भारत के महाराष्ट्र राज्य में स्थित है। महाराष्ट्र के मुंबई elephanta caves mumbaiशहर से करीबन 11 की.मी की दुरी पर धारपुरी टापू पर मौजूद है। एलिफेंटा की गुफाओका को ई.स 1987 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में स्थान मिला।
एलिफेंटा का गुफाये सुन्दर और आकर्षित यात्रिकोको मंत्र मुग्ध कर देती है। elephanta caves मद्ययुगीन काल से रॉक-कट कला का अदभुत नमूना है। एलिफेंटा गुफा को मूल रूप से धारपुरीचि लेनी के नाम से भी पहचाना जाना है।
अलिफेंटा की गुफाये भगवान शिव को समर्पित है। और एलिफेंटा की गुफाओका का निर्माण 5वी से 7वी सदी के समय में निर्माण किया गया है ऐसा कहा जाता है। एलिफेंटा की गुफाओको दो विभागों में विभाजित किया गया है।
यह गुफा मंदिर का प्रथम विभाग हिन्दू धर्म से सम्बंधित 5 गुफाओमे में विभाजित किया है। और दूसरा भाग बौद्ध धर्म से सम्बंधित दो गुफाओ का एक हिस्सा है।
elephanta caves में हिन्दू धर्म से सम्बंधित कई मुर्तिया शामिल है। जिसमे कई मूर्तियों में प्रमुख मूर्ति त्रिमूर्ति है त्रिमूर्ति यानि तीन सिरों वाली भगवान शिव की मूर्ति से जाना जाता है।
यह यह त्रिमूर्ति को गंगाधर नाम से भीं पहचाना जाता है। क्योकि यह मूर्ति गंगा नदी को स्वर्ग से धरती पर उतारनेका का वर्णन के रूप में किया गया है।
इसके अलावा मुंबई के गेटवे ऑफ़ इंडिया अर्धनारेश्वर की गुफा जाने का एक सुन्दर और शानदार अनुभव आपकी यात्रा के दौरान होगा। यदि आप elephanta caves जानना चाहते है तो आप हमारे आर्टिकल में गुफा का इतिहास , वास्तुकला कारीगरी और कई रहस्य कहानिया है।
गुफा का नाम | एलिफेंटा की गुफा ( elephanta caves ) |
राज्य | महाराट्र |
शहर | मुंबई |
निर्माणकाल | 5 वी से 7वी सदी |
किस भगवान को समर्पित है | भगवान शिव |
गुफा का क्षेत्र | 60000 वर्ग फिट |
एलीफैंटा में टोटल गुफा | 7 गुफाये |
Table of Contents
एलिफेंटा की गुफाये कहा स्थित है
- एलिफेंटा की गुफाये महाराष्ट्र राज्य के मुंबई शहर से करीबन 11 की.मी की दुरी पर धारपुरी टापू पर स्थित है।
एलिफेंटा की गुफाये किसने बनवाई है
एलीफैंटा की गुफाये किसने बनवाई इसका इतिहास कोई पक्का नहीं मिलता। क्योकि elephanta caves के बारे में कई अटकलों की है। माना जाता है की यह गुफाओका निर्माण माना जाता है की पाण्डवों द्वारा किया गया है।
कुछ लोगो का मानना हे की इस उफ़ा का निर्माण शिव भक्त वाणासुर ने करवाया है। परन्तु स्थानीय परंपरा के अनुसार ऐसा लगता है की यह गुफा की वास्तुकला का निर्माण हाथो से हुवा हो ऐसा बिलकुल नहीं लगता।
एलिफेंटा की गुफाओका का निर्माण कब हुवा था – Construction of Elephanta Cave
एलिफेंटा की गुफाओका का निर्माण 5वी से 7वी सदी के समय में निर्माण किया गया है ऐसा कहा जाता है।
एलिफेंटा की गुफा का क्षेत्र कितना है – elephanta caves Zone
एलिफेंटा की आकर्षित गुफा 60000 वर्ग फिट के क्षेत्र में फेली हुई है।
एलिफेंटा में कितनी गुफाये है – How many caves are in elephanta
elephanta caves ओकी परिसर में टोटल 7 गुफाये मौजूद है। जिस 7 गुफा में से 5 गुफाये हिन्दू धर्म का सम्बंद दिखाई देता है।
एलिफेंटा की गुफाओ का इतिहास – elephanta caves history
एलिफेंटा की गुफाओका का निर्माण बादामी चालुक्य सम्राट पुलकेशी द्रितीय द्वारा कोंकण के मौर्य शासको की हार के समय का इतिहास मिलता है।
उस समय भगवान शिव को समर्पित है यह विशाल elephanta caves ओको पूरी या पूरी का नाम से भी पहचाना जाता है। और यह धारपुरी टापू पहले कोंकण मौर्यो की राजधानी मानी जाती थी।
इतिहासकारो के मतानुसार यह प्रसिद्ध एलिफेंटा की गुफाओका निर्माण कोंकण मोर्यो ने यह गुफाओका निर्माण करवाया था ।
कुछ इतिहासकार यह गुफाओको बनाने वाले राष्ट्रकूटों और चालुक्यों द्वारा बनवाया गया था। इन गुफाओ का इतिहास पुर्तग़ालियो से भी मिलता जुलता है।

ऐसा कहा जाता है की करीबन 16 मी सदी में पुर्तगालियों का शासन और अधिकार था। इस गुफाओंमे राजघाट में स्थित हाथी की विशाल मूर्ति को दिखाई देते हुवे इस टापू का नाम एलिफेंटा नाम से जाना जाता है।
