History of Gagron Fort In Hindi – गागरोन किले का इतिहास हिंदी में

Gagron Fort राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्थित है। गागरोन किला राजपूत वास्तुकला का एक उत्कृष्टनमूना है। गागरोन किला राजस्थान के प्रसिद्ध आकर्षित किलो में एक है।

पहाड़ी की टोच पर स्थित यह किला नीचे के सुन्दर परिदृश्य का एक शानदार 360 डिग्री दृश्य प्रस्तुत करता है। गागरोन किले के द्वार के बाहर एक संग्रहालय के अलावा, सूफी संत मिटे शाह का एक मकबरा भी दिखाई देता है।

जहाँ पर हर साल मुहर्रम के समय उनके सम्मान के लिए एक मेले आयोजन किया जाता है। गागरोन किले को साल 2013 में यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल की यादि में भी शामिल कर लिया गया है।

गागरोन किला झालावाड़ के मुख्य पर्यटकस्थानों में से एक है, जो हर साल हजारो यात्रिको की मेजबानी करता है। गागरोन किला यात्रिको और इतिहासकारो के घूमने के लिए झालावाड़ की सबसे लोकप्रियस्थानों में से एक है।

किले का नाम गागरोन किला ( Gagron Fort )
राज्य  राजस्थान 

शहर 

झालावाड़
निर्माण 12वी सदी 
निर्माता डोड राजा बीजलदेव
किले के कुल मंदिर 92 मंदिर 
किले के युद्ध 14 युद्ध 
किले के जौहर 2 जौहर 
किले की मुख्य खासियत  बगैर नींव का निर्माण

गागरोन का किला कहा स्थित है 

  • Gagron Fort राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्थित है। यह किला चारों तरफ से पानी से घिरा हुआ है।

गागरोन किले का निर्माण कब हुआ था –

  • गागरोन किले का निर्माण ने 12 वीं सदी में करवाया था

गागरोन किले का निर्माण किसने करवाया था –

  • गागरोन किला का निर्माण कार्य डोड राजा बीजलदेव ने करवाया था।

गागरोन किले में कितने मंदिर थे –

  • गागरोन किले में करीबन 92 मंदिर हुवा करते थे और सौ साल का पंचांग भी यही बना था।

गागरोन किले में कितने युद्ध और जौहर हुवे –

  • गागरोन किले में कुल 14 युद्ध और 2 जोहर हुवे।

Table of Contents

गागरोन किले का इतिहास – History of Gagron Fort

दक्षिण राजस्थान और मालवा के बीच काली सिंध और आहू नदी के संगम पर पानी में गिरे इस गागरोन किले का निर्माण डोड महाराजा बीजलदेव द्वारा करवाया था। बाद में इस किले पर खिंची राजपूतो ने राज किया था।

इस किले में करीबन 92 मंदिर हुवा करते थे और सौ साल का पंचांग भी यही बना था. सीधी खड़ी चट्टानों पर ये किला आज भी बिना नींव के खड़ा है, गागरोन किले में तीन परकोटे मौजूद है जब कि राजस्थान केदूसरे किलो में दो ही परकोटे होते है.

गागरोन किले में मुख्य दो प्रवेश द्वार है एक पहाड़ी की और खुलता है तो दूसरा नदी की और किले के सामने बनाई हुई गिद्ध खाई से किले पर सुरक्षा के लिये नजर रख्खी जाती थी।

History of Gagron Fort In Hindi  - गागरोन किले का इतिहास हिंदी में
History of Gagron Fort In Hindi – गागरोन किले का इतिहास हिंदी में

Gagron Fort के दो तरफ से नदी और एक तरफ से खाई और एक तरफ से पहाड़ी से चारो तरफ घिरा हुआ है तेरहवी शताब्दी में अल्लाउदीन खिलजी ने किले पर हमला कीया।

राजा जैतसिंह खिंची ने अल्लाउदीन खिलजी को परास्त कर दिया था .ई.स1338 से 1368 तक राजा प्रताप राव ने गागरोन पर शासन किया और इसे एक समर्ध रियासत बना दिया।

