dilwara jain temple – दिलवाड़ा जैन मंदिर मंदिर राजस्थान की अरावली पहाड़ियों के बीच स्थित जैनियों का सबसे सबसे सुंदर तीर्थ स्थल है। इस मंदिर का निर्माण 11 वीं और 13 वीं शताब्दी के बीच वास्तुपाल तेजपाल द्वारा किया गया था। यह मंदिर अपनी जटिल नक्काशी और हर कोने से संगमरमर से सजे होने के लिए प्रसिद्ध है।
यह मंदिर बाहर से बहुत ही सामान्य दिखता है, लेकिन जब आप इस मंदिर को अंदर से देखेंगे तो इसकी छत, दीवारों, मेहराबों और स्तंभों पर बनी हुई डिजाइनों को देखकर हैरान रह जायेंगे।
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दिलवाड़ा जैन मंदिर माउंट आबू – Dilwara Jain Temple Mount Abu
यह सिर्फ जैनियों का तीर्थ स्थल ही नहीं बल्कि एक संगमरमर से बनी एक जादुई संरचना है। जो यहाँ आने वाले पर्यटकों को बार-बार यहां आने पर मजबूर करती है।
माउंट आबू में स्थित दिलवाड़ा मन्दिर प्राचीन भारत की अद्भुत निर्माण कला का आश्चर्यजनक उदाहरण है. क्योंकि इस मन्दिर में फोटो खींचने की मनाही है, इसीलिए बहुत से लोग इस अत्यंत सुंदर मन्दिर से अनजान है. वैसे Internet पर दिलवाड़ा मन्दिर की फ़ोटोज़ हैं, जिसे देखकर आप इसकी दैवीय सुन्दरता का अंदाजा लगा सकते हैं.
मंदिर का नाम | दिलवाड़ा जैन मंदिर |
निर्माणकाल | 11 वीं और 13 वीं शताब्दी के बीच |
निर्माणकर्ता | वास्तुपाल , तेजपाल |
स्थान | माउंट आबू |
कोनसी पहाड़ी | अरावली पहाड़िया |
राज्य | राजस्थान |
देलवाड़ा के प्रसिद्ध मंदिर | 5 मंदिर |
5 प्रसिद्ध मंदिर जैन धर्म के कोनसे तीर्थंकरों को समर्पित हैं –
विमल वसाही मन्दिर : प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव
लुना वसाही मन्दिर : 22वें जैन तीर्थंकर नेमीनाथ
पीत्तलहर मन्दिर : प्रथम जैन तीर्थंकर ऋषभदेव
पार्श्वनाथ मन्दिर : 23वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ
महावीर स्वामी मंदिर : अन्तिम जैन तीर्थंकर महावीर
मंदिर के कुल स्तंभ : 48 स्तंभ
विद्यादेवी की कुल मुर्तिया : 16 मूर्तियाँ
दिलवाड़ा जैन मंदिर कहा स्थित है –
माउंट आबू जैन मंदिर राजस्थान के एकमात्र हिल स्टेशन माउंट आबू से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं।
दिलवाड़ा जैन मंदिर किसने बनवाया था –
इस जैन मंदिर का निर्माण 11 वीं और 13 वीं शताब्दी ईस्वी में विमल शाह द्वारा करवाया गया था और यह ढोलका के जैन मंत्रियों, वास्तुपाल-तेजपाल द्वारा डिजाइन किया गया था। यह मंदिर जटिल संगमरमर की नक्काशी के लिए जाने जाते हैं।
दिलवाड़ा जैन मंदिर इतिहास –
dilwara jain temple प्रथम जैन तीर्थंकर आदिनाथ को समर्पित है। इस मंदिर को 11वीं से 13वीं शताब्दी के दौरान चालुक्य राजाओं वास्तुपाल और तेजपाल नामक दो भाईयों द्वारा 1231 ई. में बनवाया गया था।
जैन वास्तुकला के सर्वोत्कृष्ट उदाहरण-स्वरूप दो प्रसिद्ध संगमरमर के बने मंदिर जो दिलवाड़ा या देवलवाड़ा मंदिर कहलाते हैं इस पर्वतीय नगर के जगत् प्रसिद्ध स्मारक हैं।
