Allahabad Fort Information in Hindi – इलाहाबाद किला सूचना हिंदी में

Allahabad Fort – इलाहाबाद क़िला उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में स्थित है। अपने विशिष्ट बनावट, निर्माण और शिल्पकारिता के लिए जाना जाने वाला यह किला गंगा और युमाना के संगम पर स्थित है।

इस क़िले का निर्माण 1583 ई. में किया गया था। यह मुग़ल बादशाह अकबर के द्वारा बनाया गया सबसे बड़ा क़िला है। इस क़िले का इस्तेमाल अब भारतीय सेना द्वारा किया जाता है।

आम नागरिकों के लिए कुछ हिस्सों को छोड़कर बाकी हिस्सों में प्रवेश वजिर्त है। सैलानियों को अशोक स्तंभ, सरस्वती कूप और जोधाबाई महल देखने की इजाजत है।

ऐसा कहा जाता है कि क़िले में अक्षय वट यानी अमर वृक्ष है। हालांकि यह वृक्ष क़िले के प्रतिबंधित क्षेत्र में है, जहाँ पहुंचने के लिए अधिकारियों से विशेष अनुमति लेनी पड़ती है।

 स्थान   इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश (भारत)
 निर्माण  ई.स 1583
 निर्माता  मुगल सम्राट अकबर
 वास्तुकला   प्राचीन मुगल वास्तु शैली
 प्रकार  सांस्कृतिक, किला
  निर्माण में कितना समय लगा  45 साल 05 महीने 10 दिनों
 कितने मजदूरों बनाया  20000 मजदूर

 इलाहाबाद किले की जानकारी – Allahabad Fort Information

पार्क में 10.6 मीटर का विशाल अशोक स्तंभ भी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण 232 ईसा पूर्व किया गया था। पुरातत्त्वविद् और इतिहासकारों के लिए इस स्तंभ का विशेष महत्व है।

इस क़िले को चार भागों में बांटा गया है। पहला भाग ख़ूबसूरत आवास है जो फैले हुए उद्यानों के मध्य में है। यह भाग बादशाह का आवासीय हिस्सा माना जाता है। दूसरे और तीसरे भाग में अकबर का शाही हरम था और नौकर-चाकर वहीं रहते थे। चौथे भाग में सैनिकों के लिए आवास बनाए गए थे।

क़िले में एक ‘जनाना महल’ है, जिसे ‘जहांगीर महल’ भी कहते हैं। मुग़ल शासकों ने क़िले में बड़े फेरबदल कराये और फिर अंग्रेज़ों ने भी इसे अपने माकूल बनाने के लिए काफ़ी तोड़-फोड़ की। इससे क़िले को काफ़ी क्षति पहुंची।

कई शासकों और अंग्रेज़ों को सुरक्षित रखने तथा आज भी देश की सेना को शरण देने वाले इस क़िले की अवस्था अब जर्जर हो गई है। इसकी दीवारों पर बरगद, नीम, पीपल आदि ने जड़ें जमा ली हैं।

घास-फूंस और झाड़ियां भी फैल गई हैं। दीवारों पर निकले पेड़ पौराणिक अक्षय वट की जड़ों की उपज हैं। इनमें कुछ पेड़ ऐसे भी हैं, जो पक्षियों के कारण दरारों में जम गए हैं।

जल्द इन पेड़ों को नहीं काटा गया तो ये क़िले की दीवारों के लिए खतरा बन जाएंगे। चूंकि क़िला इस समय भारतीय सेना के कब्जे में है, इसलिए उसकी इजाजत के बगैर पुरातत्त्व विभाग सौंदर्यीकरण या मरम्मत भी नहीं करा सकता है