इतिहासकारो के अनेक अलग-अलग मत होने के अनुसार एलिफेंटा की प्रसिद्ध और आकर्षक गुफाओ का कोई स्पष्ट इतिहास मिलता नहीं है।
इस एलीफैंटा की गुफाओका नर्माण किसने करवाया और कब गुफाओका कब निर्माण करवाया इसका कोई पक्का सबुत नहीं मिलता। कई इतिहासकरो के मतानुसार इस गुफाओका निर्माण पांडवो द्वारा करवाया गया था।
कुछ इतिहास कहते हे की यह गुफाओका निर्माण शिव का भक्त बाणासुर द्वारा भी माना जाता है ऐसा माना जाता है।
एलिफेंटा गुफाओ की वास्तुकला – Architecture of elephanta caves
मुंबई से लगभग 11 की.मी की दुरी पर स्थित है। एलिफेंटा की आकर्षित गुफा 60000 वर्ग फिट के क्षेत्र में फेली हुई है। elephanta caves ओकी परिसर में टोटल 7 गुफाये मौजूद है।
जिस 7 गुफा में से 5 गुफाये हिन्दू धर्म का सम्बंद दिखाई देता है। यह 5 गुफामे हिन्दू वास्तुकला दिखाई देती है।
एलिफेंटा में स्थित गुफा नम्बर 1 वह गुफा ग्रेट गुफा नाम से भी पहचानी जाती है। ग्रेट गुफा में भगवान शिव की कई कलात्मिक मुर्तिया बिराजमान है।
यह गुफा नंबर 1 के मद्यमे भगवान शिव की त्रिमूर्ति स्थापित है वह त्रिमूर्ति भगवान शिव को समर्पित है। वह त्रिमूर्ति सदाशिव के नाम से भी प्रसिद्ध है।
इस ग्रेट गुफा में एक और भी शिव की मूर्ति मौजूद है वह मूर्ति पवित्र नदी गंगा को धरती पर लाने का सुन्दर वर्णन यह मूर्ति द्वारा किया है।
elephanta caves न 2 से गुफा 5 तक की गुफा को कैनिन हिल के नाम से भी जनि जाती है। और 6 से 7 तक की गुफाये स्तूप हिल के नाम से भी जानी जाती है।
और वही गुफा नम्बर 6 को सीताबाई गुफा नाम से भी प्रसिद्ध है वहा पर गुफा नं 7 के आगे एक तालाब मौजूद है जो बौद्ध तालाब के नाम से भी जाना जाता है।
एलिफेंटा की गुफाये किस भगवान को समर्पित है – The God of Elephanta’s cave
एलीफेंटा की गुफाये भगवान शिव को समर्पित है। कैलास पति शिव का वर्णन किया है कैलास पर शिव पार्वती ,अर्धनारेश्वर की प्रतिमा स्थापित है
और एक ही शरीर में शिव -पार्वति की अभिव्यक्ति के रूप का वर्णन करती मुर्तिया दिखाई देती है। जिस का स्वरूप आधा पुरुष और आधा स्त्री का रूप का वर्णन किया गया है।
एलिफेंटा गुफा में मौजूद त्रिमूर्ति जो भगवान शिव का तीनो रूपों का वर्णन किया गया है। यह मूर्ति बहोत प्राचीन सुन्दर और आकर्षक है।
एलिफेंटा में कितनी कलात्मिक और प्रसिद्ध मूर्तिया है – How much art in elephanta caves
- नटराज के रूप में शिव की मूर्ति का वर्णन :
जैसे ही हम एलिफेंटा की गुफा में प्रवेश सबकी दृस्टि नटराज की मूर्ति पर पड़ती है ,और यह मूर्ति भगवान शिव के प्रसिद्ध रूप नटराज की है।
नटराज का संस्कृत में अर्थ होता है नटो का राजा अथवा नर्तकों के देव यह शब्द शिव को समर्पित है। यह नटराज का रूप भरतनाट्यम के रूप का प्रदर्शन करती है। यह भरतनाट्यम नृत्य कला ऐसा माना है की शिव द्वारा माना जाता है।
भगवान शिव द्वारा किया हुवा यह तांडव नृत्य को दो विभागों में विभाजित किया हुवा है। यह शिव का नृत्य है और आनंद प्राप्त करने के लिए यह नृत्य किया जाता है।

और शिव का दूसरा नृत्य तांडव है जो रूद्र तांडव के नाम से जाना जाता है यह नृत्य अत्यंत उग्र अवं विनाशकारी नृत्य से जाना जाता है। यह कहा जाता है की इस नृत्य से सृस्टि अस्तित्व में आती है और रूद्र तांडव नृत्य से सृस्टि का विनास हो जाता है।
यह मूर्ति पर पुर्तगाली विनाशलीला के संकेत स्पस्ट दिखाई देता है। इस मूर्ति का निचला हिस्सा पूर्ण भंगित है। यह मूर्ति हाली में खंडित है चार हाथो मेसे केवल एक ही हाथ सम्पूर्ण है।
भगवान शिव का नृत्य करते दर्शन करते देवी देवताओकी मुर्तिया पर भी कई खंडित निशान दिखाई देते है। इन मूर्तियोमे भगवान ब्रम्हा की मूर्ति आप तीन सर की मूर्ति भी देख सकते है।
- शिव द्वारा अंधकासुर वध की मूर्ति
भगवान शिव को कालभैरव के रूप में दर्शाया गया है। भैरव का अर्थ होता है भयावह, इस रूप में भगवान शिव को चन्द्रदेव अवं नागदेवता के सर पर अवं एक गले में हार धारण करके क्रोध से भरे हुवे आक्रामकस्थिति में आगे बढ़ते हुवे दिखाई पड़ती है।