विमलसाह ने पहले कुंभेरिया में पार्श्वनाथ के 360 मंदिर बनवाए थे किंतु उनकी इष्टदेवी अंबा जी ने किसी बात पर नाराज होकर पाँच मंदिरों को छोड़ अवशिष्ट सारे मंदिर नष्ट कर दिए और स्वप्न में उन्हें दिलवाड़ा में आदिनाथ का मंदिर बनाने का आदेश दिया।
किंतु आबूपर्वत के परमार नरेश ने विमलसाह को मंदिर के लिए भूमि देना तभी स्वीकार किया जब उन्होंने संपूर्ण भूमि को रजतखंडों से ढक दिया। इस प्रकार 56 लाख रुपय में यह ज़मीन ख़रीदी गई थी।
इन मंदिरों की भव्यता उनके वास्तुकारों की भवन-निर्माण में निपुणता, उनकी सूक्ष्म पैठ और छेनी पर उनके असाधारण अधिकार का परिचय देती है।

इन मंदिर की प्रमुख विशेषता यह है की सभी की छतों, द्वारों, तोरण, सभा-मंडपों का उत्कृष्ट शिल्प एक दूसरे से बिल्कुल भिन्न है। पांच मंदिरों के इस समूह में दो विशाल मंदिर हैं और तीन उनके अनुपूरक।
मंदिरों के प्रकोष्ठों की छतों के गुंबद व स्थान-स्थान पर उकेरी गयीं सरस्वती, अम्बिका, लक्ष्मी, सव्रेरी, पद्मावती, शीतला आदि देवियों की दर्शनीय प्रतिमाएं इनके शिल्पकारों की छेनी की निपुणता के साक्ष्य खुद-ब-खुद प्रस्तुत कर देती हैं।
यहां उत्कीर्ण मूर्तियों और कलाकृतियों में शायद ही कोई ऐसा अंश हो जहां कलात्मक पूर्णता के दर्शन न होते हों। शिलालेखों और ऐतिहासिक अभिलेखों के अनुसार प्राचीन काल में यह स्थल अबू नागा जनजाति का प्रमुख केंद्र था।
महाभारत में अबू पर्वत में महर्षि वशिष्ठ के आगमन का उल्लेख मिलता है। इसी तरह जैन शिलालेखों के अनुसार जैन धर्म के संस्थापक भगवान महावीर ने भी यहां के निवासियों को उपदेश दिया था।
दिलवाड़ा जैन मंदिर प्राचीन वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण हैं। यह शानदार मंदिर जैन धर्म के र्तीथकरों को समर्पित हैं। इस मंदिर में जैन धर्म के कई तीर्थंकरों जैसे आदिनाथ जी, नेमिनाथ जी, पार्श्वनाथ जी और महावीर जी की मूर्तियां स्थापित हैं। इस देवालय में देवरानी-जेठानी मंदिर भी है जिनमें भगवान आदिनाथ और शांतिनाथ की प्रतिमाएं स्थापित है।
दिलवाड़ा जैन मंदिर की वास्तुकला –
dilwara jain temple की वास्तुकला नगर शैली से प्रेरित है और प्राचीन पांडुलिपियों का एक संग्रह है। दिलवाड़ा मंदिरों में एक ही आकार के पांच मंदिर शामिल हैं, और ये सभी एकल मंजिला हैं।
सभी मंदिरों में कुल 48 स्तंभ हैं जिनमें विभिन्न नृत्य मुद्राओं में महिलाओं की सुंदर आकृतियाँ हैं। मंदिर का मुख्य आकर्षण ‘रंगा मंडप’ है जो गुंबद के आकार की छत है।
इसकी छत के बीच में एक झूमर जैसा ढांचा है, और पत्थर से बनी विद्यादेवी की सोलह मूर्तियाँ हैं, जो ज्ञान की देवी हैं। नक्काशी के अन्य डिजाइनों में कमल, देवता और अमूर्त पैटर्न शामिल हैं।
दिलवाड़ा के प्रसिद्ध 5 मंदिर –
बता दें कि भव्य दिलवाड़ा मंदिर में पाँच समान रूप से मंदिर बने हुए हैं जिनके नाम है विमल वसाही, लूना वसाही, पित्तलहर, पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी मंदिर है।
यह मंदिर क्रमश: भगवान आदिनाथ, भगवान ऋषभभो, भगवान नेमिनाथ, भगवान महावीर स्वामी और भगवान पार्श्वनाथ को समर्पित हैं। इन सभी मंदिरों में से हर एक मंदिर में मंडप, गर्भग्रह, एक केंद्रीय कक्ष और अंतरतम गर्भगृह जहाँ भगवान का निवास माना गया है।