इलाहाबाद किले का इतिहास – History of Allahabad Fort

इलाहाबाद क़िले की स्थापना मुग़ल बादशाह अकबर ने की थी। हालांकि इस पर इतिहासकारों में मतभेद हैं। समकालीन लेखक अब्दुल कादिर बदायूंनी ने ‘मुंतखवुल-तवारीख’ में लिखा है कि- “क़िले की नींव सन 1583 में डाली गई थी।

नदी की कटान से यहां की भौगोलिक स्थिति स्थिर न होने से इसका नक्शा अनियमित ढंग से तैयार किया गया था।” वे लिखते हैं कि अनियमित नक्शे पर क़िले का निर्माण कराना ही इसकी विशेषता है। क़िले का कुल क्षेत्रफल तीस हज़ार वर्ग फुट है। इसके निर्माण में कुल लागत छह करोड़, 17 लाख, 20 हज़ार 214 रुपये आयी थी।

अकबर ने इस किले का निर्माण मुग़ल काल में पूर्वी भारत (वर्तमान में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार) से अफ़ग़ान विद्रोह को खत्म करने के लिए किया था।

सन 1773 में अंग्रेज़ इस किले में आए और सन 1765 में बंगाल के नवाब शुजाउद्दौला के हाथ 50 लाख रुपये में बेच दिया। सन 1798 में नवाब शुजात अली और अंग्रेज़ों में एक संधि के बाद क़िला फिर अंग्रेज़ों के कब्जे में आ गया।

आज़ादी के बाद भारत सरकार का क़िले पर अधिकार हुआ। क़िले में पारसी भाषा में एक शिलालेख भी है, जिसमें क़िले की नींव पड़ने का वर्ष 1583 ई. दिया है।

इतिहासकार मिस्टर हमिल्टन ने वर्ष 1815 में लिखा था कि इलाहाबाद स्थित अकबर के क़िले के बराबर वैभवपूर्ण भवन यूरोप में भी कम ही देखने को मिलते हैं।

इलाहाबाद किला सूचना हिंदी में - Allahabad Fort Information in Hindi
इलाहाबाद किला सूचना हिंदी में – Allahabad Fort Information in Hindi

फ़र्गुसन के अनुसार इसकी नक्काशी और चित्रकारी इतनी दर्शनीय है कि इसकी तुलना पूरे भारत के किसी भी भवन से नहीं की जा सकती। इसी क़िले के भीतर एक टकसाल भी था जिसमें चांदी और तांबे के सिक्के ढाले जाते थे।

अकबर के इस क़िले में उस समय पानी के जहाज और नावें बनाई जाती थीं जो यमुना नदी से समन्दर तक ले जाई जाती थीं। अकबर द्वारा हिन्दुस्तान में निर्मित सभी क़िलों में यह सबसे विशाल और उत्कृष्ट माना जाता है।

इस क़िले पर मुग़लों के बाद जब अंग्रेजों ने कब्ज़ा कर लिया तो इसे अपनी सैनिक छावनी बना दिया । इस क़िले के चारों तरफ़ विश्व के सबसे बड़े धार्मिक कुंभ मेले का आयोजन किया जाता है। इस अति संवेदनशील क़िले के आसपास करोड़ों लोग प्रतिवर्ष इकट्ठा होते हैं।

क़िले में एक सरस्वती कूप है जिसके बारे में कहा जाता है कि यहीं से सरस्वती नदी जाकर गंगा-यमुना में मिलती थी। सरस्वती कूप में ही अक्षयवट नामक वृक्ष है जिसके बारे में कहा जाता है

मुग़लों ने इसे जला दिया था क्योंकि पहले स्थानीय लोग इसकी पूजा करने के लिए क़िले में आते थे। यह भी किंवदन्ती है कि इस वृक्ष के नीचे जो भी इच्छा व्यक्त की जाती थी वह पूरी होती थी।

आजकल पर्यटकों को जिस अक्षयवट के दर्शन कराए जाते हैं वह असली नहीं। असली अक्षयवट के दर्शन सेना की अनुमति लेने के बाद ही हो पाते हैं।

