Lotus Temple भारत की राजधानी दिल्ही में मौजूद बहुत सारे प्राचीन स्मारक और कई देखने लायक स्थान है इसमें से यह लोटस टेम्पल भी सुन्दर और दिल्ही का आकर्षक स्थान है। दिल्ही का लॉटस टैम्पल नहेरु नगर में बहापुर गांव में मौजूद है। लोट्स टैम्पल एक बहाई उपासना का मंदिर माना जाता है। यह लोट्स टैम्पल में न कोई भगवान की मूर्ति है न कोई भगवान की पूजा या फिर अर्चना इस मंदिर नहीं होती। lotus temple delhi में पर्यटक उनकी मन की शांति पाने के लिए आते है। यह मंदिर का आकर कमल जैसा लगता है इस कारण इस मंदिर को lotus temple या फिर लॉट्स टैम्पल से पहचाना जाता है।
लोट्स टैम्पल को 20वी शताब्दी का ताजमहल भी कहा जाता है। यह दिल्ही का लॉट्स टैम्पल ने कई वास्तुकार के कई पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। और यह टैम्पल को कई न्यूज, अखबारो और लेखो में भी इसकी चित्रित और चर्चित रहता है। यह दिल्ही का लोट्स टैम्पल को विश्व के 7 बहाई मंदिर में से लॉट्स टेम्पेल को अंतिम टैम्पल से पहचाना जाता है। यह लोटस टेम्पल को 2001 की रिपोर्ट के अनुसार विश्व की सबसे ज्यादा देखने वाले स्मारकों में से देखे जाने वाला स्मारक है।
बाकि के बचे 6 स्मारक ऑस्ट्रेलिया ,सिडनी , पनामा सिटी ,युगीना समोआ ,युगांडा में कंपाला ,जर्मनी में फ्रैंकफर्ट और यु -एस -इ में विलेमेट में स्थित है। 2001 का रिपोर्ट कहता है की लॉट्स टैम्पल को 70 मिलियन पर्यटकों द्वारा देखा गया है। जिस यह लॉटस टैम्पल ने पेरिस के एफिल टावर और भारत का ताजमहल का भी रेकॉर्ड भी तोड़ दिया है। लोट्स टैम्पल में आंकड़ों के अनुसार यहाँ हर साल 4 मिलियन से भी ज्यादा पर्यटक यहाँ यात्रा के लिए आते है।
यह टैम्पल में हरदिन ,प्रतिदिन 10 हजार से भी ज्यादा पर्यटक यहाँ आते है। अगर आप भी यह लोट्स टैम्पल की जानकारी पाना चाहते है तो यह आर्टिकल से आपको पूरी जानकरी मिल जाएँगी।
Table of Contents
लोटस टेम्पल का इतिहास – History of Lotus Temple
टेम्पल का नाम | लोटस टेम्पल |
स्थान | नहेरु नगर के बहापुर गांव |
शहर | दिल्ही |
निर्माणकर्ता | बहाई उल्लहा संत |
निर्माणकाल | 19वी शताब्दी |
टेम्पल के द्वार | 9 |
टेम्पल की पंखुडिया | 27 |
क्षेत्र | 26 एकड़ |
दिल्ही में स्थित लोटस टेम्पल का निर्माण बहाई उल्लहा संत ने करवाया था। यह मंदिर की वास्तुकला ईरानी वास्तुकार फरिबोराज सहाब द्वारा करवाया गया था।

lotus temple delhi के निर्माण बाद उनको अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उनके पुरस्कार में ग्लोबल आर्ट अकेडमी ,इंस्टीस्टूट ऑफ़ स्ट्रक्चरल इंजीनियर्स और कई पुरस्कार भी उनको मिले है।
लोटस टेम्पल की डिजाईन करवाने के लिए 1976 में उनसे संपर्क किया गया था। यह टेम्पल की डिजाईन और निर्माण का खर्च करीबन 1 करोड़ डॉलर खर्च हुवा था।
यहलोटस टेम्पल के निर्माण के लिए जमीन खरीदने के लिए सबसे ज्यादा मदद हैदराबाद , सिंध और रुस्तमपुर ध्वारा दान प्रदान किया गया था। lotus temple timings आवश्यक पौधों के प्रयोग के लिए ग्रीन हाउस बनवाने के लिए एक हिस्सा बचाया गया है।
लोटस टेम्पल को दूसरे बहाई हाउस ऑफ़ वर्शिप भी कहा जाता है। जिसका अर्थ होता है की यह एक ऐसा मंदिर है जो बहाई धर्म का पालन करता है।
