humayun tomb – हुमायूँ का मकबरा ताजमहल के 60 वर्षों से पहले निर्मित मुगल सम्राट हुमायूं का अंतिम विश्राम स्थल है जो दिल्ली के निज़ामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में स्थित है और भारतीय उपमहाद्वीप में पहला उद्यान मकबरा है।
हुमायूँ का मकबरा दिल्ली का एक प्रमुख ऐतिहासिक और पर्यटन स्थल है, जो भारी संख्या में इतिहास प्रेमियों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। हुमायूँ का मकबरा अपने मृत पति के लिए पत्नी के प्यार को प्रदर्शित करता है।
हुमायु का मकबरा – Humayun Tomb
फ़ारसी और मुग़ल स्थापत्य तत्वों को शामिल करते हुए इस उद्यान मकबरे का निर्माण 16 वीं शताब्दी के मध्य में मुगल सम्राट हुमायूँ की स्मृति में उनकी पहली पत्नी हाजी बेगम द्वारा बनाया गया था।
humayun tomb की सबसे खास बात यह है कि यह उस समय की उन संरचनाओं में से एक है जिसमें इतने बड़े पैमाने पर लाल बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया था।
अपने शानदार डिजाइन और शानदार इतिहास के कारण हुमायूँ का मकबरा को साल 1993 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया था। हुमायूँ के मकबरे की वास्तुकला इतनी ज्यादा आकर्षित है कि कोई भी इसे देखे बिना नहीं रह पाता।
यह शानदार मकबरा एक बड़े अलंकृत मुगल गार्डन के बीच में स्थित है और इसकी सुंदरटा सर्दियों के मौसम में काफी बढ़ जाती है। हुमायूँ का मकबरा यमुना नदी के तट पर स्थित है|
यह अन्य मुगलों के अवशेषों का भी घर है, जिनमें उनकी पत्नियाँ, पुत्र और बाद के सम्राट शाहजहाँ के वंशज, साथ ही कई अन्य मुगल भी शामिल हैं।
नाम | हुमायु का मकबरा |
स्थान | दिल्ही |
किसने बनवाया | मिराक मिर्ज़ा घियास |
निर्माणकार्य शुरू | सन 1565 |
निर्माणकार्य पूर्ण | सन 1572 |
प्रकार | मकबरा |
वास्तुकला शैली | मुगल शैली |
मकबरे की ऊंचाई | 47 मीटर |
मकबरे की चौड़ाई | 300 फीट |
उपयोग की गई सामग्री | लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर |
यूनेस्को में स्थान | सन 1993 |
हुमायूँ के मकबरे का रोचक इतिहास –
1533 में मुग़ल शासक हुमायूँ द्वारा स्थापित पुराना किला के नजदीक दिल्ली के निजामुद्दीन ईस्ट में स्थापित है। और बनाते समय उसमे लाल पत्थरो का उपयोग किये जाने वाला यह पहला मकबरा है।
1993 में इस मकबरे को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट घोषित किया गया था और तभी से यह मकबरा पुरे विश्व में प्रसिद्ध है।
humayun tomb के अन्दर बहुत से स्मारक भी है जैसे ही हम मकबरे के दक्षिणी द्वार में प्रवेश करते है वैसे ही हमें रास्ते में बने छोटे-छोटे स्मारक दिखाई देते है।इसे हुमायूँ के मुख्य मकबरों में से एक माना जाता था।
मुग़ल कालीन प्रसिद्ध इमारतो और धरोहरों में हुमायूँ का मकबरा भी शामिल है और इसके साथ ही चारबाग गार्डन, जो एक पर्शियन गार्डन की तरह लगता है वह भी शामिल है क्योकि इस तरह का गार्डन भारत मंर कभी नही देखा गया था।

