History oF Jalore Fort In Hindi – जालौर किले का इतिहास हिंदी में

Jalore Fort राजस्थान के दक्षिणी पश्चिमी भाग में स्थित जालौर के किले को मारवाड़ राज्य का गढ़ माना जाता था. पूर्ण रूप से हिन्दू शैली में निर्मित इस किले का निर्माण आठवी सदी में गुर्जर प्रतिहार शासकों द्वारा करवाया गया था | 

सूकड़ी नदी के तट पर बना यह एक गिरी दुर्ग हैं, किले का द्वार बेहद सुरक्षित था. जिन्हें कई बार आक्रमणकारी खोल नहीं पाए थे. यहाँ पर परमार, चौहान एवं खिलजी शासकों का शासन रहा | 

जालौर किले का इतिहास – History of Jalore Fort

जालौर किला राजस्थान राज्य के प्रमुख आकर्षणों में से एक है। यह किला वास्तुकला का एक प्रभावशाली नमूना है। ऐसा माना जाता है कि इस किले का निर्माण 8 वीं और 10 वीं शताब्दी के बीच हुआ था।

यह किला 336 मीटर की ऊँचाई पर एक खड़ी पहाड़ी से घिरा हुआ है जहां से शहर का शानदार दृश्य नजर आता है। यह किला परमार शासन के तहत मारू के 9 महलों में से एक था, जिसे सोनगीर या गोल्डन माउंट के नाम से भी जाना जाता था।

यह किला जालौर वाले पर्यटकों को बेहद आकर्षित करता है। किले का प्रमुख आकर्षण ऊंची किलेनुमा दीवारें हैं और उन पर बने तोपों के गढ़ हैं। आपको बता दें कि जालौर किले में 4 बड़े द्वार हैं, लेकिन पर्यटक एक ही तरफ से दो मील लंबी चढ़ाई के बाद पहुंच सकते हैं।

अगर आप जालौर किले के इतिहास और यहां जाने के बारे में पूरी जानकारी चाहते हैं तो इस लेख को जरुर पढ़ें, यहां हम आपको जालौर किले का इतिहास और यहां जाने की पूरी जानकारी देने जा रहें हैं।

 किले का नाम  जालौरकिला
 स्थान  जालौर
 राज्य   राजस्थान
 निर्माण  8 वीं और 10 वीं शताब्दी के बीच
 निर्माणकर्ता  सम्राट नागभट्ट प्रथम
 किले की ऊंचाई   336 मीटर
 जालोर किला कितना लम्बा है  800 गज
 जालोर किला कितना चौड़ा है  400 गज
 किले के द्वार  4 द्वार
 किले के द्वार के नाम  मुख्य द्वार , ध्रुवपोल , चंद्रपॉल ,सिरेपोल

जबालिपुर या जालहुर सूकडी नदी के किनारे बना यह किला राज्य के सुद्रढ़ किलों में से एक माना जाता हैं. इस किले को सोहनगढ एवं सवर्णगिरी कनकाचल के नाम से भी जाना जाता हैं.

8 वीं शताब्दी में प्रतिहार क्षत्रिय वंश के सम्राट नागभट्ट प्रथम ने इस किले का निर्माण करवाकर जालौर को अपनी राजधानी बनाया था.जालौर के किले को अभी तक कोई आक्रान्ता इसके मजबूत द्वार को खोल नहीं पाया था.

जब प्रतिहार शासक जालौर से चले गये तो इसके बाद कई वंशों ने यहाँ अपना राज्य जमाया. इस दुर्ग को मारू के नौ किलों में से एक माना जाता हैं.

इस किले के सम्बन्ध में एक लोकप्रिय कहावत है आकाश को फट जाने दो, पृथ्वी उलटी हो जाएगी, लोहे के कवच को टुकड़ों में काट दिया जाएगा, शरीर को अकेले लड़ना होगा, लेकिन जालोर आत्मसमर्पण नहीं करेगा.