यह मूर्ति के साथ भी खराब तत्वों से मूर्ति को नुकशान किया गया है। यह मूर्ति के दो हाथ और निचे का धड़ का अस्तित्व को समाप्त कर दिया है।
परन्तु शेषमूर्ति अभीभी शिव की आक्रामक मनोभावों का वर्णन करती दिखाई देती है और अभीभी वह मूर्ति सक्षम है। क्रोध से भरी हुई भृकुटियाँ, अंगारों जैसी लगती आँखें और नुकीले दन्त, दिखाई देता है।

यह मूर्ति द्वारा शिव का क्रोध हम तक पहुंचाने के माद्यम से शिल्पकारों की कला अत्यंत प्रसंसनीय और आकर्षक दिखाई देती हुवी नजर आती है।
भगवान् शिव के दायें हाथ में तलवार पकड़ी हुई है। बाएं हाथ में मराहुवा राक्षस का शरीर लिए हुए खड़े है। अन्धक कीमूर्ति भी टूटी हुई है।
शिव के गले नागदेवता लिपटे हुवे है शिव के दूसरे बाएं हाथ में एक पात्र है जिसमें वे राक्षस का लोही एकठ्ठा करतेदिखाई देते हैं।
प्राचीन कथाओं के मतानुसार महादेवी पार्वती पर खराब दृस्टि से देखने वाले राक्षस जो देवी पार्वती का अपहरण करने का दुससाहस से क्रोधित भगवान शिव ने उस राक्षस का वध का वर्णन यह मूर्ति द्वारा किया गया है।
- कैलाश पर्वत पर विराजमान शिव पार्वती की मूर्ति :
यह मूर्ति में भगवान शिवऔर देवी पार्वती को कैलाश पर्वत पर बैठे खेलते हुवे उनका वर्णन किया गया है। सर पर मुकुट और कंधे पर जनेऊ धारण किये हुवे शिव ने घुटनों तक वस्त्र धारण किये हुए हैं।
सुन्दर वस्त्र और आभूषण धारणकरके देवी पार्वती के केश उनके कंधे पर सरके हुए हैं। शिव द्वारा चौपड़ के खेल में पराजित किया है यह जानकरदेवी पार्वती रुष्ट हो कर उन्होंने मुँह शिव की विरुद्ध दिशा में कर लिया है।
देवी का मानना है की भगवान शिव ने छल से देवी पार्वती को इस खेल में हराया है इसी लिए देवी भगवान से रूठी हुवी है। यह मूर्ति में यही बात का वर्णन किया हुवा दिखाई देता है।

भगवान शिव और देवी पार्वती दोनों की मूर्ति के केंद्र में बालक को हाथों में उठाये एक स्त्री कीमूर्ति है। ऐसा माना जाता है कि यह बालक भगवान शिव और पार्वती का पुत्र कार्तिकेय है।
भगवान् शिव के पावो में उनके प्रिय भक्त ऋषि भृंगी का कंकाल पड़ा हुवा है। फ़क्त शिव भक्त होने के कारण प्रिय भक्त भृंगी रुष्ट देवी पार्वती द्वारा श्राप देने के कारन मांसपेशियां व और विहीन हो गया है।
यह पूरी प्रतिमा और शिल्पकला पूर्ण रूप से नाश पामी हुई दिखाई देती है। और इसकी तरह की दूसरी प्रतिमा एलोरा की गुफा में मौजूद है इससे हम यह प्रतिमा का अनुमान कर सकते है।
एक और स्थान पर भगवान शिव और पार्वती के विवाह की प्रतिमा का दृश्य दिखाई देता है। यह मूर्ति में विवाह के दौरान देवी पार्वती के मुख पर लज्जा आती हुवी दिखाई देती है। यह मूर्ति खंडित हुई दिखाई देती है लेकिन इनके कुछ अंग शेष बचे हुवे दिखाई देते है।
- कैलाश पर्वत उठाये रावण की प्रतिमा :
यह मूर्ति में कैलाश पर्वत पर विराजमान भगवान शिव और पार्वती और भी देवी देवताओं से घिरे हुए नजर आते हैं। उनके पावो के नजदीक संत भृंगी का अस्थिकंकाल दिखाई देता हुवा नजर आता है।
और दाई और के कोने पर उनके पुत्र गणेशजी की प्रतिमा दिखाई देती हुई नजर आती है। परन्तु निचले भाग में वह मौजूद दिखाई देती है। और कैलास पर्वत उठाते हुवे रावण की प्रतिमा का वर्णन किया हुवा है। यह मूर्ति भग्न अवस्था में मौजूद है।
माना जाता हे की किसी काल में रावण के तप और भक्ति से भगवान शिव प्रसन्न होकर शिव ने रावण को वरदान मांगने का अवसर दिया था।

जैसा कीप्रतिमा में वर्णन किया गया है की भगवान् शिव नेदूसरे देवी देवताओं के न कहने के बाद भी भगवान शिव ने रावण को शक्तिशाली बनाने का वरदान दिया।
उनको मिला वरदान और शक्ति का परिक्षण करने के लिए रावण ने कैलाश पर्वत को उठाने की कोशिस करता है ऐसा प्रतिमामा में दिखाई देता है ।
और भी प्रतिमा में गरुड़ परस्थित भगवान् विष्णु, भगवान् शिव का पूरा परिवार और कई अन्य देवी देवता ओको इस प्रतिमा द्वारा अवलोकन किया गया है।
