बहुत ही आकर सीट बगीचा है और सुन्दर और आकर्षित वातावरण देखने को मिलता है।
अगर आप अजमेर की गुमने जाते है तो आपको इस झील को गुमने के लिए जरुर जाना चाहिए, क्योंकि इसके बिना आपकी अजमेर की यात्रा एकदम अधूरी है।
- अजमेर शरीफ की मजार :
अजमेर शरीफ मुगलों द्वारा 1236 ईस्वी में निर्माण किया था। इसलिए इसमें मुगलों की वास्तुकला की अद्भुत शैली देखने को मिलती हैं। अजमेर शरीफ की मजार में अलग – अलग घटक हैं। कब्रें, आंगन और दावानल आदि।
यहाँ का सबसे मुख्य है , निजाम गेट, औलिया मस्जिद, दरगाह श्राइन, बुलंद दरवाजा, जामा मस्जिद, महफिलखाना और लगभग एक दर्जन अन्य प्रमुख प्रतिष्ठान भी हैं।
अजमेर शरीफ़ मजार भारत के राजस्थान राज्य के अजमेर शहर में प्रख्यात सूफ़ी मोइनुद्दीन चिश्ती ख्वाजा गरीब नवाज( 1141 – 123 6 ई॰) की मजार मौजूद है, जिसमें उनका मक़बरा मौजूद है।
दरगाह अजमेर शरीफ का निर्माण किसने करवाया था दरगाह अजमेर शरीफ का निर्माण 1111 में हैदराबाद स्टेट के उस दौरान के निज़ाम, मीर उस्मान अली ख़ाँ ने किया था।
अजमेर शरीफ की मजार में सूफी संत मोइनूदीन चिश्ती की पुण्यतिथि के समय में उर्स के रूप में 6 दिन का तहेवार माना है। ऐसा कहा जाता है कि जब ख्वाजा साहब 114 वर्ष के थे तो इस समय उन्होने अपने आप को 6 दिन तक रूम में रखकर अल्लाह की प्रार्थना की थी ।
- अढ़ाई दिन का झोपड़ा :
अढ़ाई दिन का झोपड़ा राजस्थान के अजमेर में मौजूद अढ़ाई दिन का झोपड़ा मस्जिद लगभग 800 साल पुरानी है. अढ़ाई दिन का झोपड़ा एक मस्जिद है, जोकि कुतुब-उद-दीन-ऐबक ने स्थापना की थी, जोकि दिल्ली के पहले सुल्तान थे।
इस झोपड़े के बारे में एक अफवाह यह है भी हैं कि इस इंडो-इस्लामिक आर्किटेक्चर साइट का स्थापना ढाई दिवस में करवाया था। बादमे उनका दिया था।
हालाकि आज भी यहां के अधिकांश प्राचीन मंदिर खंडहरों में हैं। धनुषाकार स्क्रीन, बर्बाद मीनारों और कई तरके सरस स्तंभों के साथ यह यात्रा करने के लिए एक आकर सीत स्थान है।
अड़ाई दिन का झोपड़ा एंडर कोटे रोड, लखन कोठरी, अजमेर, राजस्थान 305001पर स्थित है। यह जनता नहीं है की इसका निर्माण सिर्फ अढाई दिन में किया गया और इस कारण इसका नाम अढाई दिन का झोपड़ा पढ़ गया “। “यहाँ पर पंजाब साह पीर का दिन का उर्स लगता है इसीलिए इसे अढ़ाई दिन का झोपडा कहते है “
अढ़ाई दिन का झोपड़ा नाम की एक लंबी कहानी मानी जाती है। कहा जाता है कि उसी समय मोहम्मद गोरी पृथ्वीराज चौहान को हराने के बाद अजमेर से गुजर रहा था.