Jalore Fort  की पहाड़ी पर बना यह किला 336 मीटर (1200 फीट) ऊँचे पथरीले शहर से दीवार और गढ़ों के साथ गढ़वाली तोपों से सुसज्जित हैं. किले में चार विशाल द्वार हैं, हालांकि यह केवल एक तरफ से दो मील (3 किमी) लंबी सर्पिल चढ़ाई के बाद ही पहुंच योग्य है।

किले का दृष्टिकोण उत्तर से ऊपर की ओर है, दुर्ग की तीन पंक्तियों के माध्यम से एक खड़ी प्राचीर दीवार 6.1 मी (20 फीट) ऊंची है। ऊपर चढ़ने में एक घंटा लगता है। किला पारंपरिक हिंदू वास्तुकला की तर्ज पर बनाया गया है ।

सामने की दीवार में बने चार शक्तिशाली द्वार या पोल हैं जो किले में जाते हैं: सूरज पोल, ध्रुव पोल, चांद पोल और सीर पोल। सूरज पोल या “सूर्य द्वार” इस ​​प्रकार बनाया गया है कि सुबह की सूर्य की पहली किरणें इस प्रवेश द्वार से प्रवेश करती हैं।

यह एक प्रभावशाली गेट है जिसके ऊपर एक छोटा वॉच टॉवर है। ध्रुव पोल, सूरज पोल की तुलना में सरल है।किले के अंदर स्थित महल या “आवासीय महल” अब उजाड़ दिया गया है, और जो कुछ बचा हुआ है,

उसके चारों ओर विशाल रॉक संरचनाओं के साथ खंडहर सममित दीवारें हैं। किले के कट-पत्थर की दीवारें अभी भी कई स्थानों पर बरकरार हैं। किले में कुछ पीने के पानी के टैंक हैं।

किले के भीतर किला मस्जिद किला मस्जिद (किला मस्जिद) भी उल्लेखनीय है, क्योंकि वे काल की गुजराती शैलियों (यानी 16 वीं शताब्दी के अंत) से जुड़ी वास्तुकला की सजावट के व्यापक प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं ।

किले में एक और मंदिर संत रहमद अली बाबा का है। मुख्य द्वार के पास एक प्रसिद्ध मोहम्मडन संत मलिक शाह का मकबरा है । जैन मंदिर जालोर जैनियों का तीर्थस्थल भी है और यहां आदिनाथ , महावीर , पार्श्वनाथ और शांतिनाथ के प्रसिद्ध जैन मंदिर स्थित हैं.

जालोर किला 800 गज लम्बा और 400 गज चौड़ा हैं. आसपास की भूमि से यह 1200 फीट ऊँचा हैं. मैदानी भाग में इसकी प्राचीर सात मीटर ऊँची हैं. सूरजपोल किले का प्रथम प्रवेश द्वार हैं. इसके पार्श्व में एक विशाल बुर्ज हैं जो प्रवेशद्वार की सुरक्षा में काम आती थी.

जालौर के किले पर परमार, चौहान, सोलंकियों, मुस्लिम सुल्तानों और राठौड़ों का आधिपत्य रहा. कीर्तिपाल चौहान के वंशज के नाम पर सोनगरा चौहान कहलाए. जालौर का प्रसिद्ध शासक कान्हड़देव था जिसे अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण का सामना करना पड़ा.

छल कपट से खिलजी ने इस किले पर अधिकार कर लिया. तब जालौर का प्रथम साका हुआ. मालदेव ने मुस्लिम आधिपत्य समाप्त कर इस पर राठौड़ों का आधिपत्य स्थापित किया.

इस किले की अजेयता के बारे में ताज उल मासिर में हसन निजामी ने लिखा यह ऐसा किला है जिसका दरवाजा कोई आक्रमणकारी नहीं खोल सका.

जालौर के किले में महाराजा मानसिंह के महल और झरोखे, दो मंजिला रानी महल, प्राचीन जैन मन्दिर, चामुंडा माता और जोगमाया मन्दिर, संत मालिकशाह की दरगाह, परमारकालीन कीर्ति स्तम्भ आदि प्रमुख हैं. अलाउद्दीन खिलजी ने जालौर का नाम जलालाबाद कर दिया और यहाँ अलाई मस्जिद का निर्माण करवाया.