असुर रावण का घमंड तोड़ने के कारन भगवान् शिव ने फ़क्त एक अंगूठे से कैलास पर्वत को जमीन पर स्थिर कर दिया है । उसी वक्त रावण कैलास पर्वत के निचे दबा हुवा दिखाई देता है और रावण स्वास भी नहीं ले सकता।
उसे पता चल जाता है की उसकी शक्ति शिव के फ़क्त अंगूठे के बराबर भी नहीं है। अपने गुरुओके के कहने पर रावण ने हजारो सालो तक शिव की उपासना की।
भगवान् शिव ने वरदान स्वरुप उसे एक अस्त्र दीया और बहुत ज्यादा चिल्लाने के कारण रावण नामकरण भी किया गे था ऐसा माना जाता है।
- योगीश्वर शिव की मूर्ति :
यह योगीश्वर प्रतिमा में भगवान् शिव को हिमालय के पर्वत में पद्मासन मुद्रा में बैठे हुवे दर्शाया गया है। यह मूर्ति में अपनी पत्नी की मृत्यु के कारन उनके यादमें नेत्र बंद करके अगाध और सम्पूर्ण ध्यान मुद्रा में बैठे हुवे यह मूर्ति द्वारा वर्णन किया गया हैं।
आकाश से दिव्य आत्माये और धरती पर भक्तो से घिरे भगवान शिव का आसन पूरा कमल पुष्प और नागों देवता को अपनी पीठ पर धारण किया हुवा दिखाई देता है।
ऐसी माना जाता है की पिता राजादक्ष द्वारा देवी के पति भगवान् शिव का अपमान किया था इस कारण देवी सती पार्वती ने यज्ञकुंड की अग्नि में कूदकर उनके प्राण त्याग दिए थे।

देवी के पिता राजादक्ष के यस अपमान से रूठ जाती है और देवी ने आदिशक्ति का आह्वान किया। उन्होंने अपने देह को भस्म कर दिया और कहा ऐसे पिता की पुत्री के रूप में जन्म की विनती की थी जिसका वे सम्मान और स्वीकार कर सकें।
कुछ समय पश्च्यात देवी ने पार्वती के रूप में फिर से जन्म लिया और उन्होंने भगवान् शिव से देवी पार्वती का विवाह भगवान शिव से करवाया गया है ऐसा यह मूर्ति द्वारा वर्णन किया गया है।
जब यज्ञकुंड में सती ने अपने आप की आहूति देने के बाद भगवान् शिव के क्रोध की कोई सीमा नहीं रही और वह अति क्रोध से भरे देवी सती के जलते देह अपने हाथों में उठाया और शिव ने रूद्र तांडव नृत्य शुरू कर दिया।
शिव का रूद्र तांडव शुरू होते ही सृष्टि के नाश को रोकते हुवे भगवान् विष्णु को बीचमे आना पड़ा। भगवान विष्णु अपने चक्र द्वारा देवी सती का शरीर के 52 टुकड़ेकर दिया ऐसा माना जाता है।
और यह टुकड़े जहा-जहा ये देवी के टुकड़े पड़े वहा वहा शक्तिपीठ की स्थापना हुई है ऐसा माना जाता है। एलिफेंटा गुफा की इस मूर्ति में भगवान शिव के हाथों और पैरो को बहोत ज्यादा नुकशान किया गया है।
यह प्रतिमा के कई ओरभी हिस्से मौजूद हैं और हंस पर विराजमान ब्रम्हा की मूर्ति वाहन ऐरावत विहीन इंद्र की प्रतिमा ,केले के पान पर गरुड़ की सवारी करते हुवे
भगवान विष्णु की प्रतिमा ,भंगित सरो वाले सात अश्वो के रथ की सवारी करते हुवे भगवान सूर्य देव की प्रतिमा भी दिखाई देती है। इनके बाद भी माला जपते एक ऋषिमुनि की प्रतिमा , ओरभी यह मूर्ति में घुटनों तक वस्त्र पहने हुवे दो स्त्रियाँ की मूर्ति ,
हाथों में पानी का पात्र उठाये भगवान चन्द्र की प्रतिमा , जिनका मुख खंडित है,ओरभी भी सुन्दर मुर्तिया आकर्षित हैं।
यह प्रतिमा में दो महिला के बाजू में स्थित तीनएक समान दिखनेवाले पुरुष और शिव को शांत करने के लिए आये हुवे एक ऋषिमुनि का अस्थिकंकाल भी मौजूद है। यह प्रतिमाके द्वारा यह शिव की कहानी का वर्णन किया गया है।
- गंगाधर रूप में शिव की मूर्ति :

यह प्रतिमा में स्वर्ग की देवी पवित्र गंगा नदी का शिव की जटाओं से पृथ्वी पर लाने का वर्णन किया गया है। यह इस तरह की मूर्ति आप पुरे भारत में कई स्थानों पर देख सकते है।
गंगाधर रूप की इसमूर्ति का महत्व यह है कि यहाँ स्थित गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों को तीन सरो वाली एक महिला के रूप में कण्डारित किया गया है। यह प्रतिमा खंडित होने के कारन भी आपका मन मोह ले ऐसी बानी हुई है।
- अर्धनारीश्वर शिव की मूर्ति :
अर्धनारीश्वर शिव के इस रूप की मूर्ति सब मूर्तियों मेसे सुन्दर और आकर्षित मानी जाती है। अर्धनारीश्वर का अर्थ होता है की आधी स्त्री और आधा पुरुष का रूप।
भगवान शिव के यह रूप मेंमहिला और पुरुष को एक समान सन्मान दिया गया है। यह मूर्ति द्वारा दोनों को एक दूसरे का महत्व और पूरक कहा गया है।

