rani ki vav एक बहोत सख्ताई के साथ बनायी गयी बावड़ी है, जो भारत में गुजरात के पाटन गाँव में स्थित है। रानी की वाव सरस्वती नदी के किनारे पर स्थित है।
रानी की वाव का निर्माण 11 वी शताब्दी में ए.डी. किंग की याद में बनायी गयी थी। 22 जून 2014 को रानी की वाव को यूनेस्को विश्व धरोहर में भी शामिल किया गया है। रानी की वाव भूमिगत पानी स्त्रोतों से थोड़ी अलग है और प्राचीन समय में काफी समय पहले ही इसका निर्माण किया गया है ।
रानी की वाव मारू-गुर्जरा आर्किटेक्चर स्टाइल में वाव का निर्माण किया गया है । इसके भीतर एक मंदिर और सीढियों की सात लाइनेभी है उनमेसे 500 से भी ज्यादा मुर्तिकलाओ का प्रदर्शन किया गया गया है।
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रानी की वाव का इतिहास – History of Rani ki Vav
अपनी अनोखी वास्तुशैली के लिए विश्व में प्रख्यात यह विशाल रानी की वाव गुजरात के पाटन शहर में स्थित है। इस भव्य वाव का निर्माण सोलंकी वंश के शासक भीमदेव की पत्नी उदयमति ने 10वीं-11वीं सदी में अपने स्वर्गवासी पति की स्मृति में करवाया था। करीब 1022 से 1063 के बीच इस 7 मंजिला वाव का निर्माण किया गया था।
सोलंकी राजवंश के राजा भीमदेव ने वडनगर , गुजरात पर ई.स1021 से 1063 तक राज किया था। अहमदाबाद से करीबन 140 कि.मि की दूरी पर बनी यह ऐतिहासिक धरोहर रानी की वाव प्रेम का प्रतीक माना जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इस अनोखी बावड़ी के निर्माण पानी का उचित प्रबंध करने के लिए किया गया था, क्योंकि इस क्षेत्र में वर्षा बेहद कम होती थी

जबकि कुछ लोककथाओं के मुताबिक रानी उदयमती ने जरूरतमंद लोगों को पानी प्रदान कर पुण्य कमाने के उद्देश्य से इस विशाल बावड़ी का निर्माण करवाया था।
रानी की वाव सरस्वती नदी के किनारे पर स्थित है | यह विशाल सीढ़ी आकार कीवाव कई वर्षो तक इस नदीं में आने वाली बाढ़ की वजह से धीमे-धीमे मिट्टी और कीचड़ के मलबे में दब गई थी,
जिसके बाद करीब 80 के दशक में भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण विभाग ने इस जगह की खुदाई की। काफी खुदाई करने के बाद यह बावड़ी पूरी दुनिया के सामने आई।
रानी की वाव की अच्छी बात यह है कि वर्षो तक कीचड़ में दबने के बाद भी रानी की वाव की मूर्तियां और शिल्पकारी बहोत अच्छी स्थिति में पाए गए है ।
रानी की वाव कहा स्थित है – Where is Rani Ki Vav located
अपनी अनूठी वास्तुशैली के लिए विश्व भर में मशहूर यह विशाल रानी की वाव गुजरात के पाटन शहर में स्थित है अहमदाबाद से करीब 140 किलोमीटर की दूरी पर बनी यह ऐतिहासिक धरोहर रानी की वाव प्रेम का प्रतीक मानी जाती है।
रानी की वाव का निर्माण किसने करवाया था – Who built the Rani Ki Vav
इस भव्य बावड़ी का निर्माण सोलंकी वंश के शासक भीमदेव की पत्नी उदयमति ने में अपने स्वर्गवासी पति की स्मृति में करवाया था।
रानी की वाव का निर्माण कब करवाया था – When was the rani ki Vav built
रानी की वाव का निर्माण करीब 1022 से 1063 के बीच इस 7 मंजिला बावड़ी का निर्माण किया गया था।