जालौर किला कहा स्थित है – Where is Jalore Fort located

पश्चिमी राजस्थान में अरावली पर्वत श्रंखला की सोनगिरि पहाड़ी पर सूकड़ी नदी के दाहिने किनारे गिरि दुर्ग जालौर में निर्मित हैं. सोनगिरि पहाड़ी पर निर्मित होने के कारण किले को सोनगढ़ कहा जाता हैं. प्राचीन शिलालेखों में जालौर का प्राचीन नाम जाबलिपुर और किले का नाम सुवर्णगिरि मिलता हैं.

जालौर के कितने दरवाजे है – How many doors does Jalore have

वीरों की गाथा, इतिहास का गौरव और ऐतिहासिक धरोहरों के बारे में जानने के लिए भारतवर्ष में राजस्थान एक अग्रणी जगह है। पुराने जमाने में बने महल, किले, तालाब और झीलों को देखने के लिए राजस्थान का चयन एक बेहतर विकल्प हो सकता है।

झलक राजस्थान की सीरीज के तहत आज हम आपको एक ऐसे किले के बारे में बताने जा रहे हैं जो कि ना सिर्फ यहां का बल्कि पूरे देश का प्राचीन गौरव, वैभवपूर्ण इतिहास बतलाता है। ये किला है जालोर का किला, जिसे स्वर्णगिरी दुर्ग भी कहा जाता है।

वैसे तो प्राचीन काल में हर किले का निर्माण ही सुरक्षा की दृष्टि से किया जाता था ताकि दुश्मनों के हमलों से बचा जा सके और ऊंचाई पर से उन पर आक्रमण कर शिकस्त दी जा सके।

लेकिन जालोर के किले की सुरक्षा ऐसी थी कि इसे भेद पाना एक असंभव सा काम था। इसके अंदर तक पहुंचने के लिए दुश्मन को चार-चार दरवाजों से गुजरना पड़ता था।

जालौर किले के चारों दरवाजों का नाम – Name of all four doors of Jalore Fort

  • मुख्य द्वार :

किले के मुख्य द्वार पर 25 फीट ऊंची और 15 लंबी फीट लंबी दीवार है जो कि तोपों की मार से बचने के लिये घूमकर दरवाजे को सामने से ढक लेती

  • ध्रुवपोल :

मुख्य द्वार के पश्चात लगभग आधा मील चलने पर आता है ध्रुवपोल। यहां भी कड़ी नाकेबंदी है। इस मोर्चे को जीते बिना दुर्ग में प्रवेश असंभव था

  • चंद्रपोल :

तीसरा द्वार चंद्रपोल अन्य द्वारों से अधिक भव्य, मजबूत और सुंदर है।

  • सिरेपोल :

तीसरे से चौथे द्वार के बीच का स्थल बडा सुरक्षित है। यहां पहुचने से पहले प्राचीर की एक पंक्ति बाई ओर से ऊपर उठकर पहाड़ी के शीर्ष भाग को छू लेती है ओर दूसरी दाहिनी ओर घूमकर गिरि श्रृंगो को समेटकर चक्राकार घूमती हुई प्रथम प्राचीर से आ मिलती है।

जालौर किले के अन्य स्मारक – Other monuments of Jalore Fort

  • जालौर किले का तोपखाना :

तोपखाना जालौर शहर के मध्य में स्थित है जो पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र भी है। यह तोपखाना कभी एक भव्य संस्कृत विद्यालय था जिसे राजा भोज ने 7 वीं और 8 वीं शताब्दी के बीच बनवाया था।

राजा भोज एक बहुत बड़े संस्कृत के एक विद्वान थे और उन्होंने शिक्षा प्रदान करने के लिए अजमेर और धार में कई समान स्कूल बनाए हैं।

देश के स्वतंत्र होने से पहले जब अधिकारियों इस स्कूल का इतेमाल गोला-बारूद के भंडारण के उपयोग किया था तो इसका नाम तोपखाना रख दिया गया था। आज भले ही इस स्कूल की इमारत काफी अस्त-व्यस्त हो चुकी है लेकिन इसके बाद भी यह आज भी काफी प्रभावशाली है।