Allahabad Fort नक्काशीदार पत्थरों से बना हुवा है –

बताया जाता है कि 644 ईसा पूर्व में चीनी यात्री ह्यु -एन -सांग यहां आया था। तब कामकूप तालाब मैं इंसानी नरकंकाल देखकर दुखी हो गया था। उसने अपनी किताब में भी इसका जिक्र किया था। उसके जाने के बाद ही मुगल सम्राट अकबर ने यहां किला बनवाया।

इस किले में स्थापत्य कला के साथ ही अपने गर्भ में जहांगीर, अक्षयवट, अशोक स्तंभ व अंग्रेजों की गतिविधियों की तमाम अबूझ कहानियों को भी समेटे हुए है। जिसे जानने की जिज्ञासा इतिहासकारों को भी हमेशा से रही है।

ये किला अपनी विशिष्ट बनावट, निर्माण और शिल्पकारिता के लिए जाना जाता है। नक्काशीदार पत्थरों की विशायलकाय दीवार से यमुना की लहरे टकराती है। इसके अंदर पातालपुरी में कुल 44 देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं, जहां लोग आज भी पूजा पाठ करते हैं।

Allahabad Fort कितने मजदूरोने मिलकर बनाया था –

समकालीन इतिहासकार अबुल फजल ने लिखा है कि इसकी नींव 1583 में रखी गई। उस समय करीब 45 साल 05 महीने 10 दिनों तक इसका निर्माण कार्य चला था।

इसे बनाने में करीब 20 हजार मजदूरों ने काम किया था। किले का कुल क्षेत्रफल 30 हजार वर्ग फुट है। इसके निर्माण में कुल लागत 6 करोड़, 17 लाख, 20 हजार 214 रुपए आई थी।

कुछ इतिहासकारों का दावा है कि किले में निर्माण कार्य 1574 से पहले शुरू हो गया था। अकबर की इच्छा थी कि इलाहाबाद के पास ही एक शहर और सैन्य छावनी बनाई जाए। वह इस किले को अपने बेस के रूप में इस्तेमाल करना चाहता था।

इलाहाबाद किला अनियमित नक्शे से हुआ था निर्माण –

नदी की कटान से यहां की भौगोलिक स्थिति स्थिर नहीं थी। जिसकी वजह से इसका नक्शा अनियमित ढंग से तैयार किया गया था। अबुल फजल ने लिखते हैं, ”अनियमित नक्शे पर किले का निर्माण कराना ही इसकी विशेषता है।

1583 में अकबर ने एक बार इस किले का निरीक्षण किया था, इसलिए उसे ही किले का निर्माण काल मान लिया जाता है। अकबर इसी स्थान पर 4 किलों के एक समूह का निर्माण करना चाहता था। लेकिन एक ही किले के निर्माण में इतने वर्ष लग गए, तब तक अकबर की मौत हो गई थी।

अकबर के साथ आए लोगों ने किले से थोड़ा दूर भवन बनवाया, जिससे एक नए शहर को बसाने में असानी हुई। इस किले को 4 भागों में बांटा गया है।

पहला भाग खूबसूरत आवास है, जो फैले हुए उद्यानों के बीच में है। यह भाग बादशाह का आवासीय हिस्सा माना जाता है। दूसरे और तीसरे भाग में अकबर का शाही हरम था और नौकर चाकर की रहने की व्यवस्था थी।

चौथे भाग में सैनिकों के लिए आवास बनाए गए थे। इतिहासकारों के अनुसार इस किले का निर्माण राजा टोडरमल, सईद खान, मुखलिस खान, राय भरतदीन, प्रयागदास मुंशी की देख-रेख में हुआ था।

सलीम ने बनवाया था काले पत्थरों का सिंहासन –

किले में जब सलीम ने यहां के सूबेदार के रूप में रहना शुरू किया तो उसने अपने लिए काले पत्थरों से एक सिंहासन का निर्माण कराया था। जिसे 1611 में आगरा भेज दिया गया था।