रानी की वाव का निर्माण क्यों किया था – Why did you build Rani Ki Vav
rani ki vav का निर्माण सोलंकी शासन के समय में किया गया था। प्राचीन मान्यताओ केमतानुसार वाव का निर्माण सोलंकी साम्राज्य के स्थापकमूलराज के पुत्र भीमदेव प्रथम की याद में ई.स 1022 से 1063 में समय में उनकी विधवा पत्नी उदयामती ने बनवाया था, जिसे बाद में करणदेव प्रथम ने भी पूरा किया था।
रानी की वावमें बाद में सरस्वती नदी के कारण पूरी तरह से जल प्राप्त कर लिया था | और ई.स1980 तक यहवाव पूरी तरह से पानी से भरी रहती थी।
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परन्तु बाद कुछ ही समय बाद जब पुरातन आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया ने इसे वाव को खोज दिया था | तब वाव की हालत बहोत ख़राब थी |
रानी की वाव की अद्भुत बनावट एवं संरचना – The amazing texture and structure of Rani ki Vav
गुजरात में स्थित रानी वाव का निर्माण ई.स 1022 से 1063 की वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। इस वाव का निर्माणगुर्जर स्थापत्य शैली का इस्तेमाल किया गया है।
इस जल संग्रह प्रणाली के इस नायाब नमूने को इस तरह बनाया गया है कि इसमें यह जल संग्रह की उचित तकनीक, बारीकियों और अनुपातों की अत्यंत सुंदर कला क्षमता की जटिलता को बेहतरीन ढंग से प्रदर्शित करती हैं।
इस भव्य बावड़ी की पूरी बनावट भू-स्तर के नीचे निर्माण किया गया है, वाव की लंबाई करीबन 64 मीटर, चौड़ाई करीबन 20 मीटर है और यह वाव 27 मीटर गहरी है।

यह अपने समय की सबसे प्राचीनतम और आकर्षित स्मारकों में से एक है। इस वाव की दीवारों पर बेहतरीन आकर्षित शिल्पकारी और सुंदर मूर्तियों की नक्काशी की गई है।
रानी की वाव की सीढ़ियों पर बनी उत्कृष्ट मुर्तिया यहां आने वाले पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर लेती हैं। रानी की वाव के प्रवेश द्धारा से वाव की गहराई तक यह अनोखी वाव पूरी तरह से उत्कृष्ट शिल्पकारी से सुसज्जित है। इस विशाल वाव कीअदभुत रचना और अद्धितीय शिल्पकारी से प्रसिद्ध है |
सबसे खास बात यह है कि यह बावड़ी बाहरी दुनिया के कटे होने की वजह से काफी अच्छी परिस्थिति में है।
रानी की वाव क्या है – What is Rani Ki Vav
रानी की वाव एक प्राचीन सीढ़ीदार कुआ हैं।
रानी की वाव का रहस्य क्या है – What is the secret of Rani ki Vav
रानी की वाव की दीवारों और खंभों पर भगवान विष्णु के अवतार राम, वामन, महिषासुरमर्दिनी, कल्कि के अवतारों को बहुत खूबसूरती के साथ नकाशा गया है।
इमारत में हजार से भी ज्यादा छोटे-बड़े स्कल्पचर है। इस वाव में 30 कि.मी लंबी एक रहस्यमयी सुरंग भी निकलती है, जो पाटण के सिद्धपुर में जाकर खुलती है।
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इस खुफिया रास्ते का इस्तेमाल राजा और उसका परिवार युद्ध के वक्त कर सकता था। एक मान्यता यह भी हैं की इस वाव में नहाने से बीमारियां नहीं होती। इसका कारण यह माना जाता है कि इसके आस-पास आयुर्वेदिक पौधे लगे हुए हैं, जो औषधि का काम करते हैं।
रानी की वाव में अलंकृत मूर्तियों से बनी है दीवारे – The walls are made of ornate statues in the rani ki Vav