बाद में सन्यासी बनकर वही राजा संत पीपा के नाम से पहचाने गए। गुजरात में स्थित द्वारका में आज उनके नाम का मठ भी मौजूद है 

करीबन 14 वी सदी के मध्य तक गागरोन किला एक समर्ध रियासत बन चूका था। इसी कारण से मालवा के मुसलमान घुसपैठिये राजाओकी बुरी नजर इस किले पर पड़ी।

होशंगशाह ने ई.स1423 में 30000 की सेना और कई अन्य अमीर राजाओ को साथ जोड़कर गढ़ को चारोतरफ से घेर लिया।

Gagron Fort पानी से चारोओर से घिरा होने की वजह से होशंगशाह किले में प्रवेश नहीं कर सका। और गढ़ के बाहर पड़ाव डाल दिया। मुश्किल के समय पूरा नगर के लोग गागरोन किले में ही शरण लेते थे।

यंहा पानी और अनाज के उचित भण्डार थे इसी वजह से होसंग्शाह के आक्रमण के बावजूद कई महीनो तक नगरवासी दुर्ग में सुरक्षित रहे। अंत में होशंगशाह को पता चला की नदी से एक मार्ग की सहायता से पानी किले में जाता है

किले में ही अनाज की व्यवस्था है अत: उसने नदी में गाय का मांस डलवा दिया दूषित पानी और अनाज पानी की कमी के चलते मजबूरन होशंगशाह से सैन्य शक्ति में कमजोर अचलदास को युद्ध के लिए किले से बाहर आना पड़ा .

यह हमले में हार निश्चित थी इस कारन कायरता के साथ मरने से अच्छा राजा अचल दास ने सेना सहित युद्ध करने का सोचा और होशंगशाह पर आक्रमण कर दिया।

गागरोन किले का निर्माण – Construction of Gagaron Fort

गागरोन किले के स्थापना और निर्माण की दृष्टि से यह किला पूरे राजस्थान में बेजोड़ कहा जाता है। गागरोन किले की सबसे बड़ी विशेषता है की इसकी नैसर्गिक सुरक्षा और व्यवस्था बहोत सख्त थी।

गागरोन किले की चारोओर ऊंची पर्वत मालाओं की अभेध दीवारों सतत प्रवाहमान नदियों और गीच जंगलो से गागरोन को कुदरती सुरक्षा कवच प्राप्त हुवा था।

गागरोन किले को इस तरह बनाया गया था कि यह किला पर्वतमाला के आकार से इस तरह मिला था कि दूर से यह सहसा दिखाई नहीं पड़ता।इस किले की बनावट है की इस अद्भुत विशेषता के कारण शत्रु के लिए दूर से किले की स्थिति का अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है।

गागरोन किले की बनावट में बड़ी-बड़ी पत्थर की शीलाओ से निर्मित किला की उन्नत प्राचीरे, विशालकाय बुर्जो तथा सतत पानी से भरी रहने वाली खाई मौजूद है। किले का घुमावदार सुदृढ़ प्रवेश द्वार इन सब की वजह से गागरोन किले की सुरक्षा व्यवस्था को तोडना किसी भी शत्रु के लिए लोहे के चने चबाने का काम है।

गागरोन किला तिहरे परकोटे से सुरक्षित प्रवेश दरवाजे में सूरजपोल, भैरवपोल, तथा गणेशपोल मुख्य है। किले की विशाल सुदृढ़ बुर्जो में रामबुर्ज और ध्वजबुर्ज आकर्षक है। प्राचीन काल में गागरोन केप्रमुख प्रवेश दरवाजे पर लकड़ी का उठने वाला पुल बना था।

गागरोन किला खासियतों से क्यों भरा है – Why is Gagaron Fort full of features

Gagron Fort का निर्माण डोड महाराज बीजलदेव ने 12वीं सदी में करवाया था। और 300 साल तक यहां खीची राजाओने शासन किया । यह किले में 14 युद्ध और 2 जोहर (जिसमें महिलाओं ने अपने को मौत के गले लगा लिया) हुए थे।

