Kashi Vishwanath Temple भगवान शिव को समर्पित सबसे प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों में से एक है। यह उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी शहर में स्थित है। यह मंदिर पवित्र गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है और यह भारत के पवित्र शिव मंदिरों के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। मंदिर के मुख्य देवता को विश्वनाथ या विश्वेश्वर नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है पूरे ब्रह्मांड का शासक।
वाराणसी शहर को काशी के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए इस मंदिर को काशी विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है। यह काफी पुराना और एक भव्य मंदिर है, जो पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। यही कारण है कि देश के हर कोने से भगवान शिव के भक्त यहां दर्शन पूजन करने के लिए आते हैं।
मंदिर का नाम | काशी विश्वनाथ मंदिर |
राज्य | उत्तर प्रदेश |
शहर | वाराणसी |
निर्माण | ई. स 1490 |
किस धातु से शिखर बना है | सोने का |
कितना मीटर ऊंचा है शिखर | 15.5 मीटर |
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काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास – History of Kashi Vishwanath Temple
विश्वनाथ मंदिर के भवन का निर्माण किस वर्ष किया गया, यह अभी तक अज्ञात है। लेकिन इस मंदिर का उल्लेख प्राचीन लिपियों और मिथकों में किया गया है। माना जाता है कि दूसरी ईस्वी में मंदिर को कई आक्रमणकारियों ने नष्ट किया था जिसे बाद में एक गुजराती व्यापारी द्वारा बनवाया गया। 15 वीं एवं 16 वीं शताब्दी में अकबर के शासनकाल के दौरान मंदिर को नष्ट कर दिया गया था। तब अकबर के ससुर राजा मान सिंह ने मंदिर का निर्माण कराया था।
लेकिन हिंदुओं ने इस मंदिर का बहिष्कार किया क्योंकि राजा ने एक मुस्लिम परिवार में अपने पुत्री की शादी की थी। 17 वीं शताब्दी में मंदिर को औरंगजेब ने नष्ट कर दिया और एक मस्जिद बनवाया। मस्जिद के ठीक पीछे प्राचीन मंदिर के अवशेष देखे जा सकते हैं। वर्तमान संरचना का निर्माण 1780 में इंदौर के मराठा शासक अहिल्या बाई होल्कर द्वारा एक निकटवर्ती स्थल पर किया गया था। 1983 से मंदिर का प्रबंधन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा किया जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर की रचना – Composition of Kashi Vishwanath temple
मंदिर परिसर में छोटे मंदिरों की एक श्रृंखला है, जो नदी के पास विश्वनाथ गली नामक एक छोटी सी गली में स्थित है। तीर्थस्थल पर मुख्य देवता का लिंग 60 सेमी लंबा है और एक चांदी की वेदी में रखी गई 90 सेमी की परिधि है। मुख्य मंदिर चतुर्भुज है और अन्य देवताओं के मंदिरों से घिरा हुआ है। परिसर में कालभैरव, धंदापानी, अविमुक्तेश्वरा, विष्णु, विनायक, सनिष्करा, विरुपाक्ष और विरुपाक्ष गौरी के लिए छोटे मंदिर हैं।
मंदिर में एक छोटा कुआँ है जिसे ज्ञान वापी (ज्ञान कुआँ) कहा जाता है। ज्ञान वापी मुख्य मंदिर के उत्तर में स्थित है और माना जाता है कि आक्रमण के समय ज्योतिर्लिंग की रक्षा के लिए मुख्य पुजारी कुएं में छिपे हुए थे। ऐसा कहा जाता है कि मंदिर के मुख्य पुजारी ने ज्योतिर्लिंग को आक्रमणकारियों से बचाने के लिए शिव लिंग के साथ कुएं में छलांग लगा दी।
मंदिर की संरचना के अनुसार, एक सभा गृह या संगम हॉल है, जो आंतरिक गर्भगृह में जाता है। पूज्यनीय ज्योतिर्लिंग एक गहरे भूरे रंग का पत्थर है जो कि मंदिर में एक चांदी के मंच पर रखा गया है। मंदिर की संरचना तीन भागों से बनी है। सबसे पहले भगवान विश्वनाथ या महादेव के मंदिर पर एक शिखर है। दूसरा स्वर्ण गुंबद है और तीसरा भगवान विश्वनाथ के ऊपर एक ध्वज और एक त्रिशूल है।
काशी विश्वनाथ मंदिर में हर दिन लगभग 3,000 दर्शन के लिए आते है। कुछ अवसरों पर यह संख्या 1,000,000 और इससे भी अधिक हो जाती जाती है। मंदिर के बारे में उल्लेखनीय 15.5 मीटर ऊंचा सोने का शिखर और सोने का गुंबद है। यहां शुद्ध सोने से बने तीन गुंबद हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर पर कितने आक्रमण हुवे ?- How many attacks have been done on Kashi Vishwanath temple?