यह टेम्पल बहाई धर्म मानव जाती की आध्यात्मिक एकता के सिद्धांत आधार पर यह टेम्पल 19वी सदी में बहा उल्लाह ध्वारा स्थापित यह मंदिर फ़ारसी धर्म के अनुसार निर्माणित है।
यह धर्म मूल रूप से दुनिया के सभी धर्मो की एकता पर विश्वास और सम्मान करता है। इस कारण इस टेम्पल में सभी धर्म के पर्यटक प्रवेश कर सकते है। लेकिन लोटस टेम्पल में किसी भी तरह का धर्म का म्यूजिक बजाने का और प्रतिमा की पूजा अर्चना करने की परवानगी नहीं है।
लोटस टेम्पल कहा स्थित है –
भारत की राजधानी दिल्ही का लॉटस टैम्पल नहेरु नगर में बहापुर गांव में मौजूद है।
लोटस टेम्पल निर्माण किसने करवाया था –
लोटस टेम्पल को बनवाने के लिए 1979 को बहाई संस्था का संपर्क किया गया था। लोटस टेम्पल का निर्माण बहाई धर्म के संस्थापक बहाई उल्लहा संत ने यह दिल्ही टेम्पल का निर्माण करवाया था।
यह संस्थापक बहाई उल्लहा संत केनेडियन के रहेवासी थे इस कारण यह लोटस टेम्पल को बहाई उपासना का टेम्पल नाम से पहचाना जाता है।
लोटस टेम्पल निर्माण कब करवाया था –
19वी शताब्दी में ई.स 1986 में लोटस टेम्पल पूरी तरह से बनकर तैयार हो गया था।
लोटस टेम्पल किस धर्म से सम्बंधित है –
लोटस टेम्पल बहाई धर्म से सम्बंधित हैक्योकि यह टेम्पल बहाई धर्म के अनुसार बनवाया गया है यह टेम्पल पुरे एशिया खंड में प्रसिद्ध और एक मात्र है।
यह लोटस टेम्पल में ऐसा मत है की यह एक ऐसा उपासना का स्थल है की यह स्थान पर कोई भी धर्म और जाती का पर्यटक बिना कोई भेद-भाव किये बिना यह टेम्पल में भगवान की उपासना कर सकता है। यह टेम्पल दुनिया के सभी पर्यटकों और आस्था के लोगो के लिए हमेशा खुला रहता है।
बहाई धर्म की आस्था और सिद्धांत क्या है –
बहाई धर्म से जुड़े हुवे स्मारक वैसे तो दुनिया में 7 है। इसमें से दिल्ही का लोटस टेम्पल का 6 स्थान है। और बहाई धर्म जुड़ा ऐसा स्थान एशिया में मात्र एक है।
यह बहाई धर्म की आस्था कहती है वह मुक्त और स्वतंत्र दुनिया में विश्वास करता है। वह अपने मूलरूप में दिव्य है और दृश्टिकोण से व्यापक है और दर्शन में दयालु और स्वभाव में गतिशील रहता है।
दिल्ही के यह लोटस टेम्पल में किसी भी देवी -देवता की पूजा या फिर कोई एक धर्म जुडी धार्मिक प्रक्रिया नहीं होती। और यह लोटस टेम्पल में किसी देवी या भगवान की तस्वीर या कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है।

लोटस टेम्पल में बहाई धर्म से कोनसी गतिविधिया होती है – In Lotus Temple, what activities are there from the Bahá’í religion
- बच्चो का वर्ग:
दिल्ही के लोटस टेम्पल में बच्चो का वर्ग भी देखा जाता है। यह वर्ग में बच्चो को उदारता ,साहस ,दया ,प्रेम ,एकता और मानवता की सेवा जैसे कई अन्य भावनाओको उत्पन करने का काम किया जाता है।
- जूनियर युवा वर्ग :
लोटस टेम्पल में स्थित जूनियर युवा वर्ग प्रमुख उद्देश्य 11 से 14 साल के बच्चो में आध्यात्मिक और बौद्धिक ज्ञान का विकास करना है।
- भक्ति बैठक :
इन भक्ति बैठक खंड मे मुख्य रूप उद्देश्य यह है की समाज के भीतर एक प्रेमपूर्ण और सम्मानित वाला वातावरण विकसित किया जाय।
- अध्ययन मंडली :