यह उत्तर भारत का एकमात्र किला है जो चारों ओर से पानी से घिरा हुआ है इस कारण इसे जलदुर्ग के नाम से भी पुकारा जाता है। यह एकमात्र ऐसा किला है जिसके तीन परकोटे मौजूद हैं।

सामान्य सभी किलो के दो ही परकोटे होते हैं। इसके अलावा यह भारत का एकमात्र ऐसा किला है जिसे बगैर नींव के निर्माण किया गया था। गागरोन किले के बुर्ज पहाडियों से मिली हुई थी।

राव मुकंद सिंह को किसने सौंप था किला –

ऐसा माना जाता है कि इस किले पर शाहजहां का भीशासन हुआ करता था। परन्तु शाहजहां ने कोटा के राजा राव मुकंद सिंह को ये किले का अधिकार सौंपा दिया था।

इसके बाद इस किले पर राजपूतों काअस्तित्व हो गया था। इस किले का निर्माण समय समय पर अलग -अलग राजाओं द्वारा निर्माण किया गया था। और 18वीं शताब्दी तक इस किले का क्षेत्र काविस्तार पांच बार हुआ था।

आखिर क्यों जौहर करना पड़ा था हजारों महिलाओं को –

राजा अचलदास खींची मालवा के प्रसिद्ध गागरोन गढ़ के अंतिम प्रतापी राजा माने जाते थे। मध्यकाल में गागरोन का विकास एवं समृद्धि पर मालवा में बढ़ती मुस्लिम शक्ति की गिद्ध जैसी नजर सदैव लगी रहती थी।

ई.स1423 में मांडू के सुल्तान होशंगशाह ने 30 हजार घुड़सवार, 84 हाथी व अनगिनत पैदल सेना अनेक अमीर राव व राजाओं के साथ इस गढ़ को घेर लिया।

अचलदास खींची की सेना से कई गुना ज्यादा सेना तथा उन्नत अस्त्रों -शस्त्रों के सामने जब अचलदास को अपनी पराजय निश्चित रूप से जान पड़ी तो उन्होंने निडरतापूर्वक आत्मसमर्पण की जगह पर राजपूती परंपरा में, वीरता पूर्वक से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।

दुश्मन से अपनी असमत की रक्षा के लिए हजारों महिलाओं ने जौहर करके मौत को गले लगा लिया।

गागरोन दुर्ग के में कितने जौहर हुए – How many Jauhars happened in Gagaron Durg

  • गागरोन किला पहला जौहर :

गागरोन का सर्वाधिक ख्यातनाम और पराक्रमी राजा भोज का पुत्र अचलदास खींची हुआ। जिसके शासनकाल में गागरोन का पहला जौहर हुआ। अचलदास खींची की पटरानी लाला मेवाड़ी(उमादे) मेवाड़ के महाराणा कुंभा की बहन थी।

ई.स1423 में मांडू के सुल्तान अलपखाँ गोरी (होशंगशाह) ने एक बहोत बड़ी विशाल सेना लेकर गागरोन पर हमला कर दिया और किले को चारो तरफ से घेर लिया।

अचलदास वीरगति प्राप्त होने पर उसकी रानियों और दुर्ग की वीरांगना ओने जौहर की ज्वाला में जलकर अपनी गरिमा और मान सम्मान को बचाया। प्रसिद्ध कवि शिवदास गाड़न ने अपनी काव्य कृति अचलदास खींची री वचनिका मैं इस युद्ध का विशद वर्णन किया।

  • गागरोन किला दूसरा जौहर :

ई.स1444 में मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी प्रथम अवं अचलदास खींची के पुत्र पाल्हणसी के मध्य में हुआ। इसमें भी कई वीरों ने केसरिया बाना पहन के अपने प्राणों का बलिदान दीया तथा दुर्ग की वीरांगनाओं ने जोहर का अनुष्ठान कर अपने सतीत्व की रक्षा की

गागरोन के इस दूसरे जौहर का वर्णन मआसिरे महमूदशाही मैं विस्तृत वर्णन किया है । विजय सुल्तान ने किले में एक और कोट का निर्माण करवाया था। और उसका नाम मुस्तफाबाद रखा।