जहांगीर ने किले में मौर्यकालीन एक अशोक स्तंभ को पड़ा पाया था। उसे दोबारा स्थापित कर दिया, 35 फीट लंबे उस स्तंभ पर उसने अपनी संपूर्ण वंशावली खुदवा दी थी।

यह अशोक स्तंभ 273 ईसा पूर्व का है। जिस पर चक्रवर्ती राजा समुद्रगुप्त ने अपनी कीर्ति अंकित कराई थी। इस पर सम्राट अशोक की राजाज्ञाओं व समुद्रगुप्त और जहांगीर की प्रशस्ति भी खुदी हुई है। 1600 से 1603 तक जहांगीर इसी किले में रहा।

इलाहाबाद किले की कुछ रोचक बाते – Some interesting points of Allahabad Fort

अकबर द्वारा बनाए गए सभी किलों में इलाहाबाद का किला सबसे बड़ा किला है। जो प्राचीन मुगलकालीन की अद्भुत शैली को दर्शाता है।

किले के मुख्य द्वार के अंदर एक अशोक स्तंभ हैं जो भारतीय इतिहास के प्राचीन बौद्ध काल में प्रयोग महत्ता का प्रमाण है।

यह किला 1775 ई॰ में अंग्रेजों द्वारा बंगाल के शासक शुजाउद्दौला को केवल 50 लाख रुपए में बेच दिया गया थापरंतु 1798 ई॰ में शाजत अली से अंग्रेज़ो की संधि हुई और किला दौबरा अंग्रेज़ो के हाथ में आ गया।

इस किले में तीन बड़ी गैलरी हैं जहां पर ऊंची मीनारें हैं। जो किले किले सुंदरता को आकर्षित करतीं हैं।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा राष्ट्रीय महत्व के स्मारक के रूप यह किला संरक्षित है। परंतु वर्तमान में पर्यटकों के लिए इसके कुछ भाग ही केवल खुले हैं बाकी बचे हुए भाग का प्रयोग भारतीय सेना करती है।

इलाहाबाद किला सूचना हिंदी में - Allahabad Fort Information in Hindi
इलाहाबाद किला सूचना हिंदी में – Allahabad Fort Information in Hindi

इसे किले में पर्यटकों को अशोक स्तंभ, सरस्वती कूप और जोधाबाई महल देखने की अनुमति है। इसके अतिरिक्त किले में एक अक्षय वट मशहूर बरगद का पुराना पेड़ और पातालपुर मंदिर नाम से विख्यात एक मंदिर है।

पार्क में पत्थर से बना 10.6 मीटर का विशाल अशोक स्तंभ है, इसके बारे में लोगों का कहना है कि इसका निर्माण 232 ईसा पूर्व किया गया था। विशेषकर पुरातात्विक विशेषज्ञ और इतिहासकारों के लिए यह स्तंभ महत्व रखता है।

इलाहाबाद किले तक कैसे पहुंचे – How to reach Allahabad Fort

इलाहाबाद किले सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन प्रयाग घाट रेलवे स्टेशन और इलाहाबाद सिटी रेलवे स्टेशन हैं जिसमें कोलकाता राजधानी एक्सप्रेस, प्रयाग राज एक्सप्रेस और दुरंतो एक्सप्रेस प्रमुख है।

इसके अलावा इलाहाबाद को नेशनल हाइवे 2 और 27 की सेवाएं मिलती हैं। आसपास के क्षेत्र से इलाहाबाद किले के लिए कई बसें चलती हैं।

विदेशों से आने वाले पर्यटकों के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट इलाहाबाद एयरपोर्ट नया टर्मिनल है। इलाबाद एयरपोर्ट को बमरौली फील्ड भी कहा जाता है।

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