अध्ययन मंडली का उद्देश्य यह है की बहाई लेखन प्रार्थना ,जीवन और मृत्यु का पूरा अध्ययन किया जाय। जिससे पर्यटकों और लोगो की आध्यात्मिक चेतना जागृत हो सके।
यह कार्यो के साथ-साथ लोटस टेम्पल में वन ओसेन इवेंट भी मनाया जाता है क्योकि यह इवेंट मानवजाति की एकता और विविधता को कला के रूप में प्रदर्शित करता दिखाई देता है।
लोटस टेम्पल की वास्तुकला – Architecture of Lotus Temple
लोटस टेम्पल का निर्माण ई.स 1986 में पूरी तरह से यह टेम्पल पूरी तरह से बनकर तैयार हो गया था। यह लोटस टेम्पल के बाहरी lotus temple के गोले पर करीबन 27 पंखुडिया दिखाई देता है।
lotus temple delhi की पंखुडिया कंक्रीट से बनाई बनाई गई है। और उनके ऊपर संगेमरमर के पथ्थरो के टुकड़े लगाए गए है। यह मंदिर जैन धर्म ,बौद्ध धर्म ,हिन्दू धर्म ,और इस्लाम सहित कई अन्य कई दुनिया के धर्मो के प्रतीकात्मक महत्व के कारण यह lotus temple की डिझाईन किया गया है।
लोटस टेम्पल में 26 एकड़ में बनाया गया है और टेम्पल में टोटल 9 ध्वारा बनाये गए है। यह 9 द्वारा करीबन 40 मीटर से भी ज्यादा लम्बे है।
यह द्वार सीधे मंदिर के मुख्य हॉल में जाकर खुलते है। इस हॉल में करीबन 1300 से 1400 लोग एकसाथ बैठकर प्रार्थना और अर्चना करके सुकून और शांति को महसूस करते है।
लोटस टेम्पल की छत ग्रीस के पेंटेली पर्वत के सफ़ेद मार्बल से बनवाई गई है। यह वही पथ्थर यानि की संगमरमर हे जो विश्व के कई प्राचीन इमारते और घर इससे बनवाये गए है।
लोटस टेम्पल में टोटल इस्तेमाल होने वाली 500 किलोवॉट ऊर्जा में से 120 किलोवॉट सौर ऊर्जा पैनलों के माध्यम से निर्मित और सौर ऊर्जा के माद्यम से प्रदान किया जाता है।
इससे लोटस टेम्पल में प्रति महीने में करीबन 120000 रु का बचाव किया जाता है। लोटस टेम्पल दिल्ही का सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करनेवाला प्रथम टेम्पल है।

लोटस टेम्पल का सूचना केंद्र –
यात्रा के समय पर्यटक लोटस टेम्पल में सूचना केंद्र भी देख सकते है। सूचना केंद्र को यात्रिको के लिए 2003 खुला रखा गया था। जिसको प्रमुख रूप से वास्तुकारों के माध्यम से डिजाइन किया गया था। लोटस टेम्पल में ग्रंथो ,तस्वीरों ,फिल्मो ,धर्मग्रंथो इसमें बहाई धर्म की आस्था का ज्यादा विवरण किया गया है। लोटस टेम्पल में एक ऑडियो विजुअल कमरा और लाइब्रेरी भी स्थित है जहा धार्मिक पुस्तके भी आने वाले पर्यटकों के लिए रखी जाती है।
लोटस टेम्पल के रोचक तथ्य – Interesting facts of Lotus Temple
आपको बतादे की लोटस टेम्पल में किसी देवी-देवता की प्रतिमा नहीं है। इस कारण यह टेम्पल में कई अन्य धर्म के आने वाले पर्यटक इस टेम्पल में घूम सकते है।लोटस टेम्पल के भीतर कोई भी प्रकार का अनुष्ठान समारोह का सम्मेलन नहीं किया जाता।
लोटस टेम्पल के भीतर बैठकर कोई धर्म का उपदेश नहीं दे सकता। परन्तु पर्यटक यहाँ बैठकर बहाई या फिर कई अन्य भाषा में ग्रंथो का जाप और पाठ कर सकते है। लोटस टेम्पल के अंदर पर्यटक किसी भी प्रकार का वाद्य यंत्र का उपयोग नहीं कर सकते।
जो कोई पर्यटक बहाय समुदाय के जीवन से प्रेरित है इन लोगो के लिए बहाई लोटस टेम्पल में कई प्रकार की प्रक्रियाओ का आयोजन किया जाता है।