पृथ्वीराज ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘वेलीक्रिसन रुक्मणी री’ का लेखन कार्य इसी दुर्ग में रहकर किया था। इस दुर्ग का वर्णन अबुल फजल द्वारा रचित आईने अकबरी में मालवा सुबे की एक सरकार (जिला) के रूप में किया गया है।

बादशाह जहांगीर ने यह किला बूंदी के हाडा शासक राव रतन हाड़ा को जागीर में दे दिया। उसके बाद यहां पर हाड़ाओ का अधिकार रहा।

सुल्तान शाहजहां के शासनकाल में जब कोटा में हाड़ाओं काप्रथम राज्य स्थापित हुआ तब गागरोनकिला के राव मुकुंद सिंह को प्राप्त हुआ था। और फिर स्वतंत्रता प्राप्ति तक किला हाड़ा नरेशो के अधिकार में रहा जिन्होंने इस प्राचीन किले का जीर्णोद्धारऔर विस्तार करवाया था।

किले के द्वारो का उपयोग किस सजा के लिए होता था – For which punishment were the gates of the fort used

History of Gagron Fort In Hindi - गागरोन किले का इतिहास हिंदी में
History of Gagron Fort In Hindi – गागरोन किले का इतिहास हिंदी में

Gagron Fort के दो प्रमुख प्रवेश के लिए द्वार हैं। एक दरवाजा नदी की और खुलता है। तो दूसरा पहाड़ी की रास्ते की ओर निकलता है। इतिहासकारों के अनुसार, इस का का निर्माण 7वीं सदी से लेकर 14वीं सदी तक चला था।

पहले इस किले का इस्तेमाल दुश्मनों को मौत की सजा के लिए किया जाता था।

गागरोन किले में अकबर ने क्या बनवाया था –

गागरोन का महत्व मध्ययुग काल में इस बात से मालूम होता है कि प्रख्यात सम्राट शेरशाह और अकबर दोनों ने इस पर व्यक्तिगत रूप से आ कर छल से जित प्राप्त की और इसे अपने विस्तार क्षेत्र में शामिल दिया।

अकबर ने इसे अपना प्रमुख मुख्यालय भी बनाया लेकिन अंत समय में इसे अपने नवरत्नों में से एक बीकानेर के राजपुत्र पृथ्वीराज को जागीर में दिया।

गागरोन किले का रहस्य क्या है –

  • अचलदास के पलंग को सैंकड़ो सालो तक क्यों किसीने हाथ नहीं लगाया :

होशंगशाह की जीत के बाद अचलदास खींची की वीरता से इतना प्रभावित हुवे थे कि उसने राजा के व्यक्तिगत निवास और अन्य स्मृतियों से कोई छेड़छाड़ नहीं किया था। सैकड़ों सालो तक यह किला मुस्लिमोंके के पास रहा।

लेकिन न जाने किसी बात का भय या आदर से किसी ने भी अचलदास के शयनकक्ष में से उसके पलंग को हटाने या नष्ट करने की कोशिस किसीने नहीं कि थी। ई.स1950 तक यह पलंग उसी जगह पर मौजूद रहा।

  • पलंग पर राजा की कैसी आवाजे आया करती थी :

यह Gagron Fort के बारे में सुपरिटेंडेंट बने हुवे ठाकुर जसवंत सिंह ने इस पलंग के बारे में रोचक बात कही। ठाकुर जसवंत सिंह के चाचा मोती सिंह जब भी गागरोन के किलेदार थे।

उनके किले में कई दिनों तक इस गागरोन किले में रहे थे। मोती सिंहने स्वयं इस पलंग और उसके जीर्ण-शीर्ण पलंग और बिस्तरों को देखा था। मोती सिंहने कहा कि उस समय लोगों की मान्यता थी कि राजा हररोज रात को कमरे में आकर इस पलंग पर सोया करते हैं।

रात को कई लोगों ने भी इस कमरे से किसी के हुक्का पीने की आवाजें सुनी है।

  • पलंग के पास रोज मिलते कितने रुपए मिलते थे : 

गागरोन किले में हर शाम पलंग पर लगे बिस्तर को साफ किया जाता है। उस पलंग को व्यवस्थित करने का काम राज्यसरकार ने एक नाई करता था।