चीनी यात्री (ह्वेनसांग) के अनुसार उसके समय में काशी में सौ मंदिर थे, किन्तु मुस्लिम आक्रमणकारियों ने सभी मंदिर ध्वस्त कर मस्जिदों का निर्माण किया। ईसा पूर्व 11वीं सदी में राजा हरीशचन्द्र ने जिस विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था उसका सम्राट विक्रमादित्य ने जीर्णोद्धार करवाया था। उसे ही 1194 में मुहम्मद गौरी ने लूटने के बाद तुड़वा दिया था। इतिहासकारों के अनुसार इस भव्य मंदिर को सन् 1194 में मुहम्मद गौरी द्वारा तोड़ा गया था।
इसे फिर से बनाया गया, लेकिन एक बार फिर इसे सन् 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह द्वारा तोड़ दिया गया। पुन: सन् 1585 ई. में राजा टोडरमल की सहायता से पं. नारायण भट्ट द्वारा इस स्थान पर फिर से एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया। इस भव्य मंदिर को सन् 1632 में शाहजहां ने आदेश पारित कर इसे तोड़ने के लिए सेना भेज दी। सेना हिन्दुओं के प्रबल प्रतिरोध के कारण विश्वनाथ मंदिर के केंद्रीय मंदिर को तो तोड़ नहीं सकी, लेकिन काशी के 63 अन्य मंदिर तोड़ दिए गए।
डॉ. एएस भट्ट ने अपनी किताब ‘दान हारावली’ में इसका जिक्र किया है कि टोडरमल ने मंदिर का पुनर्निर्माण 1585 में करवाया था। 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित ‘मासीदे आलमगिरी’ में इस ध्वंस का वर्णन है। औरंगजेब के आदेश पर यहां का मंदिर तोड़कर एक ज्ञानवापी मस्जिद बनाई गई। 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी।
काशी विश्वनाथ मंदिर के रोचक तथ्य – Interesting facts of Kashi Vishwanath temple
काशी विश्वनाथ मंदिर को स्वर्ण मंदिर या सोने का मंदिर भी कहा जाता है। मंदिर के ऊपर सोने के गुंबद लगे हुए हैं। इस मंदिर के लिए सोना पंजाब के सिख महाराजा रणजीत सिंह ने दान दिया था। काशी विश्वनाथ मंदिर के अंदर शिव, विश्वेश्वर या विश्वनाथ का ज्योतिर्लिंग है। विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग का भारत के आध्यात्मिक इतिहास में बहुत ही विशिष्ट और अद्वितीय महत्व है।
आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, बामाख्यापा, गोस्वामी तुलसीदास, स्वामी दयानंद सरस्वती, सत्य साईं बाबा और गुरुनानक सहित कई प्रमुख संत इस स्थल पर आये हैं। पवित्र नदी गंगा में नहाकर पूरे विधिविधान से विश्वनाथ मंदिर में पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि शिवभक्त जीवन में काशी विश्वनाथ का दर्शन करने के लिए जरूर आता है।
विश्वनाथ मंदिर के अंदर एक गर्भगृह है जो काले पत्थर से बना एक मंडप और शिवलिंग को समेटे हुए है। यह चांदी की चौकोर वेदी में स्थापित है।मंदिर परिसर में कालभैरव, भगवान विष्णु और विरूपाक्ष गौरी के छोटे छोटे मंदिर हैं।
ऐसा माना जाता है कि पृथ्वी के निर्माण के समय सूर्य की पहली किरण काशी यानी वाराणसी पर पड़ी। मान्यता है कि भगवान शिव स्वयं मंदिर में कुछ समय के लिए रुके थे और वे इस शहर के संरक्षक हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर के कारण वाराणसी को बाबा भोले की नगरी या शिव नगरी कहा जाता है। बाबा विश्वनाथ के नाम से दुनिया भर में प्रसिद्ध यह शिवलिंग 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कहा जाता है कि गंगा किनारे स्थापित इस मंदिर की स्थापना 1490 में हुई थी।
ऐसी पौराणिक मान्यता है कि भगवान शिव गंगा के किनारे इस नगरी में निवास करते हैं। उनके त्रिशूल की नोक पर काशी बसी है। भगवान शिव काशी के पालक और संरक्षक है, जो यहां के लोगों की रक्षा करते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर के ऊपर एक सोने का छत्र लगा हुआ है। ऐसा मान्यता है कि इस छत्र के दर्शन से लोगों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के बारे में एक और बात कही जाती है कि जब पृथ्वी का निर्माण हुआ तो सूर्य की पहली किरण काशी पर ही पड़ी थी।