एलिफेंटा गुफा की इस वास्तुकला में अर्धनारीश्वर शिव की प्रतिमा का निचे का आधा हिस्सा पूरी तरह से खंडित हो गया है।
प्रतिमा का बचा हुवा मूर्ति में भगवान् शिव अपने दाहि तरफ खड़े नंदी पर उनका हाथ रखा दिखाई देता हैं। और भगवान शिव का दूसरा यानि बांया भाग कमनीय पार्वती देवी का दिखाई देता है।
यह प्रतिमा के भागों मेंभगवान शिव और पार्वती की प्रतिमाओं में बहोत सुन्दर और बारीकी से शिल्पकारी से यह मूर्ति कण्डारित की गई गयी है।
प्राचीन कथाओं के मान्यता के अनुसार हमको पता चलता है की भगवान ब्रम्हा और विष्णु अर्थांगिनियो से यह ज्ञान नहीं बताते। तथा भगवान शिव और पार्वती को एक समान मानते थे। उनके समान अधिकार मिले हुवे थे। यह मूर्ति इसका साक्षी है।
भगवान शिव के इस रूप से सम्बंधित एक ओर भी प्राचीन कथा मौजूद है। माना जाता है कि ऋषि भृंगी केवल भगवान शिव की परिक्रमा करना चाहते थे।
यह सुनकर देवी पार्वती रुष्ट होकर भगवान शिव के अत्यंतकरीब आकर बैठ जाती है। यह देखकर ऋषि भृंगी भंवरे का रूप धारण करके दोनों के नजदीक मध्य से निकल आये और भगवान शिव की परिक्रमा करने लगे।
तब देवीपार्वती के कहने पर भगवान शिव और देवी का तन जोड़ने की विनती की। तद पश्यात भगवान शिव ने अर्धनारीश्वर का रूप धारण किया।
- त्रिमूर्ति शिव की प्रतिमा :
एलिफेंटा गुफा में भगवान शिव की अनेक भव्य प्रतिमाये मौजूद है जिसमे सबसे सुन्दर और आकर्षक मूर्ति त्रिमूर्ति है। भगवान शिव की यह त्रिमूर्ति करीबन 24 फिट लंबी और 17 फिट ऊँची यह मूर्ति में भगवान शिव का वर्णन किया गया हे।

यह प्रतिमा गुप्त-चालुक्य काल में प्रचलित वास्तुकला का महत्वपूर्ण नमूना मौजूद है। यह प्रतिमा की विशालता हमारे अस्तित्व का आभास कराती है।
यह प्रतिमा भगवान शिव का मुख के भाव सबके मन और मस्तिक में शांति और सुकून उत्पन्न कर देते है। एलीफैंटा की यह सिर्फ एकमात्र प्रतिमा है जो इसको कोई नुकसान नहीं हुवा है।
- त्रिमूर्ति में शिव के विभिन्न आयाम की मूर्ति :
ऐसा माना जाता हे की हिन्दू धर्म की मान्यता ओके मतानुसार ब्रम्हांड के6 सिद्धांतों के अनुसार भगवान शिव के 6 आयामों में से तीन आयाम एलिफेंटा में त्रिमूर्ति में वर्णन किया गया है।
बांया सर भगवान् शिव का नारी का रूप है। शिव के हाथ में कमल का पुष्प और मुख पर थोड़ी सी मुस्कान दिखाई देती है।यह प्रतिमा शिव का प्रत्येक जीव के लिए प्रेम और करुणा का भाव दिखाई देता है।

यह प्रतिमा ब्रम्हा का प्रतिनिधित्व करते हुवे है दिखाई देता है। दाया शीर्ष भगवान शिव का रूद्र रूप दिखाई देता है। वह मूर्ति में मुख पर मूंछे ,हाथो में सर्प यह प्रतिमा शिवका क्रोध दिखाई देता है।
ऐसा माना जाता है कि क्रोध से भरे भगवान शिव उनकी तीसरी आँख द्वारा विश्व को भस्म करने की शक्ति दिखाई देती है। । यह प्रतिमा में मध्य शीष केंद्र में उनका शांत ध्यानमग्न में मुखबहोत शांति प्रदान करता है।
इस आसन में भगवान शिव प्रबुद्ध योगी के रूप में दिखाई देते हैं। जो ब्रम्हांड की उत्पत्ति के लिए विचार में मग्न हैं। इस मूर्ति योगेश्वर रूप को विष्णु का रूप तत्पुरुष भी कहा जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव के 6 आयामों में और तीन आयाम त्रिमूर्ति के पार्श्व भाग में मौजूद हैं।उसे ईशान – आतंरिक आयाम कहा जाता है।
प्रत्येक आयाम विद्यमान से सम्बंधित हे जो आकाश का प्रतिनिधित्व करता है वैसा कहा जाता है। और अघोर- दक्षिणी आयाम, यह आयाम पुनर्जीवन की अभिव्यक्ति करता हुवा माना जाता है।
और कई भी रूद्र से सम्बंधित, अग्नि का प्रनिधित्व करता दिखाई देता है। और तिरुवधनम- षष्ठमुखी कार्तिकेय जिसका सर्जन भगवान् शिव ने किया था
और उसे उपरोक्त सर्व आयाम प्रदान किये गये है भगवान शिव के अनेक रूपों को देखकर सब अत्यंत प्रभावित और मंत्रमुग्ध हो जाते है
एलिफेंटा गुफा की अखंडता – The Integrity of elephanta caves