इसके साथ ही उन्होंने अपने पिता और पहले मुग़ल शासक बाबर की भी समाधी काबुल (अफगानिस्तान) में बनवायी थी जिसे बाग-ए-बाबर कहा जाता था। और तभी से मुगल साम्राज्य में शासको की मृत्यु के बाद उनकी याद में जन्नत का बाग़ बनाने की प्रथा शुरू हुई।
यमुना का तट निजामुद्दीन दरगाह के निकट होने के कारण ही हुमायूँ के मकबरे को यमुना तट पर ही बनाया गया था और वही मकबरे के पास दिल्ली के सूफी संत निजामुद्दीन औलिया की भी कब्र है।
बाद में मुगल इतिहास के अंतिम शासक बहादुर शाह ज़फर यहाँ शरणार्थी बनकर आये थे, 1857 की क्रांति के समय, अपनी तीन बेगमो के साथ कप्तान होड्सों ने उन्हें पकड़ लिया था और रंगून में कैद कर के रखा था।
फिर बाद में गुलाम वंश के काल में यह ज़मीन नसीरुद्दीन (1268-1287) के बेटे सुल्तान केकुबाद की राजधानी में “किलोखेरी किला” के नाम से जानी जाती थी।
बत्ताशेवाला मकबरा भी हुमायूँ के मकबरे के वर्ल्ड हेरिटेज साईट के पास ही है, इन दोनों मकबरों को बिच में एक दीवार बनाकर अलग किया गया है जहा पे एक छोटा रास्ता भी बना हुआ है।
हुमायूँ के मकबरे को कब और किसने बनवाया था – When and who built Humayun tomb
20 जनवरी 1556 को हुमायूँ की मृत्यु के बाद उनके शरीर को पहले दिल्ली के पुराना किले में दफनाया गया। बाद में उन्हें खंजर बेग पंजाब के सिरहिंद ले गये|
क्योकि उन्हें डर था की कही हिन्दू राजा हेमू जिसने अक्टूबर 1556 में आगरा और दिल्ली में मुगल सेना को पराजित किया था कही वह पुराना किला हासिल कर के मकबरे को नुकसान न पहोचाये।
1558 में मकबरे की देखरेख उनके बेटे मुगल शासक अकबर ने की थी। अकबर मकबरे को 1571 में देखने गये थे जिस समय लगभग वह पूरी तरह से बन चूका था।
humayun tomb मुगल साम्राज्य के तीसरे शासक अकबर के आदेश से मिराक मिर्ज़ा घियास ने बनाया गया था, उनकी मौत के 9 साल बाद 1565 में इसका निर्माणकार्य शुरू हुआ था और 1572 में इसका निर्माणकार्य पूरा हुआ था|
उस समय इस मकबरे को बनाने में तक़रीबन 1.5 मिलियन रुपये लगे थे।हुमायूँ की पत्नी अर्नव देओरुखर ने उनकी काफी सहायता की थी। बिल्डिंग और कब्र को बनाने में लगने वाले पैसे बेगा बेगम ने दिये थे।
जब 1556 में हुमायूँ की मृत्यु हो गयी थी तो उनकी मौत का बेगा बेगम को काफी अफ़सोस हुआ था और इसीलिये उन्होंने हुमायूँ की याद में मकबरा-ए-हुमायूँ बनाने की ठानी। आईने-ए-अकबरी के अनुसार 16 वी शताब्दी में अकबर के शासनकाल में इस मकबरे पर डॉक्यूमेंट्री बनायी गयी थी।
हुमायूँ का मकबरे की वास्तुकला –
अब्द-अल-कादिर बंदायूनी, एक समकालीन इतिहासकार के अनुसार इस मकबरे का स्थापत्य फारसी वास्तुकार मीराक मिर्ज़ा घियास (मिर्ज़ा थियाउद्दीन) ने किया था, जिन्हें हेरात, बुखारा (वर्तमान उज्बेकिस्तान में) से विशेष रूप से इस ईमारत के लिये बुलवाया गया था।
इन्होने हेरात की और भारत की भी कई इमारतो की अभिकल्पना की थी। इस ईमारत के पूरा होने से पहले ही वे चल बसे, किन्तु उनके पुत्र सैयद मुहम्मद इब्न मीराक थियाउद्दीन ने अपने पिता का कार्य पूरा किया और मकबरा 1571 में बनकर पूरा हुआ।