इन मंदिरों में नवचोकी है जो नौ सजावट वाली छतों का एक समूह है। कुछ अन्य संरचनाओं में किर्थी स्तम्भ और हाथिशला भी है जो अपने जैन मूल्यों और सिद्धांतों को बताता है।
1.विमल वसाही मंदिर :
विमल वसाही मंदिर पहले जैन तीर्थंकर भगवान आदिनाथ को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण 1021 में गुजरात के सोलंकी महाराजा विमल शाह ने करवाया था।
यह मंदिर सभी मंदिरों में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध और पुराना है। इस मंदिर में मंडप, छत और दरवाजे हैं। इस मंदिर की पंखुड़ियों, फूलों, कमलों, भित्ति चित्रों और पौराणिक कथाओं के चित्र बहुत आकर्षित करते हैं।
विमल वसाही मंदिर एक खुले प्रांगण में स्थित है जो एक गलियारे से घिरा हुआ है। इस गलियारे में तीर्थंकरों की छोटी-छोटी मूर्तियाँ हैं। गुढ़ मण्डप इस मंदिर का सबसे मुख्य कमरा है,
जिसमे भगवान आदिनाथ की मूर्ति विराजमान है। बताया जाता है कि इस मंदिर को बनवाने में ,500 राजमिस्त्री और 1,200 मजदूरों लगे थे जिसमे 14 साल लग गए थे।
2. लूना वसाही मंदिर :
लूना वसाही मंदिर का निर्माण 1230 में किया गया था। यह मंदिर 22 वें जैन तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ को समर्पित है। यह मंदिर इस परिसर का दूसरा प्रमुख मंदिर है।
इस मंदिर को 1230 में दो पोरवाड भाई वास्तुपाल और तेजपाल द्वारा बनवाया गया था। मंदिर में रंग मंडप एक केंदीय हाल है। जिसमे एक वृत्ताकार रूप में तीर्थंकरों की 72 और जैन भिक्षुओं की 360 आकृतियाँ हैं।

लूना वसाही मंदिर में एक हाथीशिला भी है, जिसमे 10 संगमरमर हाथी और एक विशाल काले पत्थर का स्तंभ है, जिसको किर्थी स्तम्भ कहते हैं।
3. पित्तलहर मंदिर :
पित्तलहर मंदिर यहां का तीसरा प्रमुख मंदिर है जो जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव को समर्पित है। इस मंदिर का निर्माण भीम सेठ द्वारा किया गया था।
इस मंदिर में भगवान आदिनाथ की पांच धातुओं और पीतल से बनी एक विशाल मूर्ति स्थापित है। इस मंदिर के अंदर भी गर्भगृह, गुड़ मंडप और नवचौकी है।
4. पार्श्वनाथ मंदिर :
पार्श्वनाथ मंदिर एक तीन मंजिला इमारत मंदिर है जो सभी मंदिरों की सबसे ऊँची इमारत है। इसे मंडली द्वारा 1459 में 23 वें जैन तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के समर्पण के रूप में बनवाया था। बता दें कि इस मंदिर में चार मुख्य हॉल हैं जिसकी दीवारों पर ग्रे बलुआ पत्थर की नक्काशी है।
5. महावीर स्वामी मंदिर :
ई.स 1582 में निर्मित महावीर स्वामी मंदिर 24 वें जैन तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी के समर्पण के रूप में बना है। यह मंदिर बाकी मंदिरों की तुलना में काफी छोटा है। यह मंदिर सिरोही के कलाकारों के कई चित्रों को बताता है।
दिलवाड़ा जैन मंदिर खुलने और बंद होने का समय –
