नमस्कार दोस्तों Harishchandragad History in Hindi में आपका स्वागत है। आज हरिश्चंद्रगढ़ किले का इतिहास और घूमने की जानकारी बताने वाले है। महाराष्ट्र के अहमदनगर में मालशेज घाट पर 1,422 मीटर की दूरी पर स्थित यह पहाड़ी किला अपनी नायाब प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है। कोई भी ट्रेकर्स आसानी से हरिश्चंद्रगढ़ पहुंच सकता है। यह राजसी चोटी आसपास की सुंदरता में चार चांद लगा देती है। हरिश्चंद्रगढ़ ठाणे, पुणे और नगर की सीमा पर स्थित किले का इतिहास पेचीदा एव भूगोल अद्भुत है।
भारत के सभी किले कोई न कोई राजा के नाम से जुड़ा है। लेकिन हरिश्चंद्रगढ़ की पौराणिक पृष्ठभूमि दो से चार हजार साल पहले की है। प्राचीन अग्नि पुराण और मत्स्य पुराण में भी हरिश्चंद्र का उल्लेख है। जो साढ़े तीन हजार वर्ष से अधिक पुराना है। यहाँ सूक्ष्मपाषाणिक मानव के अवशेष मिले हैं। हरीशचंद्रगढ़ में तीन मुख्य चोटियां रोहिदास, हरीशचंद्र और तारामती हैं। तीनो में तारामती चोटी सबसे ऊंची है। और ट्रैकर्स के बीच ये जगह बहुत लोकप्रिय है। तारामती चोटी से कोंकण क्षेत्र का खूबसूरत नज़ारा दिखाई देता है।
Harishchandragad History in Hindi
हरिश्चंद्रगढ़ किले का इतिहास काफी प्राचीन है। किला मूल रूप से कलचुरी राजवंश के शासन के समय में यानि 6 वीं शताब्दी का है। उस युग के समय में गढ़ का निर्माण किया गया था। उसके पश्यात अंदाजित 11 वीं शताब्दी ईस्वी में विभिन्न गुफाओं को उकेरा गया है। 14वीं शताब्दी ईस्वी में चांगदेव ऋषि यह स्थल पर तपस्या करते थे। उसके पश्यात यह किला मुगलों के नियंत्रण में गया था। और बाद में 1747 ई. में मराठा राजाओ ने किले को अपने शासन में ले लिया था। यहा से माइक्रोलिथिक मानव के अवशेष मिले हैं। मत्स्यपुराण, अग्निपुराण और स्कंदपुराण जैसे विभिन्न पुराणों में हरिश्चंद्रगढ़ के बारे में कई संदर्भ देखने को मिलते हैं।

हरिश्चंद्रगढ़ किला कहा है
महाराष्ट्र के अहमदनगर में मालशेज घाट पर खिरेश्वर से 8 किमी की दूर , भंडारदरा से 50 किमी, पुणे से 166 किमी और मुंबई से 218 किमी की दूरी पर स्थित है। महाराष्ट्र में ट्रेकिंग के लिए बहुत लोकप्रिय स्थान हरिश्चंद्रगढ़ एक ऐतिहासिक पहाड़ी किला है। प्रसिद्ध भंडारदरा पर्यटन स्थलों में से एक किले की ऊंचाई 1,424 मीटर है। महाराष्ट्र घूमने जाते पर्यटकों को यह किला जरूर देखना चाहिए।

हरीशचंद्रगढ़ किला घूमने का सबसे अच्छा समय
वैसे तो साल भर आप बहुत आसानी से किले को देखने के लिए जा सकते है। लेकिन मॉनसून के बाद यानि बारिश के मौसम के बाद अक्टूबर से दिसंबर तक हरीशचंद्रगढ़ सबसे अच्छा मानाजाता है। क्योकि उस समय में यह विस्तार हरियाली से हराभरा और काफी खूबसूरत लगता है। मॉनसून के महीने यह पहाड़ी किले से मनोरम दृश्य दिखाई देता है। मगर बारिश में ट्रैकिंग करना बहुत मुश्किल और खतरनाक होता है।