एक इंग्लिश व्यापारी, विलियम फिंच 1611 में मकबरे को देखने आया था, उसने बाद में अपने लेख में मकबरे की आतंरिक सुन्दरता, शामियाने, कब्र और दीवारों पर की गयी कलाकृतियों के बारे में बताया।

उसने लिखा है कि केन्द्रीय कक्ष की आंतरिक सज्जा आज के खालीपन से अलग बढ़िया कालीनों व गलीचों से परिपूर्ण थी। कब्रों के ऊपर एक शुद्ध श्वेत शामियाना लगा होता था और उनके सामने ही पवित्र ग्रंथ रखे रहते थे।
इसके साथ ही हुमायूँ की पगड़ी, तलवार और जूते भी रखे रहते थे। यहां के चारबाग 13 हेक्टेयर क्षेत्र में फ़ैले हुए थे। आने वाले वर्षों में ये सब तेजी से बदलता गया। इसका मुख्य कारण राजधानी का आगरा स्थानांतरण था।
बाद के मुगल शासकों के पास इतना धन नहीं रहा कि वे इन बागों आदि का मंहगा रख रखाव कर सकें। 18वीं शताब्दी तक यहां स्थानीय लोगों ने चारबागों में सब्जी आदि उगाना आरंभ कर दिया था।
1860 में मुगल शैली के चारबाग अंग्रेज़ी शली में बदलते गये। इनमें चार केन्द्रीय सरोवर गोल चक्करों में बदल गये व क्यारियों में पेड़ उगने लगे। बाद में 20 वीं शताब्दी में लॉर्ड कर्ज़न जब भारत के वाइसरॉय बने, तब उन्होंने इसे वापस सुधारा।
1903-09 के बीच एक वृहत उद्यान जीर्णोद्धार परियोजना आरंभ हुई, जिसके अंतर्गत्त नालियों में भी बलुआ पत्थर लगाया गया।
1915 में पौधारोपण योजना के तहत केन्द्रीय और विकर्णीय अक्षों पर वृक्षारोपण हुआ। इसके साथ ही अन्य स्थानों पर फूलों की क्यारियां भी वापस बनायी गईं।
भारत के विभाजन के समय, अगस्त, 1947 में पुराना किला और हुमायुं का मकबरा भारत से नवीन स्थापित पाकिस्तान को लिये जाने वाले शरणार्थियों के लिये शरणार्थी कैम्प में बदल गये थे।
बाद में इन्हें भारत सरकार द्वारा अपने नियंत्रण में ले लिया गया। ये कैम्प लगभग पांच वर्षों तक रहे और इनसे स्मारकों को अत्यधिक क्षति पहुंची, खासकर इनके बगीचों, पानी की सुंदर नालियों आदि को।
इसके उपरांत इस ध्वंस को रोकने के लिए मकबरे के अंदर के स्थान को ईंटों से ढंक दिया गया, जिसे आने वाले वर्षों में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण विभाग ने वापस अपने पुराने रूप में स्थापित किया।
हालांकि 1985 तक मूल जलीय प्रणाली को सक्रिय करने के लिये चार बार असफल प्रयास किये गए।मार्च 2003 में आगा खान सांस्कृतिक ट्रस्ट द्वारा इसका जीर्णोद्धार कार्य सम्पन्न हुआ था।
इस जीर्णोद्धार के बाद यहां के बागों की जल-नालियों में एक बार फिर से जल प्रवाह आरंभ हुआ। इस कार्य हेतु पूंजी आगा खान चतुर्थ की संस्था के द्वारा उपहार स्वरूप प्रदान की गई थी।
चार बाग गार्डन हुमायूँ का मकबरा – Char Bagh Garden Humayun Tomb
मुख्य इमारत के निर्माण में आठ वर्ष लगे, किन्तु इसकी पूर्ण शोभा इसको घेरे हुए 30 एकड़ में फैले चारबाग शैली के मुगल उद्यानों से निखरती है। ये उद्यान भारत ही नहीं वरन दक्षिण एशिया में अपनी प्रकार के पहले उदाहरण थे।