elephanta caves में सभी पुरातात्विक घटक अपनी प्राकृतिक सेटिंग्स में संरक्षित हैं। पुरातात्विक सामग्री को प्रकट करने और दफन स्तूपों को उजागर करके जानकारी बढ़ाने की गुंजाइश है।
लिस्टिंग के समय जरूरत पड़ने पर आस-पास के औद्योगिक विकास से नाजुक स्थानों को सुरक्षित रखने के लिए नोट किया गया था। हाली के वर्तमान समय में चट्टानों की सतह पर नमक की गतिविधि और सामान्य क्षण गुफाओं को प्रभावित कर रहा है।
बहाली और संरक्षण कार्यों का मार्गदर्शन करने हुवे elephanta caves का संरक्षण और प्रबंधन कार्यवाही अपनाकर प्राचीन धरोहर के रक्षण के लिए प्रबंधन को संवर्धित किया जाता है
एलिफेंटा गुफा की प्रामाणिकता – Authenticity of elephanta caves
elephanta caves की संपत्ति को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में इसके अभिलेख के बाद से इसका रखरखाव पूरा अच्छी तरह से किया जाता है।
इसके अलावा कई इमारतों की निर्माण की स्थिरता को बनाये रखने के लिए गुफा के अग्रभाग और कई स्तंभों पर मरम्मत की गई है। गुफाओं के अलावा एलीफेंटा द्वीप पर 2 शताब्दी ईसा पूर्व के वक्त और पुर्तगाली काल से प्राचीन अनेक अवशेष मिलते हैं।
जैसा कि क्रमशः पहाड़ी के पूर्वी दिशा हिविभाग की तरफ दफन स्तूप और इसके सर पर मौजूद एक कैनन के स्वरूप में दिखाई देता है। और इसके अलावा भी गुफाओं में मौजूद अखंड मंदिरों भी स्थित है
सर्वतोभद्र गर्भगृह, मंडप रॉक-कट वास्तुशैली और प्रतिमाओ के रूप में सुरक्षित किया गया है। elephanta caves में अभिलेखन के बाद से आगंतुकों के अनुभव को ज्यादा बढ़ाने के लिए और साइड की सुरक्षा के लिए कई तरह के संरक्षण किये गए हैं।
इन संरक्षण में पगडंडियो का निर्माण और गिर के टूटे हुवे खम्भो का संरक्षण धिरे हुवे ढलते हुवे और गृहमुखो का संरक्षण टापू के घाट से गुफाओ की तरफ आने वाली फ्लाइट का संरचना की मरम्मत और सूचना के मध्य की स्थापना मौजूद है।
एलिफेंटा गुफा की प्रबंधन और सुरक्षा आवश्यकता –
एलिफेंटा की गुफाओको प्रमुख रूप से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किया जाता है। जिसमे वन विभाग, पर्यटन विभाग, एमएमआरडीए, शहरी विकास विभाग, नगर नियोजन विभाग और ग्राम पंचायत सहित अन्य विभागों की सहायता से एलीफेंटा गुफाओं का प्रबंधन करता है।
महाराष्ट्र की सरकार संबंधित हिस्सों के अलग-अलग विधानों जैसे कि प्राचीन ईमारत और पुरातत्व स्थान और अवशेष अधिनियम 1958 और नियम 1959 और प्राचीन ईमारत
और पुरातत्व स्थान और अवशेष संशोधन और मान्यता के अधिनियम 2010 और भारतीय वन अधिनियम 1927 और वन संरक्षण अधिनियम 1980 और नगर परिषद, नगर पंचायत
और औद्योगिक टाउनशिप अधिनियम, महाराष्ट्र 1965 और क्षेत्रीय और नगर नियोजन अधिनियम महाराष्ट्र 1966।
समय के साथ संपत्ति के उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्य को बनाए रखने के लिए बहाली औरसुरक्षा के कार्यों का मार्गदर्शन करने के लिए संरक्षण प्रबंधन योजना को अलग मोड़ देना
और अनुमोदन करना और अन्य योजना लागू करने हेतु और अंतरराष्ट्रीय स्थान पर मान्यता प्राप्त वैज्ञानिक मान्यताये और तकनीकों का उपयोग करके नमक कि गतिविधि
और गुफाओं की सतह के सामान्य से सामान्य अवशेष को सुरक्षा करना है। एलिफेंटा के आस-पास के नजदीकी औद्योगिक विकास से प्राचीन संपत्ति की सुरक्षा करना होता है।
जो दबे हुवे इमारते और दबे हुए स्तूपों को बहार लेन का काम करना है । ई.स 1960 के दशक में किए गए कई स्तंभों की पुनर्स्थापनाकरनेकी की आवश्यकता है क्योकि वह खम्भों में दरारें बन गई हैं।
एलिफेंटा गुफा के आसपास के पर्यटन स्थल और घूमने लायक जगह – Around elephanta caves
एलीफेंटा की गुफा महारास्ट्र राज्य की राजधानी मुंबई के नजदीकी क्षेत्र में स्थित हैं और मुंबई की यात्रा पर आने वाले यात्रिक अक्सर एलीफेंटा गुफा की तरफ रुक सकते हैं।
एलीफेंटा गुफा यात्रा के पश्यात आप इसके नजदीकी मुख्य देखने लायक जगहों पर भी आप गुमने जा सकते है। एलिफेंटा के नजदीकी प्रमुख स्थान आप निचे देख सकते है।
- मरीन ड्राइव