उसी की समय वास्तु के लिहाज से बेहद उम्दा हिंदू धर्मस्थल नजर आए. गोरी ने अपने सेनापति कुदुबुद्दीन ऐबक को कहा दिया कि इनमें से उसे सरस स्थान पर मस्जिद का निर्माण किया था।
गोरी ने इसके लिए 60 घंटों यानी ढाई दिन का समय दिया. गोरी के समय हेरात के वास्तुविद अबू बकर ने इसका डिजाइन स्थापना कि थी. उसी पर हिंदू ही कामगारों ने 60 घंटों तक रुके हुवे काम किया था फिर मस्जिद की स्थापना की थी।
अढ़ाई दिन का झोपड़ा का वास्तुकला की स्थापना प्रार्थना स्थान (असली मस्जिद) पश्चिम में मौजूद है, जबकि उत्तर की ओर एक पहाड़ी चट्टान हैं
पश्चिम की ओर मौजूद असली मस्जिद की इमारत में 10 गुंबद और 124 स्तंभ हैं; पूर्वी हिस्से में 92 स्तंभ हैं; और शेष प्रत्येक कोनो पर 64 स्तंभ हैं। इस प्रकार, पूरे भवन में 344 खंभे हैं। इनमें से केवल 70 स्तंभ अच्छी हालत में हैं। पमुख मेहराब करीबन 60 फीट ऊंचा है.
इसके अलावा बगल में छः छोटे मेहराब स्थापित किये गये है। दिन के दौरान रास्ते के लिए छोटे आयताकार के पैनल हैं, जैसे पहले अरब मस्जिदों में लीलते थे |
अढ़ाई दिन का झोंपड़ा के खुलने और बंद होने के समय अढ़ाई दिन का झोंपड़ा सुबहे 6 बजे खुल के शाम के 6 बजे तक खूला रहता है। अधाई दिन का झोंपड़ा को अन्दर से फिरने के लिए कोई प्रकार का प्रवेश शुल्क नही लिया जाता है।
- अकबर का महल और संग्रहालय :
अजमेर में यात्रा करने का स्थान अकबर का महल और संग्रहालय हैं। अकबर का यह महल 1500 ए। डी। में उस जगह पर स्थापना करवाई थी जहां सम्राट अकबर के सैनिक अजमेर में ठहरे थे और यह अजमेर शहर के मध्यम में मौजूद है।
इस संग्रहालय में प्राचीन सैन्य हथियारोंऔर उत्कृष्ट मूर्तियों को चित्रित बनवाया गया था। अजमेर में बने इस संग्रहालय में राजपूत और मुगल शैली के जीवन और लड़ाई के विभिन्न पहलुओं को प्रदर्शित किया गया हैं। इस में काली जी की मूर्ती मौजूद हैं जोकि संगमरमर की थापित की गई है।
- नारेली का जैन मंदिर :
अजमेर से कुस करीबन 7 किलोमीटर बाहर मौजूद नारेली जैन मंदिर हैं। जोकि कोणीय और हड़ताली आकर्षक डिजाइन के साथ एक आकर सीट संगमरमर का मंदिर है।
अजमेर का यह अति सुन्दर मंदिर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने कामयाब रहा हैं, कई देश विदेश से आने वाले यात्री कों की भीड़ इस मंदिर में मौजूद रहती हैं। जो यात्री सुन्दर मौसम में एकान्त में समय पसार कारना चाहते हैंइस यात्री को गुमने का सुन्दर स्थान हैं।

नारेली जैन मंदिर की स्थापना तीस जून 1995 में जैन मुनि पुंगव श्री सुधासागर जी महाराज की प्रेरण से की गई।
भारतीयों के लिए नारेली जैन मंदिर में कोई प्रवेश नीशुल्क है। यहाँ यात्रिको के लिए- प्रति व्यक्ति को 10 रूपये प्रवेश शुल्क होता है। आप अपने साथ डिजिटल कैमरा ले जाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको एक अलग टिकट 50 रूपये देना होता है। और वीडियो कैमरा साथ ले जाने के लिए 100 रूपये देना होगा है।
नारेली जैन मंदिर में प्रतिदिन सुबह 6.00 बजे से शाम 8. 30 बजे तक मंदिर यात्रियों के लिए खुला रहता है। नारेली जैन मंदिर में आप क्या क्या कर सकते हैं
सुंदर वास्तुकला और जटिल पत्थर की नक्काशी को अपने कैमरे में फोटो ग्राफ़ी कर सकते है। जहा आप सुबह 8. 30 पर सुबह की आरती या शाम को सूर्यास्त के 20 मिनट बाद शाम की आरती में मौजूद हो सकते हैं।