जैन मंदिर जैन भक्तों सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक खुला रहता है और अन्य धर्म के लोगो के लिए यह दोपहर 12 से शाम 6 बजे तक खुला रहेगा।
यहाँ जाने से पहले इस बात का जरुर ध्यान रखे कि इस मंदिर में किसी भी पर्यटक और तीर्थ यात्री को मंदिर परिसर में फोटो खींचने की अनुमति नहीं है।
मंदिर का प्रवेश शुल्क –
अगर आप दिलवाड़ा मंदिर घूमने या दर्शन करने जा रहे हैं तो बता दें कि इन मंदिर में प्रवेश के लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाता।
दिलवाड़ा जैन मंदिर की यात्रा के सबसे अच्छा समय –
अगर आप दिलवाड़ा मंदिरों की यात्रा के लिए जा रहे हैं तो आपको बता दें कि माउंट आबू में पूरे साल अच्छा मौसम रहता है। हालांकि अप्रैल से लेकर जून के महीने गर्म होते हैं।
लेकिन मानसून और सर्दियों का मौसम यह जगह घूमने के लिए बहुत अच्छी है। क्योंकि इस जगह न बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है न बहुत ज्यादा बरसात होती है।
दिलवाड़ा जैन मंदिर कैसे पहुँचे – How to reach Dilwara Jain Temple
माउंट आबू और दिलवाड़ा मंदिर के बीच की दूरी सिर्फ 2.5 किलोमीटर है। यदि आपके पास अपना वाहन है, तो आप आसानी से मंदिर तक या तो देलवाड़ा रोड या तीर्थयात्रा मार्ग से पहुँच सकते हैं। इस मार्ग पर बसें नहीं चलती हैं, हालांकि, टैक्सी या ऑटोरिक्शा यहां उपलब्ध हैं।
दिलवाड़ा जैन मंदिर हवाई मार्ग से कैसे पहुँचे – How to reach Dilwara Jain Temple by air
अगर आप दिलवाड़ा जैन मंदिर घूमने के लिए हवाई जहाज से जाने का प्लान बना रहे हैं, तो आपको बता दें कि माउंट आबू से कोई डायरेक्ट एअरपोर्ट जुड़ा नहीं है।
इसका निकटतम हवाई अड्डा उदयपुर राजस्थान में है। अगर आप किसी और देश से आ रहे हैं तो आपको अहमदाबाद हवाई अड्डा उतरना बेहतर होगा, जो एक अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है।
इसके अलावा आप दिल्ली, मुंबई, जयपुर से उदयपुर के लिए कनेक्टिंग फ्लाइट ले सकते हैं। इसके बाद आप माउंट आबू या दिलवाड़ा जैन मंदिर पहुँचने के लिए टैक्सी या कैब ले सकते हैं।
दिलवाड़ा जैन मंदिर ट्रेन से कैसे पहुँचे – How to reach Dilwara Jain Temple by train
अगर आप ट्रेन से सफर करना चाहते हैं तो आपको जयपुर और अहमदाबाद से माउंट आबू के लिए कई नियमित ट्रेन मिल जाएँगी। यदि आप जयपुर और अहमदाबाद के अलावा किसी दूसरे शहर से यात्रा कर रहे हैं
तो हम आपको यही कहना चाहते हैं कि टैक्सी को प्राथमिकता दें क्योंकि ट्रेन से आने में आपको दिक्कत हो सकती है। आपको ट्रेन से माउंट आबू तक पहुँचने के लिए लंबे मार्ग से जाना होगा।
दिलवाड़ा जैन मंदिर सड़क मार्ग से कैसे पहुँचे – How to reach Dilwara Jain Temple by road
दिलवाड़ा जैन मंदिर माउंट आबू जाने के लिए आपको राज्य परिवहन की बस मिल जाएँगी। अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों के लिए माउंट आबू पहुंचने का सबसे अच्छा तरीका दिल्ली से उदयपुर के लिए फ्लाइट पकड़ना है। यहां से माउंट आबू के लिए आपको निजी कार या टैक्सी मिल जाएगी।
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