मरीन ड्राइव मुंबई के दक्षिण क्षेत्र के तट से साथ नरीमन पॉइंट के दक्षिणी छोर सेप्रारम्भ होता है और प्रमुख चौपाटी समुद्र तट पर खत्म हो जाता है। अरब सागर के तट को पारकर देता है
और मुंबई में सूर्यास्त देखने के लिए सबसे बहेतर स्थान है। मरीन ड्राइव को रानी के हार के रूप में भी पहचाना जाता है। कई लोग शाम को यह स्थान पर शानदार सनसेट का अनुभव करने के लिए
अनेक पर्यटक यहाँ घूमने आते हैं। मुंबई केभीड़-भाड़ की जगह से परेशान लोगो को जीवन में मरीन ड्राइव शांत और शांति का अनुभव करवाता है।
मरीन ड्राइव मुंबई के मॉनसून के मौसम को और ज्यादा विशेष और रोमांचित बना देता है। क्योंकि बारिश के समय वहा का नजारा सुन्दर और बहोत आकर्षक हो जाता है।
- गेटवे ऑफ इंडिया मुंबई
गेटवे ऑफ़ इंडिया मुंबई के सबसे आकर्षक गुमनेका आकर्षण स्थलों में से एक है। यह अपोलो बंडेर वॉटरफ्रंट में वह मौजूद है।
मुंबई के सबसे प्रतिष्ठित इमारतों में से एक गेटवे ऑफ़ इंडिया ई.स1924 में प्रसिद्ध वास्तुकार जॉर्ज विटेट द्वारा किंग जॉर्ज पंचम और क्वीन मैरी की मुंबई की यात्रा की स्मरण में बनाया गया था।
यह ईमारत की आकर्षक बनावट भारतीय, अरबी और पश्चिमी वास्तुशैली का एक सुंदर और आकर्षक नमूना है और शहर में एक लोको का प्रिय पर्यटन स्थान बन गया है।
यह स्थल मुंबई का ताजमहल के नाम से प्रसिद्ध गेटवे ऑफ इंडिया की नींव ई.स 1911 में रखी थी और ई.स 1924 में 13 वर्षो के बाद इसका उद्घाटन किया गया था। स्वामी विवेकानंद और छत्रपति शिवाजी की प्रतिमा हैं जो गेटवे के नजदीक ही स्थित है।
- जुहू बीच मुंबई
जुहू बीच मुंबई में सबसे लंबा समुद्र तट है और यकीनन यात्रीको के बीच सबसे लोकप्रिय और आकर्षक है। जुहू समुद्र स्वाद के साथ अनेक प्रकार के स्ट्रीट फूड के लिएप्रख्यात है।
जुहू के आस-पास का क्षेत्र मुंबई का एक पॉश इलाक़ा है, जहाँ बॉलीवुड और टीवी जगत की कई मशहूर हस्तियां स्थित हैं। यहां सबके प्रिय और प्रसिद्ध अमिताभ बच्चन का घर है।
आप प्रसिद्ध प्रतिष्ठित इस्कॉनटेम्पल भी जा सकते हैं जो समुद्र के किनारे से मीटर की दूरी पर है। 90 के दशक के दौरान मुंबई के स्थानीय लोगों के साथ जुहू समुद्र तट एक बड़ा पसंदीदा स्थान था, परन्तु यात्रिको की एक बड़ी संख्या के कारण यह बहुत खराब हो गया था।
- सिद्धिविनायक मंदिर मुंबई
यह मंदिर सिद्धिविनायक मंदिर एक श्रद्धालुओका एक स्थान है जो यह मंदिर भगवान गणेश को समर्पित है। और मुंबई, महाराष्ट्र के प्रभादेवी में सबसे महत्वपूर्ण और सुन्दर मंदिरों में से एक माना जाता है।
सिद्धिविनायक मंदिर का निर्माण ई.स 1801 में लक्ष्मण विठू और देउबाई पाटिल ने इसका निर्माण करवाया था। इस दंपति की अपनी कोई संतान नहीं थी
और उन्होंने सिद्धिविनायक मंदिर बनाने का निर्माण किया ताकि अन्य बांझ महिलाओं की इच्छाओं को पूरा किया जा सके। यह मुंबई के सबसे धनवान मंदिरों में से एक माना जाता है
और श्रद्धालु इस मंदिर में रोजाना बड़ी संख्या में आते हैं। सिद्धिविनायक मंदिर में श्री गणेश की मूर्ति है, जो लगभग ढाई फीट चौड़ी है और काले पत्थर के एक टुकड़े से बनी है।
- हाजी अली दरगाह मुंबई
मुंबई हाजी अली दरगाह (मकबरे) की स्थापना ई.स 1431 में एक पूर्ण संपन्न मुसलमानो का व्यापारी सैय्यद पीर हाजी अली शाह बुखारी की याद में बनाई गई है।
जिन्होंने मक्का की यात्रा करने से पहले अपने सभी संसार का सारा सामान छोड़ दिया था । सभी क्षेत्रों और धर्मों के लोग आशीर्वाद लेने के लिए यहां आते हैं।
कांच से निर्मित, मकबरा वास्तुशैली के इंडो-इस्लामिक शैली का एक सुंदर चित्रण है। एक संगमरमर के आंगन में केंद्रीय मंदिर है। मुख्य हॉल में संगमरमर के खंभे हैं
जो अरबी पैटर्न में व्यवस्थित होते हैं। इस्लामिक रीति-रिवाजों के अनुसार, महिलाओं और बच्चों के लिए अलग-अलग प्रार्थना कक्ष हैं। कई प्रसिद्ध हस्तियां आशीर्वाद लेने के लिए मंदिर में जाती हैं।
- एडलैब्स इमेजिका मुंबई
भारत का पहला सुन्दर इंटरनेशनल थीम पार्क एडलैब्स इमेजिका मुंबई में स्थित खूबसूरत और आकर्षित जगह है। यहां पर कई एम्यूजमेंट राइड्स और कई अट्रेक्टिव एक्टिविटीज का भी आप मजे ले सकते हैं।