नारेली जैन मंदिर फिरने का सबसे बहेतरीन समय नवंबर से मार्च का समय होता है। क्योंकि इस समय मौसम सुन्दर होता है, जो आपकी यात्रा सरस बना देता है
और आप आसानी से नारेली जैन मंदिर में फिर सकते हैं। धुप के समय में यहां की यात्रा करना अच्छा नहीं है क्योंकि इस समय यहां चिलचिलाती धुप होती है जिस के कारन से आपको यात्रा में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
- दुर्गाबाघ गार्डन अजमेर :
दुर्गाबाघ गार्डन अजमेर में दौलत बाग राजसी अना सागर झील के बाजुमें सुंदर जोवा लायक स्थान है। यह गार्डन में शिमला की एक रमणीय पृष्ठभूमि है उसे महाराजा मंगल सिंह द्वारानिर्माण किया गया था।
दौलत बाग के परिसर में बने गार्डन में संगमरमर का मंडप बगीचे का प्रमुख सुंदर जोवा लायक हैं। और इस गार्डन में सुंदर खिले हुए फूल, लम्बे वृक्ष हैं और सुंदर शांत हवा मन आनंद ले सकते हैं।
- सोनी जी की नसियां :
अजमेर में जोवा लायक स्थान सोनी जी की नसियां है उसे लाल मंदिर कहते हैं एक जैन मांदरी हैं, जो जैन धर्म के पहले तीर्थकर को अर्पित हैं।
सोनी जी की नसियां मंदिर का मुख्य देखने लायक स्थान मुख्य कक्ष है जिसे स्वर्ण नगरी या सोने के शहर भी कहा जाता हैं। इस मंदिर में सोने की लकड़ी की कई आकृतियां बनी हुई है
जोकि जैन धर्म की कई आकृतियों को दर्शाती हैं। इस मंदिर में आने वाले यात्रि को की लम्बी कतार लगी रहती हैं। करोली के लाल पत्थरों से स्थापित करेल दिगंबर मंदिर जैन तीर्थंकर आदिनाथ का मंदिर है।
यह मंदिर 1864-1865 ईस्वी में स्थापित किया गया था। लाल पत्थरों से स्थापित होने के कारण इसे ‘लाल मंदिर’ से भी जाना जाता है। इसमें एक स्वर्ण नगरी भी है
जिसमें जैन धर्म से सम्बंधित पौराणिक दृश्य, अयोध्या नगरी, प्रयागराज के दृश्य स्थापित हैं। यह स्वर्ण नगरी अपनी बारीक कारीगिरी और पिच्चीकारी के लिये जाना जाता है। परिसर के बीच में एक 82 फीट ऊँचा स्तंभ खड़ा है, जिसे मानस्तंभ कहा जाता है।
यह मंदिर 1864-1865 ईस्वी में स्थापित किया गया था। लाल पत्थरों से स्थापित होने के कारण इसे ‘लाल मंदिर’ से भी जाना जाता है। इसमें एक स्वर्ण नगरी भी है
जिसमें जैन धर्म से सम्बंधित पौराणिक दृश्य, अयोध्या नगरी, प्रयागराज के दृश्य स्थापित हैं। यह स्वर्ण नगरी अपनी बारीक कारीगिरी और पिच्चीकारी के लिये जाना जाता है। परिसर के बीच में एक 82 फीट ऊँचा स्तंभ खड़ा है, जिसे मानस्तंभ कहा जाता है।
सोनी जी की नसियाँ की यात्रा के प्रथम मंदिर में केवल जैनों के प्रवेश की अनुमति है लेकिन अन्य लोग मुख्य पूजा क्षेत्र के पीछे स्वर्ण नगरी की यात्रा कर सकते हैं।
नसियाँ जैन मंदिर का प्रवेश शुल्क भारतीय यत्रीकों को 10 रूपए प्रति व्यक्ति का प्रवेश शुल्क देना होता है ।और विदेशी यत्रीकों 25 रूपए व्यक्ति का प्रवेश शुल्क देना देना होता है।
फिर आप साथ में डिजिटल कैमरा ले जाना चाहते हैं तो आपको एक अलग टिकट का 50 रूपये अलग देना होता है और वीडियो कैमरा साथ ले जाते है तो आपको 100 रूपये शुल्क देना होगा।
सोनी जी की नसियां प्रतिदिन सुबह 8.30 से 4.30 तक यात्रीयो के लिए खुला होता है। आप इस समय के दोरान कभी भी सोनी जी की नसियां घूमने जा सकते हैं।