Harishchandragad Fort Architecture
मत्स्यपुराण, अग्निपुराण और स्कंदपुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों एव पुराणों में हरिश्चंद्रगढ़ के बारे में कई कहानिया मिलती हैं। ऐसा कहा जाता है। की 6 वीं शताब्दी में कलचुरी वंश के शासन के समय उसका निर्माण हुआ था। उसकी अलग अलग गुफाओं को 11 वीं शताब्दी में तराशा गया था। गुफाओं में विष्णु भगवान की मूर्तियां बनी हैं। मगर चट्टानों को तारामती और रोहिदास नाम दिया गया है। 14वीं शताब्दी में यह स्थल महान ऋषि चांगदेव की तपस्थली थी।
यहाँ की गुफाएं उसी काल की संस्कृति प्रदर्शन करती है। हरिश्चंद्रेश्वर मंदिर और केदारेश्वर की गुफा में नागेश्वर के मंदिरों की नक्काशी किला मध्ययुगीन काल का है। ऐसा संकेत देते है। क्योंकि यह महादेव कोली जनजातियों के कुलदेवता है। वे मुगलों से पहले किले पर राज्य करते थे। बाद में किला मुगलों के नियंत्रण में और 1747 में मराठों ने यह किले पर कब्जा कर लिया था । कोंकण हरिश्चंद्रगढ़ का सबसे बड़ा आकर्षण है। हरिश्चंद्रगढ़ मंदिर राजा हरिश्चंद्रेश्वर को समर्पित है। उसका निर्माण हेमाडपंती शैली की वास्तुकला की में बनाया गया है।

Harishchandragad Fort Wildlife And Flora
यह किले की खूबसूरती के साथ साथ दूसरी कई खूबसूरती छिपी है। क्योकि यह किले के आस पास करवंड, कर्वी जाली, ध्याति, उक्शी, मैडवेल, कुड़ा, पंगली, हेक्कल, पनफुति, गरवेल आदि पौधे देखने को मिलते है। उसके साथ साथ यह विस्तार में आपको लोमड़ी, तारा, रणदुक्कर, भैंस, बिब्ते, खरगोश, भिकर, जुगाली करने वाले आदि वन्यजीव भी देखने को मिलते है। पर्यटक स्थल की बात करे तो नानेघाट, जीवनधन, रतनगढ़, कटराबाई खंड, अजोबचा डोंगर, कसुबाई, अलंग, मदन, कुलंग, भैरवगढ़, हदसर और चावंद सभी गढ़ के उच्चतम तारामती से दिखाई देते हैं।

हरिश्चंद्रगढ़ किले के देखने योग्य पर्यटक स्थल
Kedareshwar Cave at Harishchandragad
मंदिर के साथ ही काफी दिलचस्प केदारेश्वर गुफा स्थित है। दिर के दाहिनी ओर स्थित विशाल गुफा में 5 फीट लंबा शिवलिंग स्थित है। भगवान शिव के शिवलिंग पास ज्यादा ठंडे होने की वजह से शिवलिंग तक पहुंचना बहुत ज्यादा मुश्किल भरा है। उसकी मूर्ति के चारों ओर स्तंभ बने है। और उसके लिए एक किवंदती है कि यह चार युगों के प्रतीक और चौथे स्तंभ के टूटने पर दुनिया खत्म हो जाएगी। उसके अलावा गुफा में कई खूबसूरत मूर्तियां हैं। मंदिर में हर रोज चार दीवारों से पानी रिसता रहता है। देवनागरी में ऋषि चांगदेव द्वारा स्थापित एक शिलालेख भी देखने को मिलता है।
तारामती चोटी
तारामाची चोटी (Taramachi Peak) यहां की सबसे ऊंची चोटी है। जो महाराष्ट्र राज्य की तीसरी सबसे ऊंची चोटी है। यह चोटी पर खड़े होकर पर्यटक एक शानदार सूर्योदय की सुनहरी छतरी का आनंद लेते हुए। नजदीकी पर्वत श्रृंखलाओं का अद्भुत दृश्य दिख सकता है। यह स्थल एव हरिश्चंद्रगढ़ मध्यम ट्रेकिंग चुनौतियों में आता है। यह किले का सबसे ऊपरी बिंदु 1429 मीटर है। उन्हें तारामंची के नाम से भी जाना जाता है।