इस आयोजनों में जैसे की चिल्ड्रन क्लासिस , जूनियर यूथ क्लासिस ,डिवोशनल मीटिंग और स्टडी सर्कल जैसी कई अन्य प्रक्रियाओ का आयोजन किया जाता है। लोटस टेम्पल में आप फोटोग्राफी करना चाहते है तो पर्यटक को ओथेरिटी की मंजूरी लेना आवश्यक होता है।
लोटस टेम्पल को खुलने और बंध होने का समय – Lotus Temple Opening and Bonding Time
लोटस टेम्पल यात्रियों के लिए सुबह 9 बजे से शाम के 7 बजे तक खुलता रहता है। परन्तु सर्दियों के lotus temple timings में यह टेम्पल सुबह 9:30 बजे प्रवेश होता है और शाम को 5:30 बजे टेम्पल बंध हो जाता है।
अगर पर्यटक लोटस टेम्पल जाना चाहते है तो Tuesday से sunday के बिच ही जाये क्योकि लोटस टेम्पल monday को बंध रहता है। और यह टेम्पल में प्रतिदिन 15 मिनिट प्रार्थना का आयोजन किया जाता है।
लोटस टेंपल पर्यटकों के लिए सुबह 9 बजे से शाम 7 बजे तक खुलता है। जबकि सर्दियों में सुबह 9:30 बजे खुलकर शाम को 5:30 बजे बंद भी हो जाता है।
अगर आप लोटस टेंपल जाएं तो मंगलवार से रविवार के बीच ही जाएं, क्योंकि सोमवार को लोटस टेंपल बंद रहता है। मंदिर में हर दिन नियमित अंतराल पर 15 मिनट के प्रार्थना सत्र आयोजित होते हैं।

लोटस टेंपल का प्रवेश शुल्क – Lotus Temple Entrance Fee
पर्यटकों को लोटस टेंपल में किसी भी प्रकार का प्रवेश शुल्क नहीं देना है। और पर्यटकों के वाहन को पार्क करने का भी कोई शुल्क नहीं होता।
लोटस टेंपल जाने का सबसे अच्छा समय – Best time to visit Lotus Temple
लोटस टेम्पल को गुमने जाने का अच्छा समय अक्टूबर से मार्च का है। क्योकि गर्मियों के समय के दौरान लोटस टेम्पल जाना परेशान करने वाली बात होती है
क्योकि टेम्पल के बहार से अंदर नंगे पाव जाना पड़ता है और फर्श पर चलते वक्त पैर बहुत जलते है इसलिए अच्छा है की सर्दियों के समय में लोटस टेम्पल की यात्रा करे। और इसका पूरा आनंद ले सके।
लोटस टेंपल के आस -पास के पर्यटन स्थल – Tourist places around Lotus Temple
- हुमायु का मकबरा :
हुमायूँ का मकबरा ताजमहल के 60 वर्षों से पहले निर्मित मुगल सम्राट हुमायूं का अंतिम विश्राम स्थल है जो दिल्ली के निज़ामुद्दीन पूर्व क्षेत्र में स्थित है और भारतीय उपमहाद्वीप में पहला उद्यान मकबरा है। हुमायूँ का मकबरा दिल्ली का एक प्रमुख ऐतिहासिक और पर्यटन स्थल है, जो भारी संख्या में इतिहास प्रेमियों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। हुमायूँ का मकबरा अपने मृत पति के लिए पत्नी के प्यार को प्रदर्शित करता है।
फ़ारसी और मुग़ल स्थापत्य तत्वों को शामिल करते हुए इस उद्यान मकबरे का निर्माण 16 वीं शताब्दी के मध्य में मुगल सम्राट हुमायूँ की स्मृति में उनकी पहली पत्नी हाजी बेगम द्वारा बनाया गया था। हुमायूँ के मकबरे की सबसे खास बात यह है कि यह उस समय की उन संरचनाओं में से एक है जिसमें इतने बड़े पैमाने पर लाल बलुआ पत्थर का उपयोग किया गया था। अपने शानदार डिजाइन और शानदार इतिहास के कारण हुमायूँ का मकबरा को साल 1993 में यूनेस्को की विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया था।