सोनी जी की नसियाँ देखनेका सबसे सुंदर समय नवंबर से मार्च का समय बहोत अच्छा है। क्योंकि इस समय मौसम सुंदर होता है, जो आपकी यात्रा रोमांचक बना देता है
और आप आसानी से मंदिर में फिर सकते हैं। धुप के दौरान में यहां की यात्रा करना अच्छा नहीं है क्योंकि इस समय यहां चिलचिलाती धुप पड़ती है जिसके कारन से आपको यात्रा में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
- सांभर झील :
सांभर झील अजमेर में मौजूद है सांभर झील में चार नदियां गिरती (रुपनगढ,मेंथा,खारी,खंड़ेला) है। अजमेर में देखने लायक स्थान में से सांभर झील अजमेर से लगभग 64 किलोमीटर दूरी पर मौजूद एक सरस झील हैं।
जोकि राष्ट्रीय राजमार्ग 8 पर मौजूद है और भारत में खारे पानी की बहोत बड़ी झील हैं। हालाकि इसे गुलाबी राजहंस और जलपक्षीयों की उपस्थिति के कारण रामसर साइट के नाम से भी जाना जाता है।
राजस्थान राज्य में जयपुर शहर के समीप मौजूद यह खारे पानी की झील है। यह झील समुद्र तल से 1,200 फुट की ऊँचाई पर मौजूद है। जब यह भरी रहती है तब इसका क्षेत्रफल 90 वर्ग होता है।
इसमें चार नदियाँ (रुपनगढ,मेंथा,खारी,खंड़ेला) आकर मिलती हैं। इस झील से बड़े पैमाने पर नमक का उत्पादन होता है। मध्यकाल में यह क्षेत्र भील राज्य का प्रमुख व्यावसायिक केंद्र रहा अनुमान है
कि अरावली के शिष्ट और नाइस के गर्तों में भरा हुआ गाद ही नमक का स्रोत है। गाद में मौजूद विलयशील सोडियम यौगिक वर्षा के जल में घुसकर नदियों द्वारा झील में पहुँचाता है और जल के वाष्पन के पश्चात झील में नमक के रूप में रह जाता है।
अंग्रेजों ने सांभर झील के लिए नमक समझौता अंग्रेजों ने सांभर झील के लिए नमक समझौता वर्ष 1869 में किया। शाकम्भरी माता मंदिर , सरमिष्ठा सरोवर, भैराना, दादू द्वारा मंदिर, और देवयानी कुंड हैं।
सांभर झील में हुई देश की सबसे बड़ी त्रासदी, 11 दिनों में 18 हजार पक्षियों की मौत हुई। राजस्थान में देश की सबसे बड़ी पक्षी त्रासदी हुई है।
आंकड़ों के मुताबिक 11 दिवस में 18,059 विदेशी पंछीयों की मृत्यु हो गई थी। परन्तु ,पंछीयों की मृत्यु का कारण अभी भी किसी को भी मालूम नहीं है। पंछीयों के नमूनों को जांच के लिए देश समेत चार राज्यों में भेजा गया है। भारत की सबसे बड़ी अंतर्देशीय नमक झील है
- क्लॉक टॉवर अजमेर :
अजमेर में अलवर के चर्चमार्ग पर मौजूद क्लॉक टॉवर प्राचीन राजपूत शासन काल का एक शाही मोहरा नाम से पहेचा ना जाता है, जोकि अजमेर के निकट के इलाके का दृश्य दुखाए देता है। यदि आप अजमेर जाएं तो क्लॉक टावर का आनंद जरूर ले ।
- अकबरी किला :
अजमेर का देखने लायक जगह अकबरी किला और संग्रहालय अजमेर के नए बाजार में संग्रहालय मार्ग पर मौजूद है। किले और संग्रहालय में हड़ताली वास्तुकला का घमंड – मुगल और राजपुताना शैलियों का मिश्रण देखने को मिलता है।
इस किला की स्थापना मुगल शासक सम्राट अशोक केसमय किया गया था। यह किला एक बार राजकुमार सलीम का निवास जगह भी रह चुका हैं।
तारागढ़ किले के खुलने और बंद होने का समय –
ग्रीष्मकाल में किले की टाइमिंग – सुबह 8:00 बजे से शाम 7:00 बजे तक
सर्दियों में में किले की टाइमिंग – सुबह 8:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक
तारागढ़ किला घूमने जाने का सबसे अच्छा समय-