काशी नगरी को मोक्ष की नगरी भी कहा जाता है। मान्यता है कि बाबा विश्वनाथ के दरबार में उपस्थिति मात्र से ही भक्त को जन्म-जन्मांतर के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। सावन के माह में बाबा विश्वनाथ के दरबार में हाजिरी लगाने के लिए देश-विदेश से लोग आते हैं। उस दौरान अभिषेक से भगवान शिव जल्द प्रसन्न होते हैं और भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। हालांकि, सोमवार के दिन भी यहां भारी संख्या में भक्त काशी के राजा महादेव के दर्शनों के लिए विशेष तौर पर आते हैं।
इस मंदिर को आक्रमणकारियों ने कई बार निशाना बनाया। मुगल सम्राट अकबर ने प्राचीन मंदिर को दोबारा बनवाने का आदेश दिया था, जिसे बाद में औरंगजेब ने तोड़वा डाला। वहां पर उसने मस्जिद का निर्माण कराया, जो ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि लोगों को जब पता चला कि औरंगजेब इस मंदिर को तोड़ना चाहता है तो भगवान शिव के ज्योतिर्लिंग को एक कुएं में छिपा दिया गया। वह कुआं आज भी मंदिर और मस्जिद के बीच में स्थित है।
काशी विश्वनाथ मंदिर का महत्व – Importance of Kashi Vishwanath Temple –
पवित्र गंगा के तट पर स्थित, वाराणसी को हिंदू शहरों में सबसे पवित्र माना जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर को हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण पूजा स्थलों में से एक के रूप में जाना जाता है। काशी विश्वनाथ मंदिर के अंदर शिव, विश्वेश्वर या विश्वनाथ का ज्योतिर्लिंग है। विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग का भारत के आध्यात्मिक इतिहास में बहुत ही विशिष्ट और अद्वितीय महत्व है। आदि गुरु शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, बामाखापा, गोस्वामी तुलसीदास, स्वामी दयानंद सरस्वती, सत्य साईं बाबा और गुरुनानक सहित कई प्रमुख संतों ने इस काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन किये है।
काशी विश्वनाथ मंदिर की यात्रा और गंगा नदी में स्नान कई तरीकों में से एक है जो मोक्ष के मार्ग पर ले जाता है। इस प्रकार, दुनिया भर के हिंदू भक्त अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार काशी विश्वनाथ मंदिर के इस स्थान पर आने की कोशिश करते हैं। काशी विश्वनाथ मंदिर की अपार लोकप्रियता और पवित्रता के कारण, भारत भर में सैकड़ों मंदिरों को एक ही स्थापत्य शैली में बनाया गया है।
कई किंवदंतियों में कहा गया है कि सच्चा भक्त शिव की पूजा से मृत्यु और सौराष्ट्र से मुक्ति प्राप्त करता है, मृत्यु पर शिव के भक्तों को उनके दूतों द्वारा सीधे कैलाश पर्वत पर उनके निवास पर ले जाया जाता है और यम को नहीं। एक प्रचलित धारणा है कि शिव स्वयं मोक्ष के मंत्र को विश्वनाथ मंदिर में स्वाभाविक रूप से मरने वाले लोगों के कान में डालते हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर में पूजा और दर्शन का समय – Time for worship and visit at Kashi Vishwanath Temple –
श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में श्री काशी विश्वनाथ की 5 आरतियाँ हैं:
मंगला आरती: – 3.00 – 4.00 सुबह।
भोग आरती: – 11.15 से 12.20 दिन।
संध्या आरती: – 7.00 से 8.15 शाम।
शृंगार आरती: – 9.00 से 10.15 रात।
शयन आरती: – 10.30-11.00 रात्रि।
सुरक्षा व्यवस्था के लिए मंदिर के अंदर किसी भी प्रकार के सेल फोन, कैमरा, धातु की बक्कल के साथ बेल्ट, सिगरेट, लाइटर आदि ले जाने की अनुमति नहीं दी जाती है। काशी विश्वनाथ मंदिर भोर में ढाई बजे खुलता है। मंदिर खुलने के बाद सुबह तीन से चार बजे के बीच मंगला आरती होती है। यह बहुत विशेष प्रकार की आरती है, जिसमें शामिल होने के लिए शुल्क लगता है।