हुमायूँ के मकबरे की वास्तुकला इतनी ज्यादा आकर्षित है कि कोई भी इसे देखे बिना नहीं रह पाता। यह शानदार मकबरा एक बड़े अलंकृत मुगल गार्डन के बीच में स्थित है और इसकी सुंदरटा सर्दियों के मौसम में काफी बढ़ जाती है। हुमायूँ का मकबरा यमुना नदी के तट पर स्थित है और यह अन्य मुगलों के अवशेषों का भी घर है, जिनमें उनकी पत्नियाँ, पुत्र और बाद के सम्राट शाहजहाँ के वंशज, साथ ही कई अन्य मुगल भी शामिल हैं।
- क़ुतुब मीनार दिल्ही :
कुतुब मीनार भारत में दिल्ली शहर के महरौली में ईंट से बनी, विश्व की सबसे ऊँची मीनार है। दिल्ली को भारत का दिल कहा जाता है, यहाँ पर कई प्राचीन इमारते और धरोहर स्थित है।
इन पुरानी और खास इमारतों में से एक इमारत lotus temple in delhi में स्थित है जिसका नाम है क़ुतुब मीनार, जो भारत और विश्व की सबसे ऊँची मीनार है।
क़ुतुब मीनार भारत का सबसे खास और प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है। क़ुतुब मीनार दिल्ली के दक्षिण इलाक़े में महरौली में है। यह इमारत हिंदू-मुग़ल इतिहास का एक बहुत खास हिस्सा है।
कुतुब मीनार को यूनेस्को द्वारा भारत के सबसे पुराने वैश्विक धरोहरों की सूचि में भी शामिल किया गया है। इस आर्टिकल में हम क़ुतुब मीनार की जानकारी और कुछ खास और दिलचस्प बातों पर पर नज़र डालेंगे।
क़ुतुब मीनार दुनिया की सबसे बड़ी ईटों की दीवार है जिसकी ऊंचाई 72.5 मीटर है। मोहाली की फतह बुर्ज के बाद भारत की सबसे बड़ी मीनार में क़ुतुब मीनार का नाम आता है। क़ुतुब मीनार के आस-पास परिसर क़ुतुब काम्प्लेक्स है जो कि यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट भी है।
- राट्रीय स्मारक इंडिया गेट :
lotus temple in delhi के सभी प्रमुख आकर्षणों में से इंडिया गेट सबसे ज्यादा देखे जाने वाले पर्यटन स्थलों में से एक है। इंडिया गेट के नाम से प्रसिद्ध अखिल भारतीय युद्ध स्मारक की भव्य संरचना विस्मयकारी है और इसकी तुलना अक्सर फ्रांस में आर्क डी ट्रायम्फ, मुंबई में गेटवे ऑफ इंडिया और रोम में कॉन्सटेंटाइन के आर्क (मेहराब) से की जाती है।
दिल्ली शहर के केंद्र में स्थित, इंडिया गेट देश के राष्ट्रीय स्मारकों में सबसे लंबा यानि 42 मीटर लंबा ऐतिहासिक स्टेकचर सर एडविन लुटियन द्वारा डिजाइन किया गया था और यह देश के सबसे बड़े युद्ध स्मारक में से एक है।
इंडिया गेट हर साल गणतंत्र दिवस परेड की मेजबानी के लिए भी प्रसिद्ध है। आज का हमारा आर्टिकल देश की सबसे ऊंची युद्ध स्मारक इंडिया गेट के बारे में है।
इस आर्टिकल में आपको इंडिया गेट का इतिहास, डिजाइन और इंडिया गेट से जुड़े रोचक तथ्य जानने को मिलेंगे। साथ ही इस पर्यटन स्थल से जुड़े तमाम सवालों के जवाब भी आपको हमारे आर्टिकल के जरिए मिल जाएंगे।
- दिल्ही का लाल किला :
दिल्ली का लाल किला भारत में दिल्ली शहर का एक ऐतिहासिक किला है। लाल किला भारत में पर्यटकों के लिए एक बहुत खास जगह है। दूसरे देशों से आने वाले पर्यटक भी भारत के इस किले को देखना बेहद पसंद करते हैं। इस किले के बारे में बात करें तो आपको बता दें कि 1856 तक इस किले पर लगभग 200 वर्षों तक मुगल वंश के सम्राटों का राज था। यह lotus temple in delhi के केंद्र में स्थित है इसके साथ ही यहाँ कई संग्रहालय हैं। यह किला बादशाहों और उनके घर के अलावा यह मुगल राज्य का औपचारिक और राजनीतिक केंद्र था और यह क्षेत्र खास तौर से होने वाली सभा के लिए स्थापित किया गया था।