तोपखाना की पत्थर की नक्काशी पर्यटकों को बेहद आकर्षित करती हैं। यहां इसके दोनों तरफ दो मंदिर भी स्थित हैं लेकिन इन मंदिरों में कोई मूर्ति नहीं है। टोपेखाना की सबसे संरचना जमीन से 10 फ़ीट ऊपर बना एक कमरा है जहां जाने के लिए सीढ़ी लगाईं गई है।

इस कमरे के बारे में ऐसा माना जाता है कि यह स्कूल के प्रधानाध्यापक का निवास स्थान था। अगर कोई भी पर्यटक जालौर की यात्रा करने जा रहा है तो उसको इस ऐतिहासिक स्थल की यात्रा जरुर करनी चाहिए।

  • मलिक शाह मस्जिद :

मलिक शाह मस्जिद जालौर किले के प्रमुख स्थलों में से एक है, जिसका निर्माण अला-उद-दीन-खिलजी के शासन द्वारा करवाया गया था।

इस मस्जिद को बगदाद के सेलजुक सुल्तान मलिक शाह को सम्मानित करने के लिए किया गया था। मलिक शाह मस्जिद को अपनी वास्तुकला के लिए जाना जाता है, जो गुजरात में पाए गए भवनों से प्रेरित है।

  • सराय मंदिर :

सराय मंदिर जालौर के प्रमुख मंदिरों में से एक है। आपको बता दें कि यह मंदिर जालौर मर कलशचल पहाड़ी पर 646 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

इस मंदिर का निर्माण महर्षि जाबालि के सम्मान में रावल रतन सिंह ने करवाया था। पौराणिक कथाओं अनुसार कहा जाता है कि पांडवों ने एक बार मंदिर में शरण ली थी।

इस मंदिर तक जाने के लिए पर्यटकों को जालौर शहर से होकर गुजरना होगा और मंदिर तक पहुंचने के लिए 3 किलोमीटर की पैदल यात्रा भी करनी होती है। जालौर की यात्रा दौरान सभी पर्यटकों को सराय मंदिर के दर्शन के लिए जरुर जाना चाहिए

  • सुंधा माता मंदिर :

सुंधा माता मंदिर जालौर के प्रमुख मंदिरों में से एक है जो भारी संख्या में पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। सुंधा माता मंदिर समुद्र तल से 1220 मीटर की ऊंचाई पर बना है।

इस मंदिर में साल भर भक्तों की भीड़ रहती है। यह मंदिर एक पवित्र स्थल है जिसमें देवी चामुंडा देवी की मूर्ति है जो सफेद संगमरमर से बनी है। सुंधा माता मंदिर के स्तंभों का डिज़ाइन माउंट आबू में स्थित दिलवाड़ा मंदिर काफी मिलता है।

इस मंदिर में ऐतिहासिक मूल्य के कुछ शिलालेख भी हैं। अगर आप राजस्थान के जालौर जिले की यात्रा करने के लिए जा रहें हैं तो सुंधा माता मंदिर के दर्शन के लिए अवश्य जाएं।

  • जालौर वन्यजीव अभयारण्य :

Jalore Fort वन्यजीव अभयारण्य भारत में एकमात्र प्राइवेट अभयारण्य है जो जालौर के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। यह अभयारण्य जालौर शहर के पास जोधपुर से 130 किमी दूर स्थित है। जालौर वन्यजीव अभयारण्य एक दूरस्थ प्राकृतिक जंगल है जो 190 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला है।

इस अभयारण्य में पर्यटक कई तरह के लुप्तप्राय जंगली जानवरों को देख सकते हैं। यहां पाए जाने वाले जानवरों में रेगिस्तानी लोमड़ी, तेंदुआ, एशियाई-स्टेपी वाइल्डकाट, तौनी ईगल के नाम शामिल हैं।

इसके अलावा यहां पर नीले बैल, मृग और हिरणों के झुंड को जंगल में देखा जा कसता है। जालौर वन्यजीव अभयारण्य में आप पैदल यात्रा कर सकते हैं या जीप सफारी की मदद से जंगल को एक्सप्लोर कर सकते हैं।