हरीशचंद्रेश्वर मंदिर Harishchandragad
पर्यटक किले तक पहुंचने के पश्यात हरीशचंद्रेश्वर मंदिर जा सकते हैं। पत्थरों से बनाया यह मंदिर खूबसूरत संरचना है। हरीशचंद्रेश्वर मंदिर में चारों दिशाओं से पर्यटक प्रवेश कर सकता है।उसके प्रमुख दरवाजे को चेहरे की मूर्ति से सजाया गया है। ऐसा कहाजाता है कि ये चेहरा मंदिर के रक्षक का है। मंदिर की शिल्पकला दक्षिण भारत के मंदिरों से मिलती जुलती दिखाई देती है।
सप्ततीर्थ पुष्करणी
मंदिर के पूर्व में सप्ततीर्थ पुष्कर्णी नामक झील है। उसके तट पर मंदिर में भगवान विष्णु की मूर्तियाँ हैं। लेकिन वर्तमान में उस मूर्तियों को हरिश्चंद्रेश्वर मंदिर के पास की गुफाओं में स्थानांतरित किया गया है। क्योकि यह स्थल की दुखद दुर्दशा के लिए कई ट्रेकर्स जिम्मेदार है। तालाब में प्लास्टिक कचरा और अन्य चीजें फेंकते यह झील ख़राब हुई है। 10 साल पहले पानी पीने योग्य था। लेकिन अब उपयुक्त नहीं है।

कोकण कड़ा
पश्चिम की ओर स्थित यह चट्टान कोंकण आसपास के क्षेत्र के दृश्य प्रदान करता है।
चट्टान में एक ओवरहैंग है। कई समय वह से एक गोलाकार इंद्रधनुष देख सकते है।
वह तब देखा जा सकता है। जब घाटी में थोड़ी धुंध एव सूरज घाटी की ओर मुख करने वाले व्यक्ति के ठीक पीछे होता है ।
यदि अप्रैल-मई में यह स्थान पर जाते हैं। तो अपनी पनामा टोपी को चट्टान से फेंक दें।
उसमे ऊंचे उठने और पठार पर वापस गिरने का आनंद जरूर लें।
Harishchandragad Trek Route
नलिची वाट से ट्रैक
किले सभी रास्तों में से सबसे मुश्किल नालिची वाट है। और मार्ग पर अनुभवी ट्रेकर्स के साथ ही जाना चाहिए। रात के समय में पहाड़ी की चोटी पर नाइट कैंप लगाना होता है। यह रूट पर ट्रैकिंग आपको सुबह जल्दी 6 बजे शुरु करनी पड़ेगी। तब कहीं जाकर शाम 4 बजे आप पहाड़ी की चोटी पर पहुंच पाएंगें। बीच में नली नदी के पास रूक सकते हैं। बेलपाड़ा गांव में बेस कैंप लगाना होता है। एव आखिरी स्थल कोंकण कड़ा है। यह जगह से सूर्योदय का नज़ारा आप कभी नहीं भूल पाएंगें।