rani ki vav में बनी बहुत सी मूर्तियों में ज्यादा भगवान विष्णु से संबंधित है। भगवान विष्णु के दस अवतार के रूप में वाव में मूर्तियों का निर्माण किया गया है, जिनमे मुख्य रूप से कल्कि, राम, कृष्णा, नरसिम्हा, वामन, वाराही और दुसरे मुख्य अवतार भी शामिल है।
इसके साथ-साथ बावड़ी में नागकन्या और योगिनी जैसी सुंदर अप्सराओ की कलाकृतियाँ भी बनायी गयी है। बावड़ी की कलाकृतियों को अद्भुत और आकर्षित रूप में बनाया गया है।
आज से क़रीबन 500 -600 वर्षो पहले के ज़माने के आयुर्वेदिक पौधे आज भी रानी की वाव में देखने को मिलते है, जिनका उपयोग प्राचीन समय में बहुत ही गंभीर बीमारियों से बचाने के लिए किया करते थे ।
गुजरात में निर्मित यह वाव का महत्व सिर्फ पानी एकठ्ठा करने के लिए नही परन्तु इसका आध्यात्मिक महत्व है। गुजरात की रानी की वाव का निर्माण प्राचीन टेक्नोलॉजी में ही किया गया है,
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रानी की वाव के अंदर मंदिर और गुप्त सुरंग भी मौजूद है। जैसे-जैसे हम वाव के अंदर जाते है, वैसे-वैसे इसमें पानी का प्रमाण बढ़ते जाता है।
रानीकी वाव में निचे तक सीढियाँ बनी हुई है। और इस बीच के वाव की दीवारों पर अलंकृत और कलात्मक मुर्तिया है और दीवारों पर विविध कला और मूर्तियों क भी कण्डारित की गयी है।
इन कला, मुर्तिया और कृतियो में मुख्य विष्णु के दस अवतार , ब्रह्मा, नर्तकी और मन को मोह लेने वाले दृश्यों की कलाकृतियाँ शामिल है। वाव में जहाँ स्थान पर पानी की सतह है वहाँ पर भगवान विष्णु के शेषनाग वाले अवतार को देखने को मिलता है।
रानी की वाव से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
गुजरात के पाटन में स्थित यह ऐतिहासिक रानी की वाव दुनिया की ऐसी इकलौती वाव मौजूद है, जिसें अपनी अद्भुत संरचना और अनोखी संरचना एवं ऐतिहासिक महत्व के साथ -साथ विश्व धरोहर में शामिल किया गया है । यही नहीं विश्व प्रसिद्ध यह वाव इस बात का भी उदाहरण है कि प्राचीन भारत में वॉटर मैनेजमेंट सिस्टम कितना बेहतरीन और शानदार था।
प्रेम का प्रतीक मानी जाने वाली इस विशाल रानी की वाव का निर्माण करीबन 10-11वीं सदी में सोलंकी राजवंश की रानी उदयमती ने अपने पति भीमदेव सोलंकी की याद में निर्माण करवाया था।
रानी की वाव इंडिया के गुजरात राज्य के पाटन जिले में मौजूद है ऐसा माना जाता है की यह गायब हो चुकी सरस्वती नदी के किनारे पर मौजूद है।
रानी की वाव का निर्माण गुर्जर स्थापत्य शैली में किया हुवा है, जो इसकी कलास्थापत्य ऐसा है की उसे ओर भी भव्य बना देता है।
रानी की वाव में प्रमुख शिल्पकारि मौजूद है | रानी की वाव में कुआँ है और जिसका क्षेत्र करीबन 10 मीटर और गहराई करीबन 30 मीटर है।
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रानी की वाव की लंबाई करीबन 64 मीटर और चौड़ाई 20 मीटर है वाव की गहराई 27 मीटर है।
रानी की वाव भारत में स्थित सबसे बड़ी वावो में से एक है, यह करीबन 6 एकड़ के क्षेत्र में फैली हुई है।