ये उच्च श्रेणी की ज्यामिती के उदाहरण हैं। जन्नत रूपी उद्यान चहार दीवारी के भीतर बना है।ये उद्यान चार भागों में पैदल पथों (खियाबान) और दो विभाजक केन्द्रीय जल नालिकाओं द्वारा बंटा हुआ है।
ये इस्लाम के जन्नत के बाग में बहने वाली चार नदियों के परिचायक हैं। इस प्रकार बने चार बागों को फिर से पत्थर के बने रास्तों द्वारा चार-चार छोटे भागों में विभाजित किया गया है। इस प्रकार कुल मिलाकर 32 भाग बनते हैं।
केन्द्रीय जल नालिका मुख्य द्वार से मकबरे तक जाती हुई उसके नीचे जाती और दूसरी ओर से फिर निकलती हुई प्रतीत होती है, ठीक जैसा कुरआन की आयतों में ’जन्नत के बाग’ का वर्णन किया गया है।
मकबरे को घेरे हुए चारबाग हैं, व उन्हें घेरे हुए तीन ओर ऊंची पत्थर की चहार दीवारी है व तीसरी ओर कभी निकट ही यमुना नदी बहा करती थी, जो समय के साथ परिसर से दूर चली गई है।
केन्द्रीय पैदल पथ दो द्वारों तक जाते हैं, एक मुख्य द्वार दक्षिणी दीवार में और दूसरा छोटा द्वार पश्चिमी दीवार में। ये दोनों द्वार दुमंजिला हैं। इनमें से पश्चिमी द्वार अब प्रयोग किया जाता है, व दक्षिणी द्वार मुगल काल में प्रयोग हुआ करता था और अब बंद रहता है।
पूर्वी दीवार से जुड़ी हुई एक बारादरी है। इसमें नाम के अनुसार बारह द्वार हैं और इसमें ठंडी बहती खुली हवा का आनंद लिया जाता था।
उत्तरी दीवार से लगा हुआ एक हम्माम है जो स्नान के काम आता था। मकबरे के परिसर में चारबाग के अंदर ही दक्षिण-पूर्वी दिशा में 1590 में बना नाई का गुम्बद है। इसकी मुख्य परिसर में उपस्थिति दफ़नाये गये व्यक्ति की महत्ता दर्शाती है। वह शाही नाई हुआ करता था।
यह मकबरा एक ऊंचे चबूतरे पर बना है जिस पहुंचने के लिये दक्षिण ओर से सात सीढ़ियां बनी हैं। यह वर्गाकार है और इसके अकेले कक्ष के ऊपर एक दोहरा गुम्बद बना है।
अंदर दो कब्रों पर कुरआन की आयतें खुदी हुई हैं।इनमें से एक कब्र पर 999 अंक खुदे हैं, जिसका अर्थ हिजरी का वर्ष 999 है जो 1590-91 ई. बताता है।
हुमायूँ के मक़बरे के बारे में रोचक तथ्य – Interesting facts about Humayun tomb
humayun tomb को उनकी मृत्यु के नौ साल बाद बनवाया गया था।
इसका निर्माण फ़ारसी वास्तुकार मिराक मिर्ज़ा गियाथ के डिजाइन पर 1565 से 1572 ईसवी के बीच हुआ था।
एक समकालीन इतिहासकार अब्द-अल-कादिर बदांयुनी के अनुसार इस मकबरे का निर्माण 1565 से 1572 ईसवी के बीच स्थापत्य फारसी वास्तुकार मिराक मिर्ज़ा गियाथ (मिर्ज़ा घियाथुद्दीन) द्वारा किया था |
जिन्हें हेरात, बुखारा (वर्तमान उज़्बेकिस्तान में) से विशेष रूप से इस इमारत के लिये बुलवाया गया था।
इसे मकबरे को बनाने में मूलरूप से पत्थरों को गारे-चूने से जोड़कर किया गया है और उसे लाल बलुआ पत्थर से ढंका हुआ है। इसके निर्माण में सर्वप्रथम लाल बलुआ पत्थर का इतने बड़े स्तर पर प्रयोग हुआ था।
इसके ऊपर पच्चीकारी, फर्श की सतह, झरोखों की जालियों, द्वार-चौखटों और छज्जों के लिये सफ़ेद संगमरमर के पत्थरों का प्रयोग किया गया है।