खीरेश्वर गांव से ट्रैक
किले सभी रास्तों में एक खीरेश्वर गांव से ट्रैक है। यह रास्ते में खीरेश्वर गांव में बेस कैंप लगाया जाता है। एक दिन के ट्रैक के 4 घंटे का समय लगता है। खीरेश्वर गांव से ट्रैक का रास्ता ज्यादा मुश्किल नहीं लगता है। और आप प्राकृतिक सौंदर्य और खूबसूरत नज़ारों को बहुत अच्छे से देख सकते है।
पचनई से ट्रैक
पर्यटकों को किले तक पहुंचने के लिए तीन मुख्य ट्रैकिंग रास्ते हैं।
उसमे पचनई से शुरुआत होती है।
यहाँ से किले तक पहुंचने में 3 घंटे का समय लगता है।
ट्रैकर्स के लिए ये जगह सबसे उत्तम ट्रेक और चोटी पर आराम से पहुंच सकते है।
नए ट्रैकर्स के लिए ये जगह सबसे उत्तम ट्रेक मानी जाती है।
क्योकि यह रस्ते में जोखिम सबसे कम है।
हरिश्चंद्रगढ़ किला कैसे पहुंचे
ट्रेन से हरिश्चंद्रगढ़ किला कैसे पहुंचे
पर्यटक अगर हरिश्चंद्रगढ़ किला जाने के लिए रेलवे मार्ग को पसंद करता है। तो उसका निकटतम रेलवे स्टेशन इगतपुरी ट्रेन स्टेशन है। जो हरिश्चंद्रगढ़ किले से तक़रीबन 41 किमी दूर है। लेकिन यहां पहुंचने के लिए आपको मुंबई (कल्याण) से ट्रेन लेनी होगी। पूरे भारत से ट्रेनें कल्याण को किले से जोड़ती हैं। यह स्टेशन हावड़ा, नागपुर, इलाहाबाद और चेन्नई से बहुत अच्छे से जुड़ा है।
सड़क मार्ग से हरिश्चंद्रगढ़ किला कैसे पहुंचे
पर्यटक अगर हरिश्चंद्रगढ़ किला जाने के लिए सड़क को चुनता है। तो यह किला मुंबई से 201 किमी दूर स्थित है। यात्री 4 घंटे और 30 मिनट के भीतर यहां पहुंच सकते हैं। घोटी-शुक्ला तीर्थ रोड या खंबाले पर नागपुर-औरंगाबाद-मुंबई राजमार्ग तक पहुंचने के लिए एनएच 3 का अनुसरण कर सकते हैं। आप किले के नजदीक आने तक सड़क पर चल सकते है। हरिश्चंद्रगढ़ जाने के लिए सार्वजनिक और निजी बसे बहुत आसानी से मिलती रहती है। ख़ुबी फाटा से खिरेश्वर होते हुए मुंबई पहुँचने के लिए कल्याण सबसे अच्छा मार्ग है।
फ्लाइट से हरिश्चंद्रगढ़ किला कैसे पहुंचे
पर्यटक अगर हरिश्चंद्रगढ़ किला जाने के लिए हवाई मार्ग को चुनता है।
तो मुंबई नगरी का छत्रपति शिवाजी हवाई अड्डा हरिश्चंद्रगढ़ का निकटतम हवाई अड्डा है।
यह हरिश्चंद्रगढ़ किला से 154 किमी दूर स्थित है।
एयरपोर्ट से आपको सड़क मार्ग से बहुत आसानी से ट्रेकिंग स्थल तक जा सकते हैं।
Harishchandragad Fort Location हरिश्चंद्रगढ़ किला का मैप
Harishchandragad History Video
Interesting Facts
- यहाँ सूक्ष्मपाषाणिक मानव के अवशेष मिले हैं।
- मत्स्यपुराण, अग्निपुराण और स्कंदपुराण में हरिश्चंद्रगढ़ का निवेदन हैं।
- महान ऋषि चांगदेव 14वीं शताब्दी में यहां ध्यान किया करते थे।
- यहाँ रोहिदास, हरीशचंद्र और तारामती की तीन चोटियां सबसे ज्यादा प्रसिद्ध हैं ।
- हरीशचंद्रगढ़ एक शानदार पहाड़ी किला उसका निर्माण छठीं शताब्दी में हुआ था।
- हरीशचंद्रगढ़ किले को कल्चरी राजवंश के शासनकाल में बनवाया गया था।
FAQ
Q : हरिश्चंद्रगढ़ किला कहा है?
Ans : हरिश्चंद्रगढ़ किला महाराष्ट्र के अहमदनगर में मालशेज घाट पर स्थित है।
Q : हरिश्चंद्रगढ़ का निर्माण किसने करवाया था?
Ans : किले का निर्माण कलचुरी वंश ने 6वीं शताब्दी में किया था।
Q : हरिश्चंद्रगढ़ ट्रेक कितना कठिन है?
Ans : हरिश्चंद्रगढ़ ट्रेक बहुत ही कठिन है।
Q : क्या हरिश्चंद्रगढ़ ट्रेक के लिए खुला है?
Ans : हा हरिश्चंद्रगढ़ ट्रेक के लिए खुला है।
Q : हरिश्चंद्रगढ़ ट्रेक कितना लंबा है?
Ans : हरिश्चंद्रगढ़ से खीरेश्वर ट्रेक 16.8 मील लंबा है।
Conclusion
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Note
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