वन अधिकारी प्रतिदिन दो सफारी संचालित करते हैं जो तीन घंटों की होती है। बर्ड वॉचर्स के लिए यह जगह बेहद खास है क्योंकि यहां पर पक्षियों की 200 विभिन्न प्रजातियों को देखा जा सकता है।

  • नीलकंठ महादेव मंदिर :

नीलकंठ महादेव मंदिर जालौर जिले की भाद्राजून तहसील में स्थित है। जो पर्यटकों को बेहद आकर्षित करता है। गांव में प्रवेश करते समय आप इस मंदिर को देख सकते हैं। नीलकंठ महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।

यह मंदिर अपनी उंची संरचना से यहां आने वाले पर्यटकों को बेहद प्रभावित करता है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां एक विधवा महिला ने एक शिवलिंग देखा था और इसके बाद वो नियमित रूप से इस शिवलिंग की पूजा करने लगी थी।

महिला के मजबूत विश्वास के परिवार के लोगों के इस शिवलिंग को कई बार दफ़नाने की कोशिश की, लेकिन यह शिवलिंग बाहर निकल जाता। इस तरह वहां पर रेत का एक विशाल टीला उभर आया।

शिवलिंग के इस चमत्कार को देखकर मंदिर की स्थापना की गई थी। यह मंदिर बहुत पुराना है और इस मंदिर में बारिश के मौसम और शिवरात्रि के दौरान भक्तों की काफी भीड़ आती है।

जालौर किले कैसे पोहचे  – How to reach Jalore Fort

Jalore Fort का नजदीकी एयरपोर्ट जोधपुर एयरपोर्ट है जो जालौर से सिर्फ 141 किलोमीटर दूर है। हवाई अड्डे से पर्यटक जालौर किले के लिए टैक्सी और या कैब ले सकते हैं।

राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 15 के पास स्थित होने कि वजह से यह जयपुर, अजमेर, अहमदाबाद, सूरत और बॉम्बे से राजस्थान रोडवेज निजी बस सेवाओं के माध्यम अच्छी तरह से जुड़ा है।

जालौर किले का नजदीकी रेलवे स्टेशन जोधपुर है, जो भारतीय रेलवे के माध्यम से भारत के सभी प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है।

जालौर किला हवाई मार्ग द्वारा – Jalore Fort By Air

जालौर किले के लिए यात्रा हवाई जहाज से करना चाहते हैं तो बता दें कि इसका निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर हवाई अड्डा जोधपुर है जो लगभग 137 किलोमीटर दूर है और डबोक हवाई अड्डा में उदयपुर लगभग 142 किमी दूर है।

इसके आलवा शहर से लगभग 35 किमी की दूरी पर नून गांव में एक हवाई पट्टी भी उपलब्ध है। जोधपुर हवाई अड्डे से जयपुर, दिल्ली, मुंबई और अन्य महानगरों के लिए सीधी उड़ानें हैं।

रेल द्वारा जालौर किला कैसे पहुंचें

Jalore Fort की यात्रा ट्रेन द्वारा करना चाहते हैं उनके लिए बता दें कि किले का निकटतम रेलवे स्टेशन जालौर रेलवे स्टेशन उत्तर पश्चिम रेलवे लाइन पर पड़ता है।

समदड़ी-भिलडी शाखा लाइन जालौर किला और भीनमाल शहरों को जोड़ती है। इस जिले में 15 रेलवे स्टेशन हैं। देश के अन्य प्रमुख शहरों से जालौर किला के लिए रोजाना कई ट्रेन उपलब्ध हैं।

जालौर किला सड़क मार्ग से कैसे पहुंचें 

सड़क मार्ग से जालौर किले के लिए यात्रा करना चाहते हैं तो बता दें कि राजमार्ग संख्या 15 (भटिंडा-कांडला राजमार्ग) इस जिले से गुजरता है। यहां के लिए अन्य शहरों से कोई बस मार्ग उपलब्ध नहीं हैं। जालौर किले निकटतम बस डिपो भीनमाल में है जो लगभग 54 किमी दूर है।

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