उस पलंग रोज सुबह पलंग के बिस्तर पर पांच रुपए रोज मिलते थे। कहा जाता है की एक दिन यह रुपए मिलने की बात नाई ने किसी और से कह दी। तबसे रुपए मिलने बंद हो गए।

लेकिन बिस्तरों की व्यवस्था जब तक कोटा रियासत में रही बदस्तूर चलती रही। कोटा रियासत के राजस्थान में विलय के बाद यह परंपरा धीरे-धीरे समाप्त होने लगी

गागरोन किले के अन्य स्मारक –

  • गणेश पोल।
  • नक्कार खाना।
  • जनाना महल,
  • दीवाने आम।
  • दीवान ऐ ख़ास।
  • भैवी पोल।
  • किशन पोल।
  • रंग महल इत्यादि कुछ जगह है।

गागरोन किला में अन्य स्मारक भी देखने के लिए मजूद है।

गागरोन किला खुलने और बंद होने का समय –

Gagron Fort यात्रिको के घूमने के लिए हरदिन सुबह 9.00 बजे से शाम 5.00 बजे तक प्रवेश खुला रहता है। और गागरोन किले की पूर्ण और विस्तृत यात्रा गुमने के लिए 3 से 4 घंटे का समय लगता है।

गागरोन किला के आसपास के पर्यटन स्थल –

गागरोन किला राजस्थान के प्रसिद्ध शहर झालावाड़ में घूमने जाने का प्लान बना रहे है तो हम आपकी जानकारी से परिचित करा दें की झालावाड़ में गागरोन किले के अलावा भी अन्य प्रसिद्ध आकर्षित पर्यटक स्थान है

जिन्हें आप अपनी गागरोन किला और अन्य स्थलों पर झालावाड़ की यात्रा के दोरान अवश्य यात्रा कर सकते हैं

  • चंद्रभागा मंदिर।
  • भीमसागर बांध।
  • झालावाड़ का किला।
  • सरकारी संग्रहालय।
  • शाह का मकबरा।
  • झालरापाटन सूर्य मंदिर।

गागरोन किला के आसपास के पर्यटन स्थल का इतिहास

  • उन्हेल जैन मंदिर :

उन्हेल जैन मंदिर झालावाड़ के दक्षिण क्षेत्र में शहर से 150 कि.मी दूर मौजूद उन्हेल जैन मंदिर है। जो भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित है। यहां विराजमान भगवान पार्श्वनाथ की मूर्ति करीबन 1000 साल पुरानी है। यहां घूमने के साथ-साथ कम पैसों में रहने और खाने का भी लुफ्त उठाया जा सकता है।

  • बौद्ध गुफा और स्तूप :

बौद्ध गुफा स्तूप झालावाड़ के मुख्य आकर्षणों में से एक है। गुफाओं की अंदर की शोभा बढ़ाते हैं भगवान बुद्ध की विशाल मूर्ति और नक्काशीदार स्तूप मौजूद है।

झालावाड़ से करीबन 90 कि.मी दूर इस स्थान आकर आप भारतीय कला का अद्भुतकला देख सकते हैं। यात्रिक यहां आसपास की और भी दूसरे गांव विनायक और हटियागौर को एक्सप्लोर कर सकते हैं।

  • दलहनपुर :

दलहनपुर झालावाड़ से करीबन 54 कि.मी दूर छापी नदी के तट पर स्थित है। जो खासतौर से स्तंभ, नक्काशीदार मूर्तियों और तोरण के लिए प्रसिद्ध है।

  • द्वारकाधीश मंदिर :

झालावाड़ में ई.स 1776 में गोमती सागर झील के तट पर बना द्वारकाधीश मंदिर भी बहुत ही खूबसूरत ,आकर्षित और प्रसिद्ध घूमने वाली जगह है।

  • हर्बल गॉर्डन :

झालावाड़ में द्वारकाधीश के नज़दीक में हर्बल गॉर्डन जहां आपको कई तरह के हर्बल और मेडिकल प्लान्ट देखने मिलेंगे। जैसे वरूण, लक्ष्मण, शतावरी, स्तीविया, रूद्राक्ष और सिंदूर देखने को मिल जायेंगे ।