इसके बाद सुबह चार बजे से ग्यारह बजे तक मंदिर श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाता है। 11:15 से 12:20 के बीच भोगी आरती होती है और मंदिर के देवालय का फाटक बंद कर दिया जाता है। इसके बाद दो बजे के बाद मंदिर फिर से खुलता है। सात बजे से सवा आठ बजे तक सप्त ऋषि या सांध्य आरती होती है, नौ बजे से सवा दस बजे तक श्रृंगार आरती होती है और साढ़े दस बजे से 11 बजे के बीच शयन आरती होती है। रात ग्यारह बजे मंदिर बंद हो जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर जाने का अच्छा समय –
काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन पूजन करने के लिए जाना चाहते हैं तो आप साल के किसी भी महीने में जा सकते हैं। लेकिन यदि आप काशी विश्वनाथ मंदिर के अलावा वाराणसी के अन्य पर्यटन स्थल देखना चाहते हैं। तो वाराणसी जाने का सबसे अच्छा समय नवंबर से फरवरी के बीच होता है। बरसात के समय में गंगा का जलस्तर बढ़ने के कारण घाट और सीढ़ियां डूब जाती हैं।
जिसके कारण आप वहां का मनमोहक दृश्य नहीं देख पाएंगे। इसके अलावा वाराणसी में मार्च से लेकर सितंबर माह तक गर्मी और उमस भी खूब होती है। इसलिए काशी विश्वनाथ मंदिर दर्शन के लिए जाने का उत्तम समय नवंबर से फरवरी के बीच है।
काशी विश्वनाथ मंदिर कैसे पहुंचे –
यह काशी विश्वनाथ मंदिर वाराणसी के मुख्य शहर में स्थित है इसलिए यहां बहुत आसानी से पहुंचा जा सकता है। यह शहर भारत के अन्य शहरों या राज्यों से विभिन्न सड़क मार्ग, रेल मार्ग और हवाई मार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इसलिए काशी विश्वनाथ मंदिर आने वाले पर्यटकों को यात्रा करना बेहद आसान होता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर हवाई जहाज से कैसे पहुंचे ?-
लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डा वाराणसी का मुख्य एयरपोर्ट है जो विश्वनाथ मंदिर से 25 किलोमीटर दूर बाबतपुर में स्थित है। यह हवाई अड्डा दिल्ली और मुंबई जैसे मेट्रो शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। ज्यादातर टूरिस्ट दिल्ली एयरपोर्ट से फ्लाइट पकड़कर वाराणसी पहुंचते हैं। हवाई अड्डा के बाहर से आप टैक्सी, ऑटो रिक्शा या फिर कैब लेकर काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंच सकते हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रेन से कैसे पहुंचे ?- How to reach Kashi Vishwanath Temple by train?
वाराणसी में कई रेलवे स्टेशन हैं। वाराणसी सिटी स्टेशन मंदिर से केवल 2 किलोमीटर दूर है, जबकि वाराणसी जंक्शन लगभग 6 किलोमीटर दूर है। मंडुआडीह स्टेशन से विश्वनाथ मंदिर 4 किलोमीटर है। वाराणसी के ये सभी स्टेशन भारत के प्रमुख रेलवे स्टेशन से जुड़े हुए हैं, जहां आप ट्रेन से पहुंच सकते हैं। इसके बाद टैक्सी या ऑटो रिक्शा से विश्वनाथ मंदिर पहुंच सकते हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर सड़क मार्ग से कैसे पहुंचे ?-
कई राज्यों से सरकारी और निजी परिवहन बसें वाराणसी आती हैं। इसके अलावा भारत के टियर 1 और टियर 2 शहरों से भी बसें वाराणसी पहुंचती है। इन बसों से वाराणसी स्थित कैंट बस अड्डे पर पहुंचने के बाद आप लाहोरी टोला स्थित श्री काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंचने के लिए टैक्सी, ऑटो रिक्शा या भी कैब बुक कर सकते हैं। इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर पहुंचने के बाद आपको बेहद संकरी गलियों से पैदल चलकर मुख्य मंदिर तक पहुंचना पड़ेगा। इस संकरी गली को विश्वनाथ गली के नाम से जाना जाता है।
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