जोआप Taragarh Fort की शांति दारक यात्रा करना चाहते हैं तो कहा देते है कि सबसे बहेतरा समय नवंबर से मार्च तक है। इस समय मौसम अच्छा होता है,
आप आराम से किले में देख सकते हैं और इसे एक्सप्लोर कर सकते हैं। गर्मियों के मौसम में यहां की यात्रा करना अच्छा समय नहीं है क्योंकि इस समय चिलचिलाती गर्मी पड़ती है जिसकी कारन से आपको यात्रा में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।
तारागढ़ किले की यात्रा के लिए टिप्स –
अगर आप किले को देखना जा हैं तो सुबह यात्रा करना सबसे अच्छा समय रहेगा, इसलिए सुबह जल्दी उठने की कोशिश करने और किले की फिरने के लिए निकलें।
किले के अंदर पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं है इस के कारन अपने साथ पानी की बोतल ले जाये। अगर आप गर्म की समय में यात्रा कर रहने हैं तो हल्के और सूती कपड़ें पहने। दिन के समय चिलचिलाती गर्मी में घूमना आपको कमजोर कर सकता है।
अगर आप किले को अच्छे से एक्स्प्लोर करने जा रहें हैं तो अपने कुछ खाने की चीज़ें या स्नेक्स ले जाएँ।
तारागढ़ किला का प्रवेश शुल्क –
भारतीयों के लिए- प्रति व्यक्ति 25 रूपये
विदेशियों के लिए- प्रति व्यक्ति 100 रूपये
उसके आलावा आप अपने साथ डिजिटल कैमरा ले जाना चाहते हैं तो इसके लिए आपको एक अलग टिकट खरीदना होगा, जिसकी लागत 50 रूपये है।
वीडियो कैमरा के लिए टिकट की कीमत 100 रूपये है।
तारागढ़ क़िला के आसपास की रुकने की होटल –
होटल एलएन कोर्टयार्ड
ब्राविया होटल अजमेर
रीगल होटल
मानसिंह पैलेस अजमेर
होटल साहिल
तारागढ़ किला कैसे पहुंचे –
taragarh fort ajmer शहर का एक यात्रिको किये अच्छा स्थान है जो दरगाह बाज़ार से सिर्फ 10 कि.मी की दूर मौजूद है। यहां से किले तक जाने के लिए आप तारागढ़मार्ग पर कैब ऑटो कराए देके ले जा सकते हैं और किले तक पहुँच सकते हैं।
अजमेर दरगाह से तारागढ़ किले तक जानेतक लिए करीबन 30 मिनट का समय होगा। अजमेर राजस्थान का एक मुख्य शहर है जहां आप ट्रेन और सड़क मार्ग से पहुंच सकते हैं।
- फ्लाइट से तारागढ़ किला कैसे पहुंचे :
अजमेर शहर से लगभग 135 किलोमीटर दूरी जयपुर का सांगानेर हवाई अड्डा अजमेर से सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। यह एयरपोर्ट भारत के प्रमुख शहर दिल्ली और मुंबई जैसे शहरो से बहुत अच्छी तरह से मिलता हैं। जब आप एयरपोर्ट पर पहुंच जाते हैं तो यहां से आप अजमेर जाने के लिए एक टैक्सी किराए पर ले सकते हैं।
- ट्रेन से तारागढ़ किला कैसे पहुंचे :
जो आप अजमेर जाने के लिए रेल मार्ग का चुनाव किया हैं, तो हम बता दें कि अजमेर शहर का रेल्वे स्टेशन “अजमेर जंक्शन रेलवे स्टेशन” हैं। जोकि मुंबई, अहमदाबाद, जयपुर और दिल्ली लाइन पर मौजूद है। वो स्टेशन दिल्ली, मुंबई, जयपुर, इलाहाबाद, लखनऊ और कोलकाता जैसे भारत के मुख्य शहरों से मिलता हैं।
- सड़क मार्ग से तारागढ़ किला कैसे पहुंचे :
जो आप अजमेर पहुंचे के लिए बस का करते है तो हम आपको बता दें कि राजस्थान राज्य सड़क परिवहन निगम के द्वारा दिल्ली, जयपुर, उदयपुर, जोधपुर और जैसलमेर जैसे आस-पास के शहरों से अजमेर को जोड़ने के लिए डीलक्स और सेमी-डीलक्स बसें नियमित रूप से चलाता है। तो आप बहुत ही आसानी से बस के द्वारा taragarh fort ajmer पहुंच जायेंगे।
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