रानी की वाव गुर्जरा वास्तुकला में में बनाई गई थी। इसके अंदर एक मंदिर और सीढियों की 7 लाइने भी हुई | रानी की वाव में 500 से भी अधिक मूर्तिया मौजूद है।
रानी की वाव में एक दरवाजा है जिसके अंदर 30 की.मी लम्भी एक सुरंग मौजूद है | लेकिन यह सुरंग को हालीमे उसे बंध कर दिया गया है |
रानी की वाव दूसरे जलसंग्रह प्रणालि का एक प्रसिद्ध नमूना है | और यह प्रणाली को पुरे भारत में बहुत पसंद किया जाता है |
वाव के अंदर भगवान विष्णु से जुड़े बहुत सी मुर्तिया कण्डारित है | यहा वाव में भगवान के दस अवतार का मूर्तियों द्वारा वर्णन किया गया है जिनमे मुख्य कल्कि , राम , कृष्णा , नरसिम्हा, वामन, वाराही ओरभी कई अवतार का मूर्तियों द्वारा वर्णन किया गया है

रानी की वाव को साल ई.स 1980 में इसे साफ करके किया | सालों से इसमें कीचड़ भरा हुआ था। करीब 500 -600 वर्षों पहले यहां पर काफी आयुर्वेदिक पौधे मिलते थे, इस कारन वाबडी से लोग बीमारियों को दूर करने के लिए पानी लेने आया करते थे ।
रानी की वाव मेसे साल 2001 में 11वीं और 12वीं शताब्दी में बनी हुई दो मूर्तियां चोरी की गईं थी। इनमें गणपति की मूर्ति और दूसरी ब्रह्मा-ब्रह्माणि की मूर्ति थी।
प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल अधिनियम 1958 के अनुसार यह संपत्ति राष्ट्रीय स्मारक के तौर पर संरक्षित है, जिसमें 2010 में संशोधन किया गया था।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण क्षेत्र को दुनिया की प्रसिद्ध वाव के निर्माण की जिम्मेदारी दी गयी है।
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इस भव्य बावड़ी की संरचना के साथ -साथ इतिहास और कलाकृति को देखते हुये इस वाव को साल 2014 में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया था। यूनेस्को ने इस वाव को भारत में स्थित सभी वावो की रानी के खिताब से नवाजा है।
रानी की वाव को साल 2016 में भारत की राजधानी दिल्ली में हुई इंडियन सेनीटेशन कॉन्फ्रेंस में इस वाव को ‘क्लीनेस्ट आइकोनिक प्लेस’ के पुरस्कार सेपुकारा गया है ।
साल 2016 में भारतीय स्वच्छता अभियान में रानी की वाव को भारत का “सबसे स्वच्छ प्रतिष्ठित स्थान” माना गया था।
रानी की वाव जाने का अच्छा समय कोनसा है
रानी की वाव यात्रा के लिए यदि आप गुजरात जाने कीप्लान बना रहे हैं | रानी की वाव को देखने के लिए साल में आप किसी भी समय में जा सकते हैं लेकिन मौसम के लिहाज से यहाँ जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर और मार्च के बीच का माना जाता हैं।
रानी की वाव खुलने ओर बंद होने का समय
रानी की वाव दार्शनिको के लिए सुबह 8:30 से शाम के 7 बजे तक खुला रहता हैं।
रानी की वाव का प्रवेश शुल्क
रानी की वाव दार्शनिको के लिए बिल्कुल निशुल्क रहता हैं, यहाँ आने वाले दार्शनिको को किसी भी प्रकार का कोई प्रवेश शुल्क नही देना पड़ता हैं।
रानी की वाव के आसपास के प्रमुख पर्यटन और आकर्षण स्थल
1.सहस्त्रलिंग तालाब पाटन
2.पाटन के प्रसिद्ध मंदिर
3. पटोला साड़ी गुजरात
4.पाटन का शोपिंग मार्किट
5.खान सरोवर
6.हेमचंद्राचार्य ज्ञान मंदिर
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