यह पार्क का खुलने का समय सुबह 11 बजे से रात 9 बजे के बाद बंध हो जाता है।
- वॉक ऑफ फेम मुंबई –
मुंबई के बैंडस्टैंड में मौजूद वॉक ऑफ फेम ऐसा स्थान है जहां पर आप बोलीवुड सितारों के हस्ताक्षर और दिग्गज सितारों की 6 प्रमुख प्रतिमा देख सकते हैं। हमेशा यह स्थान यात्री को के लिए खुली रहती है।
- एस्सेल वर्ल्ड मुंबई –
मुंबई में एडलैड्स इमिजेका पर्यटकों के लिए एक सुन्दर एक मनोरंजन स्थल है, लेकिन एस्सेल वर्ल्ड को इन थीम पार्कों का दादा माना जाता है।
यहां विभिन्न राइड्स और झूलों का मजाले सकते है। पूरा एक दिन का समय बिताने के लिए यह स्थान लोगों के लिए बहुत अच्छा है। यह पार्क का खुलने का समय सुबह 8 बजे से शाम के 7 बजे तक खुला रहता है।
- मुंबादेवी मंदिर –
मुंबादेवी मंदिर मुंबई शहर में मौजूद हैं और यह इसके मुख्य देवता देवी मुंबा देवी माना जाता हैं। इस मंदिर परिसर का निर्माण सबसे पहले वर्ष ई.स1675 में बोरीबन्दर और बाद में सन ई.स1737 में कालबादेवी में स्थानांतर कर दिया गया।
कहा जाता हैं कि एक मुंबारक नाम का राक्षस यहाँ के लोगो को परेशान करता था जिसे मारने के लिए भगवान ब्रह्मा जी ने एक आठ-सशस्त्र देवी को भेजा जिसके शक्ति का एक स्वरूप माना जाता हैं।
- कन्हेरी गुफाएं –
मुंबई में कन्हेरी गुफाएं बोरीवली के उत्तर विभाग के क्षेत्र में संजय गांधी राष्ट्रीय उद्यान के अंदर एक अति प्राचीन कन्हेरी गुफाएं मौजूद हैं।
यह गुफा का निर्माण काल 1सदी ईसा पूर्व और 9 वीं शताब्दी ईस्वी का निर्माण माना जाता है। यह स्थान को देखने के लिए बहुत ज्यादा संख्या में यात्रिक यहाँ आते हैं।
एलिफेंटा गुफा खुलने और बंद होने का समय – elephanta caves timings
एलीफेंटा गुफाओं को देखने के लिए यात्रिक सुबह 9 बजे से शाम के 5:30 बजे तक देखने या गुमने जा सकते हैं।
एलिफेंटा की गुफा मुंबई का प्रवेश शुल्क – elephanta caves entry fees
elephanta caves ओंमे में प्रवेश शुल्क आपको निचे बताया गया है।
भारतीय यात्रियों के लिए प्रति व्यक्ति 40 रूपये।
विदेशी यात्रियों के लिए प्रति व्यक्ति 600 रूपये ।
15 वर्ष के बच्चो के लिए प्रवेश निशुल्क है।
एलीफेंटा गुफा घूमने जाने का सबसे अच्छा समय – elephanta caves timings
एलीफेंटा गुफा यात्रा के लिए सबसे बहेतर और अच्छा समय नवम्वर से फरवरी का मौसम अच्छा रहता है। इस लिए यह समय में यात्रा करना बहोत अच्छा रहता है।
एलीफेंटा की गुफा कैसे पहुंचे – how to go to elephanta caves – how to go elephanta caves
- हवाई मार्ग से एलीफेंटा की गुफा कैसे पहुंचे :
मुंबई दुनिया के अधिक मुख्य शहरों के साथ-साथ घरेलू क्षेत्रों के साथ उत्कृष्टजुड़ा हुवा है। जो इसे भारत में दूसरा सबसे व्यस्त हवाई केंद्र माना जाता है।
मुंबई छत्रपति शिवाजी अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट देश का मुख्य प्रमुख हैं। यह एयरपोर्ट के दो मुख्य टर्मिनल हैं टर्मिनल 1 a जो एयर इंडिया की सेवा करता है
और टर्मिनल 1 बी अन्य एयरलाइंस जैसे इंडिगो, जेट एयरवेज, स्पाइसजेट और गो एयर की सेवा देता करता है। एयरपोर्ट मुंबई से 28 किमी दूर स्थित है। और आप एलीफेंटा गुफा के लिए यहाँ से स्थानीय साधनों की मदद से आप जा सकते है।
एलीफेंटा गुफा ट्रेन से कैसे पहुंचे – How to reach elephanta caves by train
एलीफेंटा गुफा के सबसे नजदीकी रेलवे जंक्शन छत्रपति शिवाजी टर्मिनस रेल्वे जंक्शन है। जो विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेलवे जंक्शन है। मुंबई शहर से करीबन 12 कि.मी की दूरी पर मौजूद है।
एलीफेंटा गुफा बस से कैसे पहुंचे – How to reach elephanta caves by bus
elephanta caves मुंबई के नजदीक होने के कारन से देश के कई मुख्य शहरो से सड़क मार्ग से बहुत आसानी से जा सकते है क्युकी यहाँ के सारे रास्ते जुड़ा हुआ हैं। मुंबई-पुणे एक्सप्रेसवे सबसे का मुख्य सड़क मार्ग है। आप बसद्वारा आसानी से अपनी यात्रा कर सकते हैं।
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