- इस्कॉन मंदिर :
इस्कॉन मंदिर को दूसरे हरे राम हरे कृष्ण के नाम से पहचाना जाता है। यह इस्कॉन मंदिर कृष्ण को समर्पित है। यह इस्कॉन मंदिर की स्थापना ई.स 1998 में अच्युत कनविंडे ध्वारा निर्माणित किया गया है। यह मंदिर नई दिल्ही के कैलास क्षेत्र के पूर्व दिशा में हरे कृष्णा पर्वत पर स्थित है। यह स्थान सेंटर हॉल हरे राम और हरे कृष्ण की स्वर्गीय धुन का उल्लेख दर्शाता है।
- स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर :
स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर नई दिल्ही में मौजूद यह मंदिर सुन्दर और आकर्षण का केंद्र बना हुवा है। यह स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर की संस्कृति , आध्यात्मिकता और वास्तुशैली का एक अदभुत नमूना है। स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर दिल्ही की यमुना नदी के किनारे पर मौजूद है और यह स्वामीनारायण अक्षरधाम मंदिर हिन्दू धर्म की संस्कृति का एक अत्यंत आकर्षक स्थान है।
- जंतर मंतर दिल्ही :
जंतर मंतर दिल्ही में संसद मार्ग नई दिल्ही के दक्षिणी कनॉट सर्किल में मौजूद है। दिल्ही का जंतर मंतर विशाल वेधशाला है। यह स्थान जंतर मंतर को प्राचीन समय में समय और स्थान के अध्ययन की मदद में और मुर्हुत देखने के लिए इसका निर्माण करवाया गया था।
यह दिल्ही के जंतर मंतर का निर्माण महाराजा जयसिंह ने करवाया था। महाराजा जयसिंह ने ई.स 1724 में जंतर मंतर का निर्माण करवाया था। और यह जंतर मंतर जयपुर ,उज्जैन ,वाराणसी और मथुरा में मौजूद यह पांच ऐसी वेधशालाओ में से एक माना जाता है।

How to reach Lotus Temple लोटस टेम्पल कैसे पहुंचे
लोटस टेम्पल जाने के लिए आप फ्लाइट, ट्रेन और बस में से किसी का भी चुनाव कर सकते हैं।
- लोटस टेम्पल फ्लाइट से कैसे पहुंचे :
अगर लोटस टेम्पल घूमने के लिए आपने हवाई मार्ग का चुनाव किया है तो हम आपको बता दे कि दिल्ली का इंदिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा सबसे अच्छा विकल्प हैं। हवाई अड्डे से आप स्थानीय साधनो की मदद से लाल किला और लोटस टेम्पल तक आसानी से पहुंच सकते हैं।
- लोटस टेम्पल ट्रेन मार्ग से कैसे पहुंचे :
आपने लोटस टेम्पल जाने के लिए यदि आपने रेलवे मार्ग का चुनाव किया हैं तो हम आपको बता दें कि दिल्ली रेलवे जंक्शन पुरानी दिल्ली में स्थित हैं।
इसके अलावा हज़रत निज़ामुद्दीन और आनंद विहार रेलवे स्टेशन दिल्ली के अन्य रेलवे स्टेशन हैं। आप इनमे से किसी भी स्टेशन का चुनाव कर सकते हैं और दिल्ली में चलने वाले स्थानीय साधनों की मदद से लोटस टेम्पल तक का सफ़र तय कर सकते हैं
- लोटस टेम्पल सड़क मार्ग से कैसे पहुंचे :
जाने के लिए यदि आपने सड़क मार्ग की योजना बनाई हैं तो बता दें कि दिल्ली अपने आसपास के सभी शहरो से सड़क मार्ग के माध्यम से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ। आप बस या अन्य किसी साधन से लोटस टेम्पल तक आसानी से पहुँच जाएंगे।
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