  • चंद्रभाग मंदिर :

झालावाड़ में चंद्रभाग नदी के तट पर निर्मित आकर्षित चंद्रभाग मंदिर के नक्काशीदार स्तंभ देखने को मिलेंगे। इस मंदिर में स्तंभ के अलावा यहां स्थापित मूर्ति भी कला का अदभुत उदाहरण पेश करती हैं।

  • झालावाड़ गर्वनर्मेंट म्यूज़ियम :

झालावाड़ गर्वनर्मेंट म्यूज़ियम राजस्थान के सबसे पुराने म्यूज़ियम्स में से एक है। जहां आप दुर्लभ पेंटिंग्स, हस्तलेखों और मूर्तियों को देखना आनंद ले सकते हैं। शहर के मद्य भाग में बसा ये म्यूज़ियम यात्रियों के लिये आकर्षण का केंद्र है।

गागरोन किला घूमने का सबसे अच्छा समय –

राजस्थान के झालावाड़ में गागरोन किला घूमने जाने के बारे में प्लान बना रहें हैं तो हम आपको बता दें कि झालावाड़ जाने के लिए सर्दियों के मौसम के समय में यानी अक्टूबर-फरवरी का समय सबसे अच्छा समय माना जाता है।

क्योंकि इस समय मौसम के दिन में काफी अच्छा महसूस होता है और रात ठण्ड से भरी होती हैं। झालावाड़ शुष्क जलवायु के साथ एक बहुत गर्म क्षेत्र में स्थित होने की वजह से गर्मियों के मौसम में यहां की यात्रा करना कठिन हो जाता है।

गागरोन के किले की एंट्री फीस –

Gagron Fort में यात्रिको को प्रवेश के लिए एंट्री फीस 50 रूपये प्रति व्यक्ति है।

गागरोन किला झालावाड़ कैसे जाये –

राजस्थान राज्य के मुख्य शहर झालावाड़ में गागरोन का किला घूमने जाने का प्लान बना रहें हैं। आप गागरोन किला जाना चाहते है तो आप परिवहन के दौरान सड़क, ट्रेन और हवाई मार्ग के द्वारा आप गागरोन का किला जा सकते है।

फ्लाइट से गागरोन दुर्ग झालावाड़ कैसे पहुंचे –

हवाई मार्ग से यात्रा करके गागरोन का किला झालावाड़ यात्रा करने जाने का प्लान बना रहे है तो हम आपको कह दे की झालावाड़ का नजदीकी हवाई अड्डा कोटा में है।

जो करीबन झालावाड़ से सिर्फ 82 कि.मी दूर स्थित है। भारत केमुख्य शहरो से यात्रा करके कोटा हवाई अड्डा जा सकते है। और कोटा एयरपोर्ट से झालावाड़ के लिए आप कैब, टैक्सीभाड़े पर ले सकते हैं। या राजस्थान रोडवेज की बस से यात्रा करके झालावाड़ पहुंच जा सकते है

ट्रेन से गागरोन का किला झालावाड़ कैसे पहुँचे –

गागरोन किले की यात्रा यात्रिक ट्रेन से करने की योजना बना रहें है तो झालावाड़ का नजदीकी रेल्वे स्टेशन रामगंज मंडी में है। वह जंक्शन झालावाड़ से करीबन 26 कि.मी की दूरी पर स्थित है।

वह जंक्शन से गागरोन का किले तक जाने के लिए आप टैक्सी, केब या यहाँ के स्थानीय वाहनों की मदद ले सकते हैं।

सड़क मार्ग से गागरोन किला कैसे जाये –

Gagron Fort सड़क मार्ग से झालावाड़ जाना चाहते हैं राजस्थान के प्रमुख रोजवेज के माद्यम से अन्य प्रमुख शहरों से जुड़ा हुवा है। इस मार्ग पर कई सार्वजनिक वाहन और निजी बसें हैं।

जो झालावाड़ के सभी आसपास के मुख्य शहरों से जोड़ती है। वहा से आप अपनी कार या फिर टैक्सी से आप गागरोन किले तक पहुँच सकते है

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