जब इस मकबरे का निर्माण किया गया था, तब इसकी लागत 15 लाख रुपये थी।
इस इमारत में अन्दर जाने के लिये दो 16 मीटर ऊंचे दुमंजिले प्रवेशद्वार पश्चिम और दक्षिण में बने हैं।
मुख्य इमारत के ईवान पर सितारे के समान बना एक छः किनारों वाला सितारा मुख्य प्रवेश द्वार को ओर भी आकर्षक बना देता है।
इस मकबरे की ऊंचाई 47 मीटर और चौड़ाई 300 फीट है।
इस मकबरे पर एक फारसी बल्बुअस गुम्बद भी बना हुआ है। यह गुम्बद 42.5 मीटर के ऊंचे गर्दन रूपी बेलन पर बना है। जिसके ऊपर 6 मीटर ऊंचा पीतल का किरीट कलश स्थापित है और उसके ऊपर चंद्रमा लगा हुआ है, जो तैमूर वंश के मकबरों में मिलता है।
इस इमारत में मुख्य केन्द्रीय कक्ष सहित नौ वर्गाकार कमरे बने हुए हैं। इनमें बीच में बने मुख्य कक्ष को घेरे हुए शेष 8 दुमंजिले कक्ष बीच में खुलते हैं।
यह बगीचे युक्त मकबरा चारों तरफ से दीवारों से घिरा है जिसमें सुन्दर बगीचे, पानी के छोटी नहरें, फव्वारे, फुटपाथ और अन्य प्रकार की आकर्षक चीजें देखी जा सकती हैं।
ये मकबरा मुगलों द्वारा निर्मित हुमायुं के पिता बाबर के काबुल स्थित मकबरे बाग-ए-बाबर से बिल्कुल अलग था।
बाबर को मकबरे में दफनाने के साथ ही सम्राटों को बाग में बने मकबरों में दफ़्न करने की परंपरा आरंभ हुई थी।
बाद में यही पर मुग़लों के शाही परिवार के अन्य सदस्यों को दफ़नाया गया था।
इस जगह पर हमीदा बेगम (अकबर की मां), दारा शिकोह (शाहजहाँ का बेटा) और बहादुर शाह ज़फ़र द्वितीय (अंतिम मुग़ल शासक) का मक़बरा भी है।
इस मक़बरे की देखरेख भारतीय पुरातत्त्व विभाग द्वारा की जाती है।
इस मक़बरे में भारतीय परम्परा एवं पारसी शैली की वास्तुकला का चित्रण साफ़ दिखाई देता है।
हुमायूँ के मकबरे में दफनाये गये मुगल घरानों के लोग – People of Mughal houses buried in Humayun tomb
बेगाबेगम,
हमीदाबानू बेगम,
हुमायूँ की छोटी बेगम,
दारा शिकोह,
जहांदारशाह,
फर्रुखशियर,
रफीउरद्दरजात,
रफीउद्दौला,
आलमगीर द्वितीय
मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर और उसके तीन शहजादों
हुमायु मकबरे का प्रवेश शुल्क –
भारत के नागरिकों और सार्क के पर्यटकों (बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, पाकिस्तान, मालदीव और अफगानिस्तान) तथा बिम्सटेक देशों (बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, थाईलैंड और म्यांमार) के पर्यटकों से 10 रुपये प्रति आगुंतक।
अन्य देशों के लिए: 5 अमेरिका डॉलर या Rs. 250/- प्रति व्यक्तिशुल्क लिया जाता है। 15 वर्ष तक के बच्चों के लिए प्रवेश निशुल्क है
हुमायूँ के मकबरे को देखने का समय –
हुमायूँ का मकबरा को यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट घोषित किया गया हैं इसलिए यहाँ बहुत से पर्यटन आते रहते हैं। इसे देखने का समय सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक का हैं।
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